रुपया गिरते क्यों जा रहा है? डॉलर के मुक़ाबले रुपया सोमवार को अब तक के सबसे निचले स्तर पर 86.70 के स्तर तक पहुँच गया। डॉलर लगातार मज़बूत होता जा रहा है। अब बाज़ार की स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया और कमज़ोर हो सकता है।
रुपया के गिरने के बीच कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हमला किया है और कहा है कि सरकार से अब रुपया संभाले नहीं संभल रहा है। पार्टी ने नरेंद्र मोदी के उस भाषण को याद दिलाया है जब वह प्रधानमंत्री नहीं बने थे और वह तत्कालीन मनमोहन सरकार पर हमलावर थे। कांग्रेस ने अब रुपया के कमजोर होने पर एक वीडियो जारी किया है जिसमें पीएम मोदी का पहले का बयान है और इसने एक पोस्ट की है, 'मोदी का नया रिकॉर्ड। एक डॉलर = 86.53 रुपये।'
मोदी का नया रिकॉर्ड 👇🏼
— Congress (@INCIndia) January 13, 2025
1 डॉलर = 86.53 रुपए pic.twitter.com/iGqe3JLXs5
'मोदी जी अपने ही खोदे गड्ढे में फंसते जा रहे हैं'
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है, 'जब मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला था तब वह 64 वर्ष के होने वाले थे और डॉलर के मुक़ाबले रुपया 58.58 पर था। उस समय वह रुपया को मज़बूत करने को लेकर बहुत कुछ बोला करते थे- उन्होंने इसके मूल्य में गिरावट को पूर्व पीएम की उम्र से भी जोड़ दिया था। अब देखिए, मोदी जी इस वर्ष के अंत तक 75 के होने की तैयारी ही कर रहे हैं और रुपया पहले ही डॉलर के मुक़ाबले 86 पार चुका है। जैसे-जैसे रुपया गिरता जा रहा है, मोदी जी अपने ही खोदे गड्ढे में फंसते जा रहे हैं।'
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने रुपया के गिरने पर पीएम मोदी पर हमला किया है। उन्होंने कहा है, 'रुपया गिरता जा रहा है। ग्रोथ थमती जा रही है। महंगाई बहुत है। बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। किसान परेशान हैं। इन्हें परवाह ही नहीं है। इन्हें परवाह किसकी है? सिर्फ़ अडानी की।'
उन्होंने एक अन्य पोस्ट में कहा है, 'सुना मोदी जी के दफ़्तर और घर में खुदाई चल रही है! वो रुपए के साथ गिरते गिरते जो मोदी जी की प्रतिष्ठा गर्त में जा चुकी है उसकी खोज जारी है। जानकारी के लिये बता दूँ पिछले 10 सालों में रुपया 58 से गिरते गिरते अब 87 पहुँचने ही वाला है।'
सुना मोदी जी के दफ़्तर और घर में खुदाई चल रही है?!
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) January 13, 2025
वो रुपए के साथ गिरते गिरते जो मोदी जी की प्रतिष्ठा गर्त में जा चुकी है उसकी खोज जारी है
जानकारी के लिये बता दूँ पिछले 10 सालों में रुपया 58 से गिरते गिरते अब 87 पहुँचने ही वाला है pic.twitter.com/DHsgSa4tmc
सरकार के सामने गंभीर चुनौती
पिछले महीने पदभार ग्रहण करने के बाद आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा को पहली बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया 87 के स्तर को छूने वाला है। यह जीडीपी वृद्धि में अड़चन डालेगा। इस वित्त वर्ष में कम ब्याज दरों के माध्यम से 6.4 प्रतिशत तक धीमा होने की उम्मीद है। पिछले कुछ समय में रुपया लगातार अपने निम्नतम स्तर को छू रहा है।
रुपया पर दबाव डॉलर के मजबूत होने के कारण आया है। यह अनियमित एफ़पीआई प्रवाह से और भी बढ़ गया है। अमेरिकी दरों और सरकारी नीतियों पर अनिश्चितता के कारण डॉलर के मजबूत बने रहने की संभावना है, क्योंकि निकट भविष्य में रुपये पर दबाव जारी रहने की संभावना है।'
आर्थिक मामलों की रिपोर्टिंग करने वाले परिष्ठ पत्रकार राजेश महापात्रा कहते हैं कि एफ़डीआई का मौजूदा रुझान ही बरकरार रहा तो रुपया डॉलर के मुक़ाबले और कमजोर होता जाएगा। वह रुपये के 100 के आँकड़े को छूने का अंदेशा जता रहे हैं। वह कहते हैं कि रुपये के गिरने से कई चीजें प्रभावित होंगी और महंगाई बढ़ने के आसार रहेंगे। महंगाई बढ़ने का मतलब है कि ब्याज दर कम होने की संभावना नहीं है और हो सकता है कि यह बढ़े ही। यानी एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था चक्रव्यूह में फँस गयी है।
वह एफ़डीआई में गिरावट को भी इससे जोड़कर देखते हैं। आरबीआई के आँकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारत में शुद्ध एफडीआई प्रवाह घटकर 14.5 बिलियन डॉलर रह गया, जो 2012-13 के बाद सबसे कम है। तब यह 13.8 बिलियन डॉलर था। 2012-13 से 2023-24 तक शुद्ध एफडीआई महामारी के बाद से साल दर साल धीमा होता जा रहा है। 2020-21 के अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान शुद्ध एफडीआई 34 बिलियन डॉलर था, जो 2021-22 में घटकर 32.8 बिलियन डॉलर, 2022-23 में 27.5 बिलियन डॉलर और 2023-24 में 15.7 बिलियन डॉलर रह गया।
एफ़पीआई यानी फोरेन पोर्टफोलियो इंवेस्टमेंट में भी भारी गिरावट आई है। 2024 में एफ़पीआई यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के माध्यम से सिर्फ 1600 करोड़ रुपये आए। पिछले साल यह 1.71 लाख करोड़ था। यानी 99 फीसदी की गिरावट आ गई।
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड यानी एनएसडीएल के अनुसार, 27 दिसंबर 2024 तक एफपीआई ने भारतीय इक्विटी में शुद्ध रूप से 1656 करोड़ रुपये का निवेश किया। हालांकि विदेशी निवेशक शेयर बाजार में प्रमुख रूप से विक्रेता रहे, लेकिन वे प्राथमिक बाजार में खरीदार बने रहे।
दूसरी बड़ी चिंता की वजह कमजोर तिमाही के नतीजे हैं। कंपनियों की अर्निंग ग्रोथ एक बड़ी समस्या बनकर आई है। अभी तक अधिकतर कंपनियों के सितंबर तिमाही के नतीजे अनुमान से कम रहे हैं। इस बीच भारत की जीडीपी में भी गिरावट आने का अनुमान लगाया गया है इसको 6.4 फीसदी रहने की संभावना है।
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