अनुच्छेद 370 में बदलाव के 42 दिन बाद भी न तो सामान्य स्थिति बहाल हुई है और न ही लोगों में गिरफ़्तारी का ख़ौफ़ कम हुआ है। पहले से जो गिरफ़्तार हैं उनकी रिहाई का तो कुछ पता है नहीं, अभी भी गिरफ़्तारियाँ जारी हैं। हालाँकि पुलिस आधिकारिक रूप से संख्या नहीं बता रही है कि पूरे राज्य में अब तक कितने लोगों की गिरफ़्तारियाँ हुई हैं। मीडिया रिपोर्टें हैं कि क़रीब 4500 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। परिजन यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें कहाँ रखा गया है और कैसे हालात में हैं। गिरफ़्तार लोगों के बार में इसलिए भी पता नहीं चल पा रहा है कि कुछ को जम्मू तो कुछ को उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा की जेलों में रखा गया है।
अपने लोगों को ढूँढते हुए सिंधु शर्मल गाँव के 30 लोग पिछले हफ़्ते गुरुवार को शोपियाँ ज़िला हेडक्वार्टर पहुँचे थे। सभी क़रीब-क़रीब बुजुर्ग थे। अँग्रेज़ी अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीणों ने डीसी यानी डिप्टी कमिश्नर यासीन चौधरी से मुलाक़ात की। वे गिरफ़्तार किए गए अपनों के बारे में जानकारी लेने आए थे और साथ ही वे उन तीन अपेक्षाकृत बुजुर्ग लोगों को रिहा करने की माँग कर रहे थे जिन्हें एक दिन पहले ही पाँच युवाओं के साथ गिरफ़्तार किया गया था।
अख़बार के अनुसार, चौधरी ने नाज़ुक हालात का हवाला देकर कहा कि प्रशासन की यह कार्रवाई सुरक्षा उपाय के रूप में की गई है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वह पुलिस से इस बारे में बात करेंगे और उनकी रिहाई की पूरी कोशिश करेंगे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ग्रामीणों की मुलाक़ात के बाद तीनों बुजुर्गों को रिहा कर दिया गया। इन्हें तब गिरफ़्तार किया गया था जब ये अपने-अपने बच्चों को ढूँढ रहे थे। हालाँकि युवाओं को रिहा नहीं किया गया।
पुलिस का मानना है कि अभी गिरफ़्तारी की ये कार्रवाइयाँ पत्थरबाज़ों के ख़िलाफ़ की जा रही हैं। युवा इनमें आगे रहते हैं।
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, एक 61 वर्षीय बुजुर्ग ने कहा कि पुलिस हर रोज़ आती है और परेशान करती है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों के वाहनों पर यदि कोई पत्थर फेंकता है तो सुरक्षा बल जवान हमारे गाँव के बच्चों को उठा ले जाते हैं।
एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सहायता के लिए किनके पास जाएँ। वह कहते हैं कि अधिकतर राजनेता, स्थानीय नेता, हममें से जो कोई भी प्रभावशाली है, वे सब जेल में हैं।
चौधरी ने कहा, 'अधिकतर मामलों में उन लोगों को पकड़ा जाता है जो या तो कभी पत्थरबाज़ी में शामिल रहे हैं या कोई अन्य मामला हो... सामान्य रूप से बुजुर्गों को नहीं पकड़ा जाता है, लेकिन उनके बच्चों का बैकग्राउंड सही नहीं है और वे पुलिस से सहयोग नहीं कर रहे थे।'
परिजन चिंतित
अब ऐसी स्थिति में दावे भले ही जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के किए जाते रहे हों, लेकिन स्थिति कहीं ज़्यादा ख़राब है। जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है उनके परिवार वालों की स्थिति कहीं ज़्यादा ख़राब है। पहले बिना कारण गिरफ़्तार किया गया। न तो यह बताया गया कि कब तक रखा जाएगा और न ही यह कि कहाँ रखा गया है। ये गिरफ़्तारियाँ अनुच्छेद 370 में फेरबदल से ठीक पहले और बाद में भी हुईं। अब तक ऐसी कई रिपोर्टें आ गई हैं कि इन्हें गिरफ़्तार कर जम्मू-कश्मीर से बाहर लखनऊ, वाराणसी और आगरा जैसे शहरों की जेलों में भेजा गया है।
जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है उनमें प्रमुख व्यापारी नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, चुने हुए राजनेता, शिक्षक और यहाँ तक कि 14 साल तक के छात्र भी शामिल हैं।
मीडिया रिपोर्टें हैं कि जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है वे न तो अपने परिजनों से बातचीत कर पा रहे हैं और न ही अपने वकीलों से। उन्हें कहाँ रखा गया है, यह भी पता नहीं है। सरकार की तरफ़ से कुछ ऐसा नहीं कहा गया है कि इन्हें किन आरोपों में गिरफ़्तार किया गया है और कब तक उन्हें हिरासत में रखा जाएगा।
इस गिरफ़्तारी से पहले फ़ोन और इंटरनेट लाइन को काट दिया गया था और हज़ारों की संख्या में सशस्त्र जवानों को तैनात किया गया था। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा करने से क्या विरोध-प्रदर्शन रुक जाएगा? क्या इसके लिए इस हद तक जाना ज़रूरी है कि अपने लोग अपनों से ही संपर्क नहीं कर पाएँ वह भी वैसी स्थिति में जहाँ हर रोज़ लोगों की जान जाने की आशंका बनी रहती है?
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