पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
अभी रुझान नहीं
पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
अभी रुझान नहीं
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
अभी रुझान नहीं
अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद आर्थिक व अन्य मुश्किलों का सामान कर रहे जम्मू-कश्मीर को थोड़ा सा राहत देने की कोशिश की गई है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने राज्य के व्यापारी वर्ग के लिए 1350 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का एलान किया है।
इसके अलावा जिन व्यापारियों ने पैसा उधार लिया है, उन्हें बिना किसी शर्त के 6 महीने के लिए 5 फीसदी आर्थिक सहायता देने का भी फ़ैसला किया गया है। राज्यपाल ने उम्मीद जताई कि इससे रोज़गार के मौक़े पैदा होने में बढ़ी मदद मिलेगी। राज्यपाल ने कहा है कि इस पैकेज के अलावा व्यापारियों को राहत देने के लिए आत्मनिर्भर भारत सहित कुछ अन्य क़दम भी उठाए गए हैं।
इसके अलावा पानी-बिजली के बिलों में 1 साल तक 50 फ़ीसदी डिस्काउंट देने का भी फ़ैसला किया गया है।
अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था बदतर हुई है। उद्यमियों, व्यावसायिक घरानों और पूरी कश्मीरी अर्थव्यवस्था को साल भर तक 4G इंटरनेट न मिलने के कारण उनके लिए साल बेहद ख़राब रहा। इसके बाद लॉकडाउन की वजह से बाक़ी कसर भी पूरी हो गयी और व्यापारी वर्ग भयंकर नुक़सान में चला गया।
इसके अलावा सुरक्षा को लेकर हालात बेहद ख़राब हैं। व्यवसायी केवल वहीं निवेश करेंगे, जहां एक शांतिपूर्ण वातावरण होगा लेकिन घाटी में स्थिति अभी भी गंभीर है, जिसमें अक्सर उग्रवाद की घटनाएँ होती ही रहती हैं। ऐसे वातावरण में शायद ही कोई निवेश करे। देखना होगा कि सरकार का यह पैकेज व्यापारियों को कितनी राहत दिला पाता है।
पिछले साल 5 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे को समाप्त कर और राज्य का दर्जा छीन कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करने का फ़ैसला लिया था। इस कदम से घाटी में संभावित सार्वजनिक प्रतिरोध को रोकने के लिए सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और सीआईएसएफ की 4 सौ अतिरिक्त कंपनियों को भेजा गया था।
लेकिन कुछ दिन पहले अतिरिक्त बल के 10 हज़ार जवानों को वापस बुला लिया गया। सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के तहत, यहां तैनात सेना के पास असाधारण शक्तियां भी हैं। सुरक्षा एजेंसियों और ख़ुफ़िया एजेंसियों की घाटी में भरमार है। इससे पहले क़रीब साल भर से बंद 4जी इंटरनेट को बहाल करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
केंद्र सरकार राज्य में चुनाव कराने की तैयारी में है। इसकी प्रक्रिया की वास्तविक शुरुआत तब हुई जब जीसी मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर के लेफ़्टिनेंट गवर्नर पद से इस्तीफ़ा दे दिया और बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को नया लेफ़्टिनेंट गवर्नर नियुक्त कर दिया गया।
केंद्र सरकार विधानसभा चुनाव से पहले खाली पड़े पंचों और सरपंचों की 12,000 सीटों के लिए चुनाव कराना चाहती है। बीजेपी महासचिव और कश्मीर मामलों के प्रभारी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जो लोग धारा 370 को वापस लाने की बात कर रहे हैं, 'उन्हें हुर्रियत में शामिल हो जाना चाहिए'।
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अभी भी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत क़ैद हैं। कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य छोटे राष्ट्रीय मुख्यधारा के दलों ने अभी तक यह संकेत नहीं दिया है कि वे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को फिर से शुरू करेंगे। बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने पिछले साल अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर में हुए ब्लॉक विकास परिषद के चुनावों का बहिष्कार किया था।
देखिए, कश्मीर के हालात पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो-
अब चूंकि राजनीतिक प्रक्रिया एक तरह से शुरू हो गई है तो क्या सबकुछ अब ठीक हो जाएगा? क्या यह एक जादुई छड़ी साबित होगी? इसमें कई बड़ी चुनौतियां हैं। पहली तो यही कि अभी भी कई नेता नज़रबंद हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी शामिल हैं। हाल ही में उनकी हिरासत अवधि तीन महीने के लिए बढ़ाई गई है।
मुख्यधारा के ऐसे नेताओं को हिरासत में रखकर क्या यह राजनीति प्रक्रिया सफल हो पाएगी? यदि मान भी लिया जाए कि महबूबा मुफ़्ती और दूसरे नेताओं को सरकार रिहा कर देती है तो भी क्या राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करना इतना आसान होगा?
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें