पहले जहाँ विशेषज्ञ कह रहे थे कि सुपर रिच यानी सबसे ज़्यादा धनाढ्य लोगों पर सरचार्ज लगाने का ग़लत असर पड़ेगा, वहीं अब केंद्र सरकार के भीतर ही इसके नकारात्मक असर को लेकर शंकाएँ जताई जा रही हैं। केंद्र सरकार में नीति निर्धारक ही यह मानते हैं कि सुपर रिच पर ज़्यादा सरचार्ज लगाने वाले इस बजट प्रस्ताव से नए निवेशक हतोत्साहित होंगे। इसका एक असर यह भी होगा कि भारत से ऐसे धनाढ्य लोगों के विदेश में बसने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। इसका साफ़ मतलब यह हुआ कि सरकार को इस सरचार्ज से जितनी आमदनी होगी उससे कहीं ज़्यादा निवेश दूर भागने से नुक़सान होगा। यह सरकार के इस दावे के उलट भी होगा जिसमें देश के विकास के लिए निजी भागीदारी की वकालत की गई है। क्योंकि यदि सुपर रिच पैसे का निवेश करने देश से बाहर जाएँगे और निवेशक हतोत्साहित होंगे तो फिर निजी भागीदारी तो होगी ही नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह बजट विरोधाभासी है जहाँ यह निजी भागीदारी को प्रमुखता देने की बात करता है वहीं उन्हें हतोत्साहित भी करता है?
यह सवाल इसलिए कि एनडीए सरकार में एक शीर्ष नीति निर्माता ने ही सवाल उठाए हैं और जिस पर अंग्रेज़ी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक रिपोर्ट छापी है। अख़बार के अनुसार, शीर्ष नीति निर्माता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस सरचार्ज का देश में निवेश पर ‘सबसे ख़राब’ प्रभाव पड़ेगा। उनके अनुसार नए ज़माने की 1 बिलियन डॉलर से ज़्यादा के मूल्यांकन वाली कंपनियाँ बाहर चली जाएँगी और उन उच्च गुणवत्ता वाली मानव पूँजी के प्रवाह को हतोत्साहित करेगा जो भारत में अभी आकर्षित होना शुरू ही हुई थी।
अख़बार के अनुसार, इस अधिकारी ने कहा, ‘जब हम 2 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाले लोगों पर अधिक सरचार्ज लगाते हैं तो वे भारत में निवेश नहीं करना चाहते हैं और विदेश में बसना पसंद कर सकते हैं... उम्मीद है जब मंत्री (निर्मला सीतारमण) संसद में वित्त विधेयक पर अपना जवाब देंगी तो इन प्रस्तावों में कुछ बदलाव किए जाएँगे।’ अधिकारी ने कहा कि सरकार को नॉर्वे जैसे विकसित देशों में कर दरों को नहीं देखना चाहिए और यह तर्क नहीं देना चाहिए कि हमारे पास दरें कम हैं, बल्कि चीन, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ तुलना करें जो प्रतिस्पर्धी कर दरों की पेशकश करते हैं। नॉर्वे में प्रति व्यक्ति आय ऊँची है, विशाल सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क और अन्य सुविधाएँ भी हैं जो निवेशकों को भारत में नहीं मिलती हैं।
कर 42.7 फ़ीसदी तक
अपने पहले बजट को पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि एक वर्ष में 5 करोड़ रुपये से अधिक की आय वाले व्यक्ति अपने कर पर 37.5 प्रतिशत का सरचार्ज का भुगतान करेंगे। यह उनके 30 प्रतिशत कर के अलावा है। यदि कर और सरचार्ज को जोड़ दिया जाए तो यह कुल मिलाकर 41.1 प्रतिशत (प्रत्येक 100 रुपये पर 30 रुपये कर, और 30 रुपये के इस कर पर 37.5 प्रतिशत सरचार्ज, जो 11.1 रुपये है) पर पहुँच जाता है। उसमें विभिन्न उपकरों को जोड़ें तो यह कर की दर 42.7 प्रतिशत तक पहुँच जाती है।
सरकार का तर्क कितना वाजिब?
सरकार का कहना है कि दो करोड़ रुपये से ज़्यादा सालाना कमाई करने वाले लोगों पर टैक्स बढ़ाने के बावजूद यह कई देशों के मुक़ाबले काफ़ी कम है। सरकार ने आँकड़े पेश कर बताया है कि कनाडा, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में 'सुपर-रिच' लोगों पर कहीं ज़्यादा टैक्स है। हालाँकि इसके विरोध में एक दलील यह है कि इन देशों में ज़्यादा टैक्स लिया जाता है तो साथ में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी मुफ़्त सुविधाएँ भी मुहैया कराई जाती हैं।
सरकार की तरफ़ से एक तर्क यह भी दिया गया कि सुपर-रिच श्रेणी में आने वाले लोग मध्यम वर्ग में आने वाले लोगों के पीछे छिपने की कोशिश करते हैं। ऐसे में जो लोग ज़्यादा कमाते हैं, उन्हें राष्ट्र के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि निवेशक वहीं पैसा लगाता है जहाँ उसे ज़्यादा मुनाफ़ा होता है। यदि निवेशकों को विकसित देशों जैसी सुविधाएँ नहीं मिलेंगी और टैक्स उसके बराबर देने पड़ेंगे तो कोई भी निवेशक हतोत्साहित होगा।
निजी भागीदारी पर ज़ोर क्यों?
बजट में अधिकांश प्रस्ताव - जैसे 400 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट कर की दर कम करना, विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई खोलना, रेलवे में निजी भागीदारी की अनुमति देना, घरेलू उद्यमियों के लिए संसाधनों को मुक्त करने के लिए विदेशों से उधार लेना, ये सब निवेश आकर्षिक करने के लिए हैं। लेकिन आयकर पर सरचार्ज का इसके विपरीत प्रभाव पड़ता है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, निवेश के प्रवाह पर नज़र रखने वाले एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए ‘सक्रिय रूप से’ काम कर रही है कि विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के प्रयासों के साथ-साथ घरेलू निवेशकों के लिए निवेश का माहौल बेहतर हो। ऐसे समय में जब वित्तीय और मानव पूँजी दोनों एक जगह नहीं ठहरते, भारत को छोड़कर विदेश में जाने की आशंका निराधार नहीं है।
बता दें कि बाजार अनुसंधान समूह न्यू वर्ल्ड वेल्थ की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत करोड़पति लोगों के पलायन के मामले में शीर्ष 5 देशों की सूची में दूसरे स्थान पर है। पलायन करने वाले भारतीयों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रही है। 2015 में जहाँ 4000 करोड़पतियों ने भारत को छोड़ा था वहीं 2017 में 7,000 ऐसे लोग भारत छोड़कर चले गए।
सरचार्ज से फ़ायदा या नुक़सान?
सुपर रिच पर लगाए गए सरचार्ज के माध्यम से 12,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलने का आकलन किया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि राजस्व आने से ज़्यादा नुक़सानदेह निवेश पर इसके विपरीत प्रभाव के रूप में होगा। नया टैक्स निवेश ट्रस्टों को प्रभावित करेगा, जिसके माध्यम से कई विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजारों में पैसा लगाते हैं। भारत छोड़कर बाहर जाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ेगी। ऐसे में ज़ाहिर तौर पर सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर चुनौती बढ़ेगी ही, कम नहीं होगी।
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