मुकेश अंबानी का रिलायंस समूह एक बार फिर विवादों में है। नीदरलैंड के जाँचकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि डच कंपनी ए हैक एन. एल. ने रिलायंस गैस ट्रांसपोर्टेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को सामानों की आपूर्ति करने में बढ़-चढ़ा कर और ग़लत तरीके से बिल बनाया और इस तरह से 1.1 अरब डॉलर का घपला किया। इतना ही नहीं, उस कंपनी ने यह पैसा नियम क़ानूनों का उल्लंघन कर विदेश भेजा और सिंगापुर की कंपनी बायोमेट्रिक्स मार्केटिंग लिमिटेड के पास जमा रखा और यह कंपनी कथित रूप से रिलायंस समूह से जुड़ी हुई है। इस तरह रिलायंस पर बढ़ा-चढ़ा कर बिल बनाने, उससे कमाए पैसे को ग़लत तरीके से बाहर भेजने यानी मनी लॉन्डरिंग करने और एक दूसरी रिलायंस कंपनी में ग़लत तरीके से रखने के आरोप लगे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने यह ख़बर दी है।
रिलायंस गैस ट्रांसपोर्टेशन का नाम बदल कर ईस्ट-वेस्ट पाइपलाइन कर दिया गया है। रिलायंस समूह और ईस्ट-वेस्ट पाइपलाइन दोनों ने ही इसका खंडन किया है और किसी तरह के घपले के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
मामला क्या है?
नीदरलैंड सरकार की एजेंसी फ़िस्कल इंटेलीजेन्स एंड इनवेस्टीगेशन सर्विस एंड इकोनॉमिक सर्विस (एफ़आईओडी-ईसीडी) ने पूछताछ करने के बाद ए हैक एन. एल. के तीन कर्मचारियों को गिरफ़्तार किया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया।
साल 2006-2008 के दौरान ए हैक एन. एल. ने भारत में रिलायंस के लिए गैस पाइपलाइन बनाने की ज़रूरी चीजें देने में बढ़ा-चढ़ा कर बिल पेश किया था, इन आरोपों के तहत इन तीन कर्मचारियों को गिरफ़्तार किया गया।
डच जाँचकर्ताओं के दफ़्तर ने कहा है कि इन पूर्व कर्मचारियों ने कथित तौर पर एक करोड़ डॉलर की घूस ली है।
जाँचकर्ताओं का कहना है कि ए हैक एन. एल. की कंपनी ए हैक एन. एल. कंट्रैक्टर्स एशिया ने चार बीमा कंपनियों के साथ मिलीभगत से फ़र्जी बीमा दावे कर 1.20 अरब डॉलर का घपला किया है। इसमें से 1.10 अरब डॉलर का निवेश रिलायंस गैस इन्फ़्रास्ट्रक्चर में ‘बीयरर डॉक्यूमेंट’ के ज़रिए किया गया।
रिलायंस की भूमिका?
‘बीयरर डॉक्यूमेंट’ दरअसल ‘बीयरर चेक’ की तरह होता है। यानी, यह जिसके पास होता है, वह उस समय कंपनी के उस हिस्से के निवेश का मालिक होता है। इसे आसानी से ट्रांसफ़र किया जा सकता है। ईस्ट वेस्ट पाइपलाइन लिमिटेड ने कहा है कि भारत में यह पाइपलाइन किसी निजी कंपनी ने बनाई है, जिसमें सरकार का कोई पैसा नहीं लगा है।
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‘सरकार का कोई पैसा इसमें नहीं लगा है। प्रमोटरों ने सभी बैंकों और वित्तीय कंपनियों को पूरा पैसा चुका दिया है। परियोजना पर काम करते हुए समय किसी तरह की मनी लॉन्डरिंग नहीं की गई है। इस तरह की गड़बड़ी की बात करना अर्थव्यवस्था की समझ के परे है।’
ईस्ट वेस्ट पाइपलाइन लिमिटेड का बयान
कंपनी ने आगे जोड़ा, ‘ईस्ट वेस्ट पाइपलाइन परियोजना हर नियम क़ानून और प्रावधान को ध्यान में रख कर पूरी की गई है। हर तरह का कर और शुल्क पहले ही चुका दिया गया है।’
दुबई, स्विटजरलैंड और कैरीबियन द्वीप समूह में मौजूद देशों में काम कर रही 15 कंपनियों की मदद से पैसा बायोमेट्रिक्स तक पँहुचाया गया।
यह भी पाया गया है कि इन कंपनियों में से कुछ से हुए कामकाज का फ़ायदा जेम्स वॉलफ़ेन्जॉ नामक डच नागरिक को मिला है। यह दिलचस्प है कि वॉलफ़ेन्जॉ रिलायंस समूह से पहले भी जुड़े हुए रहे हैं। रिलायंस की तमाम ऑफ़शोर कंपनियों की स्थापना इसी व्यक्ति ने 2015 में की थी।
डच जाँचकर्ताओं ने कहा है कि इस पूरे मामले का ख़ामियाज़ा भारतीयों को भुगतना होगा क्योंकि गैस पाइपलाइन परियोजना पर अधिक खर्च होने से गैस की कीमत बढ़ जाएगी, यह कीमत उनसे ही वसूली जाएगी।
लेकिन, ईस्ट वेस्ट पाइपलाइन ने इससे इनकार किया है कि पाइपलाइन बनाने में ज़्यादा पैसा खर्च होने की वजह से गैस की कीमत भी बढ़ जाएगी। इसने कहा है कि भारत में मौजूदा क़ीमत नियम को देखते हुए यह मुमकिन ही नहीं है।
रिलायंस का जवाब
इसके साथ ही रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने इस पूरे मामले से ही पल्ला झाड़ लिया है। कंपनी ने एक बयान में कहा, ‘हमारा ध्यान मीडिया में छपी ख़बर की ओर गया है।
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हम यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ या इसकी किसी आनुषंगिक कंपनी ने किसी डच कंपनी के साथ मिल कर भारत में 2006 में कोई पाइपलाइन नहीं बनाई है। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ हर तरह के नियम-क़ानून का पालन करते हुए ही कोई काम करती है और इसके किसी ग़लत काम करने की बात पूरी तरह ग़लत है।’
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड का बयान
राजनीतिक भूचाल?
इंडियन एक्सप्रेस की यह ख़बर अर्थजगत की ख़बर लगती है, पर इसके राजनीतिक निहितार्थ और प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है। ठीक चुनाव के पहले ये आरोप रिलायंस पर लगे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक नहीं, कई बार कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अंबानी भाइयों के रिश्ते हैं और वह उनके व्यापारिक हितों की रक्षा करते हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि 'चौकीदार पूंजीपतियों के हितों की चौकीदारी करता है, उसे किसानों-मजदूरों से कोई मतलब नहीं है।'
यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस पार्टी इस नए खुलासे को राजनीतिक मुद्दा बनाती है या नहीं और उसे किस तरह आम जनता तक पहुँचाती है।
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