पिछले हफ़्ते ही खुदरा महंगाई 8 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने की ख़बर आई थी और अब थोक महंगाई तीन दशक में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गयी है। वैसे तो थोक महंगाई का तत्काल व सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर तो नहीं पड़ता है, लेकिन बाद में इसका असर खुदरा महंगाई पर पड़ता है। यानी अभी जो थोक महंगाई बढ़ी है उसका देर से ही सही, आप पर भी पड़ेगा ही!
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी आंकड़ों से पता चला है कि अप्रैल में थोक महंगाई 15.08% हो गई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार इससे ज़्यादा महंगाई सितंबर 1991 में थी जब थोक मूल्य सूचकांक महंगाई 16.31 फ़ीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी थी। पिछले महीने यानी मार्च में थोक महंगाई 14.27 फ़ीसदी थी। थोक महंगाई बढ़ने का कारण सब्जियों, फलों, दूध और ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि है।
हीट वेव ने फलों, सब्जियों और दूध जैसे खराब होने वाले सामानों की कीमतों में तेजी ला दी है, जिससे प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ा।
थोक महंगाई सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति अब लगातार तेरहवें महीने दोहरे अंकों में रही है। वास्तव में थोक मूल्य मुद्रास्फीति एक साल में दोगुनी हो गई है। मार्च 2021 में यह सिर्फ़ 7.89 प्रतिशत थी। पिछले हफ्ते जारी आँकड़ों के मुताबिक, खुदरा महंगाई भी अप्रैल में 8 साल के उच्च स्तर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई है।
यह लगातार चौथा महीना है जब महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा से ऊपर है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई की दर लगातार चौथे महीने ख़तरे के निशान के पार है और लगातार बढ़ रही है।
बढ़ती महंगाई ने सरकार की परेशानी भी बढ़ा दी है। इसीलिए रिजर्व बैंक ने हाल ही में अचानक रेपो दर बढ़ाने का फ़ैसला कर लिया।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 4 मई को कहा था कि रेपो रेट बढ़ाकर 4.40 करने का फ़ैसला 2 से 4 मई के बीच हुई एक अहम बैठक में लिया गया। उन्होंने कहा था कि यह फ़ैसला बढ़ती महंगाई, दुनिया भर में चल रहे राजनीतिक तनाव, कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कमी की वजह से लिया गया है।
आम तौर पर रेपो रेट बढ़ाने का मतलब होता है कि बैंकों को रिजर्व बैंक अब कर्ज ज़्यादा ब्याज पर देगा। यानी इसका एक मतलब यह भी होता है कि अर्थव्यवस्था में पैसे की कमी की जाए और इससे लोग ख़र्च कम करना शुरू करेंगे और महंगाई काबू में आएगी। सरकार ने भले ही विकास दर से समझौता करते हुए महंगाई को काबू में करने की तरकीब निकाली हो, लेकिन इसका सीधा असर भी लोगों पर पड़ेगा। रेपो रेट बढ़ने का मतलब है कि ईएमआई महंगी हो गई है और बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं।
थोक महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का मतलब है कि फिर से रेपो दर बढ़ाई जा सकती है। जब आरबीआई अगली मौद्रिक नीति की बैठक करेगा तो जून में रेपो दर में फिर बढ़ोतरी की संभावना है।
अपनी राय बतायें