चुनावी राज्य जम्मू-कश्मीर में क्या कांग्रेस अपने बड़े नेता गुलाम नबी आज़ाद को फ्री हैंड देगी। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर इन दिनों एआईसीसी में मंथन चल रहा है। राज्य में पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा, इसमें वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद की पसंद सबसे अहम होगी।
एआईसीसी की ओर से प्रदेश कांग्रेस के नेताओं से कहा गया है कि वे सभी मतभेदों को भुलाकर चुनाव में एकजुट होकर मैदान में जाएं। लेकिन कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में आज़ाद की पसंद को अहमियत देनी ही होगी।
आज़ाद समर्थकों की नाराजगी
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस में लंबे वक्त से गुलाम नबी आज़ाद के समर्थक नाराज हैं और बड़ी संख्या में पार्टी छोड़ चुके हैं। उनकी नाराजगी प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर से थी। इन नेताओं का कहना था कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस लोकसभा से लेकर डीडीसी, बीडीसी, पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव तक में हार चुकी है। ऐसे में यहां की कमान किसी वरिष्ठ नेता के हाथ में दी जानी चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव होने तय हैं। कुछ दिन पहले ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे गुलाम अहमद मीर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
विकार रसूल वानी का नाम आगे
जिन नेताओं का नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सबसे आगे है, उनमें विकार रसूल वानी, पीरजादा सैयद, तारिक हमीद कर्रा और गुलाम मोहम्मद सरूरी शामिल हैं।
विकार रसूल वानी गुलाम नबी आज़ाद के करीबी हैं और इस पद की दौड़ में सबसे आगे बताए जाते हैं। लेकिन वानी के नाम को लेकर विरोध भी है और यह भी चर्चा है कि आज़ाद गुट के ही किसी और नेता को प्रदेश कांग्रेस की कमान मिल सकती है।
खबरों के मुताबिक़, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने गुलाम नबी आज़ाद से ही पार्टी की कमान संभालने को कहा था लेकिन आज़ाद ने सेहत का हवाला देते हुए इससे इनकार किया है।
नेताओं से मांगी राय
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की प्रभारी रजनी पाटिल ने बीते दिनों में प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं से बातचीत की है। इन सभी नेताओं से अलग-अलग बातचीत कर जम्मू-कश्मीर में संगठन को लेकर उनकी राय जानी गई है।
नेतृत्व से चल रही तनातनी
गुलाम नबी आज़ाद के पिछले कुछ साल से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। आज़ाद कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 के नेता हैं और कई बार अपने बयानों से पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं।
पार्टी ने इस बार उन्हें राज्यसभा चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं बनाया था। गुलाम नबी आज़ाद को जब पद्मभूषण मिला था तो उस वक्त कांग्रेस के कई नेताओं ने इसका खुले मन से स्वागत नहीं किया था और केंद्रीय नेतृत्व ने भी उन्हें इसके लिए बधाई नहीं दी थी।
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद में गुलाम नबी आज़ाद की तारीफ किए जाने के बाद भी कांग्रेस के भीतर आज़ाद को लेकर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं सुनाई दी थी।
लेकिन फिर भी यह तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को अगर मजबूती से चुनाव लड़ना है तो उसे गुलाम नबी आज़ाद को आगे रखना ही होगा और उनके ही किसी समर्थक को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना होगा।
निश्चित रूप से आज़ाद बेहद अनुभवी नेता हैं और वह जम्मू-कश्मीर के बाहर भी पहचाने जाते हैं। केंद्र की हुकूमत में कई मंत्रालय संभालने के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा सहित कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं और उन्होंने पार्टी को जीत भी दिलाई है।
लगातार चुनावी हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए हिमाचल प्रदेश, गुजरात के साथ ही जम्मू-कश्मीर के चुनाव भी बेहद अहम हैं। कांग्रेस इससे पहले भी उत्तराखंड में हरीश रावत, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबियों को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्हें फ्री हैंड दे चुकी है।
बताना होगा कि धारा 370 हटने के बाद राज्य में सियासी माहौल पूरी तरह बदल गया है। बीजेपी जम्मू में अपना आधार बढ़ाने के लिए तेज़ी से काम कर रही है जबकि पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेन्स पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग पर अड़े हैं।
गुपकार गठबंधन मिलकर लड़ेगा चुनाव
उधर, गुपकार गठबंधन ने कहा है कि वह विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद कुछ विपक्षी दलों ने मिलकर पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन यानी गुपकार गठबंधन बनाया था। इसमें पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कॉन्फ्रेन्स, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स और सीपीआईएम शामिल थे। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स इससे अलग हो गई है।
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