क्या अनुच्छेद 370 का जम्मू-कश्मीर के विकास पर असर पड़ा है? प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि अब बदली हुई परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र का बेहतर विकास होगा। जब से अनुच्छेद 370 का मामला उठा है तब से गृह मंत्री अमित शाह भी कहते रहे हैं कि अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर का विकास बाधित हुआ है। इस अनुच्छेद को ख़त्म करने के समर्थक भी यही बात करते रहे हैं। लेकिन वे किस आधार पर यह बात कह रहे हैं, इस पर कुछ स्पष्टता नहीं है। लेकिन सवाल तो है कि क्या सच में अनुच्छेद 370 से विकास नहीं हुआ?
स्वास्थ्य मामले में जम्मू-कश्मीर का रिकॉर्ड दूसरे अधिकतर राज्यों से बेहतर है। शिशु मृत्यु दर के मामले में भी दूसरे राज्यों से स्थिति अच्छी है। महिला कल्याण, जननी योजना, रोज़गार जैसे मामले में भी स्थिति ठीक है।
यदि अनुच्छेद 370 का विकास पर इतना ज़्यादा ख़राब असर पड़ा है तो जम्मू-कश्मीर विकास के कई पैमानों पर कई राज्यों से आगे क्यों रहा है? कई मामलों में तो इसका प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गुजरात से भी बेहतर प्रदर्शन रहा है।
सरकारी आँकड़े ही बताते हैं कि विकास के पैमाने पर जम्मू-कश्मीर की स्थिति कई दूसरे राज्यों से अच्छी है। ‘द क्विंट’ ने नीति आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध आधिकारिक आँकड़ों के हवाले से लिखा है कि जम्मू-कश्मीर ने समग्र स्वास्थ्य सूचकांक में सुधार दिखाया है। 2014-2015 में राज्य 11वें स्थान पर था। 2015-2016 में इसकी स्थिति सुधर गई और यह चार पायदान ऊपर चढ़कर 7 पर पहुँच गया। सबसे कम रैंकिंग वाले राज्य बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं।
शिशु मृत्यु दर में बेहतर स्थिति
वेबसाइट ने एसआरएस बुलेटिन के हवाले से लिखा है कि देश में वर्ष 2017 में प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों पर शिशु मृत्यु दर 33 है। जम्मू-कश्मीर के लिए यह दर 23 है, जो राष्ट्रीय औसत से काफ़ी कम है और कई अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में बेहतर है। नगालैंड, गोवा और केरल इस मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं। शिशु मृत्यु दर को देश के स्वास्थ्य की स्थिति के समग्र संकेतक के रूप में देखा जाता है।
महिला शिक्षा में गुजरात से भी आगे
महिलाओं की शिक्षा के मामले में भी जम्मू-कश्मीर की रिपोर्ट दूसरे कई राज्यों से बेहतर है। रिपोर्ट के मुताबिक़ 10 या उससे अधिक साल तक स्कूल जाने वाली महिलाओं का आँकड़ा गुजरात में 33 फ़ीसदी है, जबकि यह आँकड़ा जम्मू-कश्मीर में 37.2 फ़ीसदी है। ‘जनसत्ता’ की एक रिपोर्ट के अनुसार जननी सुरक्षा योजना के तहत बच्चों के जन्म पर मिलने वाली सरकारी सहायता के मामले में गुजरात का आँकड़ा 8.9 फ़ीसदी है जबकि जम्मू-कश्मीर में यह आँकड़ा 54 फ़ीसदी है। इसके अलावा गुजरात में जहाँ सरकारी क्षेत्र में प्रत्येक प्रसव पर 2136 रुपये ख़र्च होते हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर में यह ख़र्च की राशि 4,192 रुपये है।
लिंगानुपात भी कई राज्यों से बेहतर
लिंगानुपात के मामले में भी जम्मू-कश्मीर की स्थिति काफ़ी बेहतर है। इस मामले में भी राज्य गुजरात से ठीक स्थिति में है। नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के आँकड़ों के मुताबिक़ गुजरात में लिंगानुपात यानी प्रति 1000 पुरुषों पर 950 महिलाएँ हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में प्रति 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएँ हैं। इसका साफ़ मतलब यह हुआ कि लिंगानुपात के मामले में जम्मू-कश्मीर की स्थिति गुजरात से भी बेहतर है। बता दें कि राष्ट्रीय औसत लिंगानुपात 896 है।
गरीबी रेखा की स्थिति
योजना आयोग के अनुसार, वर्ष 2011-2012 में भारत का ग़रीबी के आँकड़ों वाला सूचकांक 21.9 फ़ीसदी था, जबकि जम्मू-कश्मीर 10.35 फ़ीसदी था। यानी इस मामले में भी राष्ट्रीय स्तर से राज्य की काफ़ी बेहतर स्थिति है। छत्तीसगढ़, झारखंड, मणिपुर जैसे राज्यों में तो 36 प्रतिशत से ज़्यादा लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं।
2016-2017 के लिए जम्मू और कश्मीर का प्रति व्यक्ति शुद्ध घरेलू उत्पाद (वर्तमान मूल्य पर) 78,163 रुपये है, जो कई राज्यों से बेहतर है। इस मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर जैसे राज्य काफ़ी पीछे हैं।
रोज़गार की स्थिति
रोज़गार की स्थिति पर ‘द क्विंट’ ने रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसने सीएमआईई के आँकड़ों के हवाले से लिखा है कि जम्मू-कश्मीर के लिए इस साल जुलाई में बेरोज़गारी का आँकड़ा 17.4 प्रतिशत है। त्रिपुरा, हिमाचल और हरियाणा में यह दर 19 प्रतिशत से ज़्यादा है।
भारत में साक्षरता दर 72.99 प्रतिशत है, जबकि जम्मू-कश्मीर में यह 67.16 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्तर पर इसकी साक्षरता दर भले ही कम हो लेकिन कई राज्यों से इसकी बेहतर स्थिति है। राजस्थान, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जम्मू-कश्मीर की तुलना में साक्षरता दर कम है।
ये आँकड़े यह बताते हैं कि अधिकतर मामलों में जम्मू-कश्मीर की स्थिति काफ़ी बेहतर है। कई मामलों में तो उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मणिपुर जैसे राज्य जम्मू-कश्मीर से काफ़ी पीछे रहे हैं। कई मामलों में तो गुजरात भी पीछे है। लेकिन इन राज्यों में अनुच्छेद 370 नहीं रहा है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि अनुच्छेद 370 ने विकास को कैसे प्रभावित किया और यदि इसके पक्ष में दावे किए जा रहे हैं तो इसके पक्ष में तथ्य क्या रखे जा रहे हैं?
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