सरकार भले ही दावा करे कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ सामान्य है, वहाँ की स्थिति को लेकर शेष भारत के लोगों में गुस्सा और चिंता बढ़ती जा रही है। देश के 284 प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख कर कहा है कि कश्मीर की स्थिति अस्वीकार्य है। ख़त पर दस्तख़त करने वालों में पत्रकार, अकादमिक जगत के लोग, राजनेता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग शामिल हैं।
इस पत्र में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बाँटने का फ़ैसला लेने के पहले स्थानीय लोगों की राय नहीं ली गई। चिट्ठी में केरल हाई कोर्ट के उस फ़ैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इंटरनेट को मौलिक अधिकार माना गया है।
यह भी कहा गया है कि मानवता के आधार पर कश्मीर की स्थिति को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर भी यह अस्वीकार्य है। पत्र में कहा गया है :
यदि जम्मू-कश्मीर में लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले क़ानूनों पर बहस करने का अधिकार छीन लिया जाता है तो पूरे देश के लोगों के साथ ऐसा करने से सरकार को कौन रोक सकता है?
चिट्ठी में माँग की गई है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाएँ, राज्य की स्थिति और अनुच्छेद 370 पर निर्णय जनता पर छोड़ दिया जाए।
इस चिट्ठी पर दस्तख़त करने वालों में भारत के अलावा, अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और दूसरी जगहों के लोग शामिल हैं। इनमें प्रोफेसर, लेखक, अर्थशास्त्री और दूसरे बुद्धिजीवी हैं। स्वामीनाथन अय्यर, मणिशंकर अय्यर, अम्मू अब्राहम, पंकज बुटालिया, सुहास चकमा, रमेश चंद्र, जॉन चेरियन, अंतरा देब सेन, सागरिका घोष, जयति घोष, कमलनयन काबरा, कपिल काक वगैरह शामिल हैं।
एक दूसरी घटना में फ़िल्मकार से राजनेता बने कमल हासन ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह प्रधानमंत्री को मॉब लिन्चिंग रोकने के लिए चिट्ठी लिखने वालों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर करने के मामले में हस्तक्षेप करे। उन्होंने ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह एक सामान्य नागरिक की हैसियत से सर्वोच्च अदालत से अपील करते हैं कि वह एफ़आईआर को निरस्त कर न्याय और लोकतंत्र की रक्षा करे।
कमल हासन ने मक्काल नीधि मय्यम नामक राजनीतिक दल की स्थापना की है।
बता दें, नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फ़रपुर में एक वकील ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दी, जिसके बाद उन सभी लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर दिया गया।
इससे जुड़े एक और मामले में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर कहा है कि वह पत्र लिखने वालों पर मामला दर्ज किए जाने से बहुत परेशान हैं। उन्होंने मोदी से अपील की है कि वह अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आज़ाती के संवैधानिक सिद्धांत की रक्षा करें।
इससे जुड़े एक अलग घटनाक्रम में कला और संस्कृति जगत के 180 लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक चिट्ठी लिख कर उन्हें ख़त लिखने वालों के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला दर्ज करने पर सवाल उठाए हैं। इस पर दस्तख़त करने वालों में फ़िल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, फ़िल्मकार आनंद पटवर्द्धन, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और इतिहासकार रोमिला थापर भी हैं। इन लोगों ने सवाल उठाया है कि प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखना भला राजद्रोह कैसे हो सकता है? हस्ताक्षर करने वालों ने यह भी कहा है कि वे लोगों की आवाज़ बंद कराने की कोशिश के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहेंगे।
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि एफ़आईआर दर्ज करने के मामले में सरकार या प्रधानमंत्री की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें उनकी भारतीय जनता पार्टी का भी कोई हाथ नहीं है।
सवाल यह है कि सरकार का विरोध करने वालों को कुचलने और उनकी आवाज़ बंद करने की एक सोची समझी रणनीति चल रही है। जावड़ेकर की इस बात में दम हो सकता है कि एफ़आईआर दर्ज करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है, पर वह इससे कैसे इनकार कर सकते हैं कि बीजेपी से जुडे लोग और कई बार पार्टी के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से इस तरह के हमले किए जाते हैं। बीजेपी के साइबर आर्मी के कई लोगों को ख़ुद प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि यह सब कैसे और किसके इशारे पर हो रहा है।
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