केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को शायद यह अंदाजा हो गया है कि वे कश्मीर के हालात सामान्य करने में फ़ेल साबित रहे हैं। हालांकि वे लगातार इस बात के दावे कर रहे हैं कि हालात सामान्य हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ-साथ भारतीय मीडिया में आ रही ख़बरें बताती हैं कि केंद्र और जम्मू-कश्मीर के दावे झूठे हैं। न्यूज़ 18 के मुताबिक़, सुरक्षा बलों के एक आतंरिक दस्तावेज़ से हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है। दस्तावेज़ से पता चला है कि कश्मीर में पिछले दो महीने में पत्थरबाज़ी की 306 घटनाएं हुई हैं। इस दस्तावेज़ से यह भी पता चला है कि पत्थरबाज़ी की घटनाओं में सुरक्षा बलों के लगभग 100 जवान भी घायल हुए हैं। घायल हुए जवानों में सेंट्रल पैरामिलिट्री फ़ोर्स के 89 जवान शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कहा है कि पथराव की छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कश्मीर घाटी में माहौल शांतिपूर्ण रहा है और 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद जैसा माहौल था, वैसा इस बार नहीं है और उससे कहीं कम विरोध प्रदर्शन हुए हैं। लेकिन यह दस्तावेज़ इसे ग़लत साबित करता है।
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बांट दिया था। तभी से वहां कई तरह की पाबंदियां लागू हैं। कश्मीर में 67 दिनों के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। सभी हिस्सों में मोबाइल फ़ोन नहीं हैं और इस वजह से लोगों को ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
बीडीसी चुनाव का बहिष्कार
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक ताज़ा ख़बर के मुताबिक़, राज्यपाल की ओर से घाटी में पर्यटकों की आवाजाही को खोलने के आदेश के बाद भी कोई पर्यटक यहां नहीं आया है। इसके अलावा बीडीसी चुनावों को लेकर भी राजनीतिक दलों के बीच कोई उत्साह नहीं है और बीजेपी को छोड़कर बाक़ी सभी राजनीतिक दलों ने घोषणा की है कि वे इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे।
श्रीनगर के मेयर और जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ़्रेंस (जेकेपीसी) के प्रवक्ता जुनैद अज़ीम मट्टू ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में सितंबर में भी कुछ इसी ओर इशारा किया था। मट्टू ने कहा था कि अगर कश्मीर में लाशें नहीं मिल रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हालात सामान्य हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हालात सामान्य होने का दावा करना पूरी तरह हक़ीक़त से परे है।
इससे पहले भी यह ख़बर आई थी कि लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से नाराज़ हैं और वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। घाटी में लोग अपनी दुकानों को भी खोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर दिया था। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को हिरासत में ले लिया था और अभी तक ये तीनों प्रमुख नेता हिरासत में हैं।
सरकार को ख़त पर ख़त
इस बीच, देश भर से केंद्र सरकार को कश्मीर को लेकर लोग खत लिख रहे हैं। देश के 284 प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ख़त लिख कर कहा है कि कश्मीर की स्थिति अस्वीकार्य है। ख़त पर दस्तख़त करने वालों में पत्रकार, अकादमिक जगत के लोग, राजनेता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग शामिल हैं। ख़त में केरल हाई कोर्ट के उस फ़ैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इंटरनेट को मौलिक अधिकार माना गया है।
कश्मीरियों के साथ लगातार हो रही सख़्ती पर अब भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) के 132 शिक्षकों, पूर्व छात्रों ने सरकार को ख़त लिखा है। ख़त में कहा गया है कि कश्मीरियों के साथ हो रही 'क्रूरता' ख़त्म हो।
केंद्र सरकार का यह भी दावा है कि घाटी में एक भी गोली नहीं चली है और न ही किसी एक व्यक्ति की इससे मौत हुई है लेकिन 11वीं कक्षा के एक छात्र असरार अहमद ख़ान के परिजनों ने कहा है कि असरार पैलेट गन की गोलियों से घायल हुआ था और इसी वजह से 4 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। जबकि सेना ने इससे इनकार किया था और कहा था कि वह पत्थरबाज़ी की घटना के दौरान मारा गया था।
इमरान के भाषण के बाद हुए थे प्रदर्शन
अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ ने कुछ ही दिन पहले ख़बर दी थी कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के भाषण के बाद कश्मीर में 24 घंटे के भीतर कुल 23 जगहों पर प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाज़ी भी की थी। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। ये प्रदर्शन बाटापोरा, लाल बाज़ार, सौरा, चानापोरा, बाग़-ए-मेहताब और कई दूसरी जगहों पर हुए। एक पुलिस अफ़सर ने ‘द हिंदू’ को बताया था कि कई प्रदशर्नकारी मसजिदों में घुस गए और उन्होंने वहाँ से भारत के विरोध में नारेबाज़ी की और धार्मिक गाने बजाये।
ऑल-वुमन फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग नाम की टीम ने हाल ही में कश्मीर की स्थिति का जायजा लिया था और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर में ज़िंदगी ख़ौफ़ और पाबंदी में क़ैद है।
अपनी राय बतायें