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आर्थिक बदहाली के बीच क्यों आसमान छू रहा है भारत का शेयर बाज़ार?

रिजर्व बैंक के गवर्नर इशारों में कह चुके थे, अब उन्होंने साफ़- साफ़ कह दिया है। मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक में जो चर्चा हुई उसका ब्योरा सामने आया तो पता चला है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि शेयर बाज़ार में गिरावट आनी तो तय है, सिर्फ इतना पता नहीं है कि वह कब आएगी। 
यह पहली बार नहीं है। पिछले एक महीने में यह दूसरा मौका है जब गवर्नर की तरफ से यह बात कही गई है कि भारत की ज़मीनी सच्चाई, अर्थव्यवस्था की हालत और बाज़ार की रफ्तार के बीच कोई तालमेल नहीं दिख रहा है। 

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आसमान छूता शेयर बाज़ार

यह हाल भारत का ही नहीं दुनिया भर के शेयर बाज़ारों का है। एक तरफ अर्थव्यवस्था की बदहाली बढ़ रही है, सरकारों पर बेरोजगारी भत्ता बाँटने का दबाव बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ शेयर बाज़ार लगातार आसमान फाड़ने की कोशिश में लगे हैं।
जो चिंता आरबीआई गवर्नर को दिख रही है वो दुनिया भर में अर्थशास्त्रियों और वित्तीय संस्थानों को भी दिख रही है। विश्व बैंक ने साफ किया है कि भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट का जो अनुमान उसने जारी किया था, जल्दी ही वह उसे बदल सकता है और हालात उससे कहीं ज्यादा खराब हैं जैसा सोचा गया था।
विश्व बैंक ने कहा था कि भारत की जीडीपी इस साल ३.२ प्रतिशत कम हो सकती है। दूसरे अनेक संस्थान इसमें 5 प्रतिशत से लेकर 14 प्रतिशत तक की गिरावट की आशंका जता चुके हैं।
सीएमआईई का अनुमान है कि जीडीपी में कम से कम 5.5 प्रतिशत की कमी आनी तो तय है, और हालात जल्दी नहीं सुधरे तो यह आँकड़ा और बुरा हो सकता है।

50 लाख बेरोज़गार

सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि वेतनभोगी तबका यानी पक्की नौकरी में लगे लोग बेरोजगार हो रहे हैं। जुलाई महीने में ही ऐसे 50 लाख लोगों की नौकरी चली गई है। सीएमआईई के प्रमुख महेश व्यास का कहना है कि नौकरियों  में भी वे नौकरियाँ ज्यादा जा रही हैं जिन्हें अच्छी नौकरी कहा जाता है, यानी मोटी कमाई वाले काम कम हो रहे हैं।
पच्चीस से कम उम्र के नौजवान बेरोज़गार हो रहे हैं। पैंतीस से पचपन साल की उम्र वाले लोग हटाए जा रहे हैं। और जिनका काम बच भी गया उनकी तनख्वाह काटी जा रही हैं। 

ग़रीबी रेखा से नीचे

मोटी तनख्वाह वालों की कमाई बंद या कम हो रही है तो कम कमानेवालों का हाल सोच लीजिए। अप्रैल मई में देश भर की सड़कों पर पैदल मार्च कर रहे भारत को देखकर काफी कुछ समझ में आया होगा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ ने अप्रैल में ही कोविड संकट का हिसाब लगाकर एक रिपोर्ट बनाई जिसमें कहा गया था कि इस तालाबंदी से पैदा हुआ आर्थिक संकट भारत में 40 करोड़ लोगों को वापस गरीबी की रेखा के नीचे धकेल सकता है।
तब से अब तक बेहद गरीब लोगों या दिहाड़ी मजदूरों की हालत में कुछ सुधार तो आया है। लेकिन उनसे ऊपर के लोगों के लिए आशंकाएं बहुत बढ़ गई हैं। खासकर नौकरी, वेतन, क़र्ज़ और ईएमआई के चक्र में फंसे लोगों के लिए।

सीएमआईई सर्वे

सीएमआईई का ही हाउसहोल्डर सर्वे बताता है कि आम भारतीय परिवार का हाल क्या है और वो क्या करने की सोच रहे हैं। जहां आम तौर पर इसमें 30 प्रतिशत से ऊपर लोग अगले छह महीने में फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसा कोई ज़रूरत का सामान खरीदने की इच्छा जताते थे, इस वक्त यह गिनती गिरकर 3 प्रतिशत पर आ चुकी है।
साफ है कि लोग अपना पैसा बचाकर रखना चाहते हैं और खर्च करने को तैयार नहीं हैं। 

इसके बावजूद शेयर बाजार क्यों भाग रहा है। इसपर भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में बहस चल रही है। आरबीआई गवर्नर ही नहीं, एनएसई के सीईओ भी इसपर सवाल उठा चुके हैं। फिर भी अगर लोग पैसा लगाते जा रहे हैं तो ज़ाहिर है वो बेहतर रिटर्न के लिए बड़ा जोखिम मोल लेने को तैयार हैं।
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आलोक जोशी
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