क्या है मामला?
बीते 14 साल से सुप्रीम कोर्ट में एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की परिभाषा का मामला चल रहा था। दूरसंचार कंपनियों का कहना था कि इसमें लाइसेंस और स्पेक्ट्रम फ़ीस ही होनी चाहिए, और कुछ नहीं। लेकिन सरकार का तर्क था कि इसमें लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के अलावा यूजर चार्जेज, किराया, लाभांश (डिविडेंड्स) और पूँजी बिक्री पर मिलने वाला लाभांश भी शामिल किया जाना चाहिए। अदालत के एक खंडपीठ ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है।
उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस 92 हज़ार करोड़ रुपये के अतिरिक्त बोझ से दूरसंचार कंपनियों की ब्रॉडबैंड सेवाएँ, नेटवर्क विस्तार, डिजिटल इंडिया और दूसरी योजनाएँ मुश्किल में पड़ सकती हैं। इस चक्कर में वे 5-जी भी लागू नहीं कर पाएंगी।
बंद हो चुकी कंपनियाँ
इस मामले में एक दिलचस्प पेच यह है कि इस रकम का 46 प्रतिशत हिस्सा उन कंपनियों को चुकाना है, जो अब अस्तित्व में ही नहीं हैं। रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा टेलीसर्विसेज़, एयरसेल जैसी कंपनियाँ बंद हो चुकी हैं। इसका नतीजा यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर एयरटेल, वोडाफ़ोन और आइडिया पर पड़ेगा। ये कंपनियाँ बुरी स्थिति में हैं और इनका कारोबार धीमा चल रहा है। इन पर कर्ज़ अलग से है। एयरटेल पर जून 2019 तिमाही में 2 हज़ार करोड़ रुपये तो वोडाफ़ोन पर 4,873 करोड़ रुपये का कर्ज़ है। अब उन्हें एजीआर के तहत पैसे भी देने होंगे।
दूरसंचार उद्योग की कंपनियों का सामान्य हाल समझने के लिए एक नज़र सरकारी उपक्रमों बीएसएनल और एमटीएनएल पर डाल सकते हैं। एमटीएनएल को बीते 10 में से 9 साल में घाटा उठाना पड़ा जबकि बीएसएनएल को इस पूरी अवधि में ही नुक़सान हुआ है।
सरकारी पैकेज
बिज़नेस स्टैंडर्ड का कहना है कि इन दोनों सरकारी कंपनियों पर कुल 40 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ है। यह बढ़ता जा रहा है। बीते कई सालों से घाटे में चल रही ये कंपनियाँ न तो मुनाफ़े की ओर बढ़ रही हैं और न ही यह कर्ज़ चुकाने की स्थिति में हैं। ये कंपनियां अब बंद होने की कगार पर हैं।
कहाँ हैं टेलीनॉर, एतिसालात?
इसके पहले विदेशी पूँजी निवेश और बेहद धूम धड़ाके से जो कंपनियाँ 2-जी के समय शुरु की गई थीं, उनमें से ज़्यादातर बंद हो चुकी हैं। नॉर्वे की कंपनी टेलीनॉर, एतिसालात बड़ी कंपनियाँ थीं, जो बंद हो चुकी हैं। अनिल अंबानी की कंपनी रियालंस कम्युनिकेशन्स तो दिवालिया होने ही जा रही है। एयरटेल, एयरसेल, वोडाफ़ोन फटेहाल हैं।
पूरे उद्योग के संकट के बीच एक मात्र रिलायंस जियो है, जो बेहतर स्थिति में है। मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली इस कंपनी का गठन 2016 में हुआ और उस समय से अब तक यह दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ती ही जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मद्देनज़र रिलायंस जियो को सिर्फ 13 करोड़ रुपये देने हैं, जो बहुत ही मामूली रकम है।
रिलायंस जियो को पिछले साल सितंबर तिमाही में 681 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा हुआ था। इस साल इसमें 90 प्रतिशत का इजाफ़ा हो सकता है। ऐसा हुआ तो इस साल सितंबर तिमाही के नतीजों में इसे 1,293 करोड़ रुपये का लाभ हो सकता है।
जियो को होगा फायदा!
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से सबसे ज़्यादा फ़ायदा जियो को ही होगा। इसकी वजह यह है कि दूसरी कंपनियाँ रिलायंस के बाज़ार में आने के बाद से बीते 3 साल में उससे व्यावसायिक होड़ में नहीं टिक पा रही हैं। कई तो पहले से ही संकट में हैं, कई की स्थिति तीन साल में खराब हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद जो पैसा उन्हें चुकाना होगा, उसके बाद ये कंपनियाँ न विस्तार कर पाएंगी और न ही कोई योजना लागू कर पाएंगी। सरकार जल्द ही 5-जी लाने वाली है। ये कंपनियाँ इसमें पैसे नहीं लगा पाएंगी, जो लगा देंगी वे रिलायंस के सामने टिक नहीं पाएंगी।
इसे एक इंडीकेटर से समझा जा सकता है। जिस दिन यानी 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया, रिलायंस को छोड़ तमाम टेलीकॉम कंपनियों के शेयरों की कीमतें बुरी तरह टूटीं। वोडाफ़ोन की कीमत 27 प्रतिशत गिर कर 4.10 रुपये पर आ गई, भारती एयरटेल 9 प्रतिशत कम होकर 325.60 रुपये पर आ गई। पर रिलायंस के शेयर की कीमत बंबई स्टॉक एक्सचेंज में 1.77 प्रतिशत बढ़ी।
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