इसकी पूरी आशंका है कि बहुत जल्द यानी आम चुनाव ख़त्म होते ही पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें एक बार फिर बढ़ जाएँ। चुनाव के बीच क़ीमतें बढ़ने से सत्तारूढ़ दल को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े, इसके लिए सरकार पेट्रोलियम कंपनियों पर नुक़सान उठा कर भी फ़िलहाल दाम न बढ़ाने का दबाव बनाए हुए है, पर चुनाव ख़त्म होते ही वह इन कंपनियों को हरी झंडी दिखा देगी और इससे आम जनता की जेब कटेगी, यह लगभग तय माना जा रहा है। चुनाव का नतीजा चाहे जो हो और सरकार किसी की बने, क़ीमतों में इस बढ़ोतरी को टालना मुश्किल होगा।
अमेरिका ने साफ़ तौर पर कह दिया है कि ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध की वजह से उससे कुछ भी न खरीदने से जो छूट भारत को अब तक मिल रही थी, वह 30 अप्रैल को ख़त्म कर दी जाएगी, यानी भारत ईरान से तेल नहीं खरीद पाएगा। यदि वह ऐसा करेगा तो अमेरिका उसके ख़िलाफ़ दंड का प्रावधान लागू कर देगा। भारत इस पर राज़ी हो गया है कि वह 1 मई से ईरान से तेल नहीं खरीदेगा। इसका क्या असर पड़ेगा, यह जानना दिलचस्प है।
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क्या होगा असर?
ईरान से कच्चा तेल खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश भारत है। यह अपनी कुल ज़रूरत का लगभग 84 प्रतिशत तेल आयात करता है और उसका तक़रीबन 10 प्रतिशत ईरान से लेता है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान भारत ने ईरान से 2.40 करोड़ मीट्रिक टन कच्चा तेल लिया था। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल का था, जिसने लगभग 90 लाख टन तेल अकेले ईरान से आयात किया था। मंगलोर रिफ़ाइनरी लगभग पूरी तरह ईरानी तेल पर ही निर्भर है, दूसरे कारखानों में भी वहाँ से आयात किया तेल साफ़ किया जाता है।सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 74 डॉलर प्रति बैरल थी। एक बैरल लगभग 159 लीटर के बराबर होता है।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, यदि भारत, ईरान से तेल नहीं लेगा तो कच्चे तेल की क़ीमत में लगभग 10 प्रतिशत का इज़ाफा हो जाएगा। यानी कच्चे तेल का दाम लगभग 7 डॉलर प्रति बैरल बढ़ जाएगा।
लेकिन सऊदी अरब या यूएई का तेल ईरान की तुलना में महँगा होगा, यह एकदम साफ़ है। इसकी वजह यह है कि ईरान से कच्चा तेल भारत को बग़ैर बीमा प्रीमियम की रक़म अदा किए मिलता है, इसे तेल लेने के 60 दिन के अंदर भुगतान करने की छूट मिलती है यानी तुरन्त भुगतान नहीं करना होता है।सऊदी अरब या यूएई के साथ तेल लेने पर यह छूट नहीं मिलेगी। दूसरी बात यह है कि ईरान में चाबहार बंदरगाह के चालू हो जाने के बाद भारत को तेल की ढुलाई पर कम खर्च करना होता है।
ईरान से तेल सिर्फ़ भारत ही नहीं, दूसरे देश भी नहीं ले सकेंगे। इसका नतीजा यह होगा कि पूरी दूनिया में तेल की क़ीमत एक बार फिर बढ़ेगी, क्योंकि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (ऑर्गनाइजेश ऑफ़ ऑयल एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़) ने साफ़ कह दिया है कि तेल उत्पादन में वृद्धि किसी क़ीमत पर नहीं की जाएगी।
तेल व्यापार बहुत दिनों के बाद धीरे-धीरे संकट से उबर रहा है, अभी भी यह दो साल पहले के स्तर पर नहीं पहुँचा है। ऐसे में यदि कच्चे तेल की क़ीमत और मजबूत होती है तो यह उन देशों के लिए वरदान साबित होगा, जिनकी अर्थव्यवस्था इस पर टिकी हुई है। यदि तेल की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ी तो भारत को भी ज़्यादा चुकाना होगा। इसका असर यह होगा कि तेल की क़ीमत 10 प्रतिशत नहीं, उससे अधिक बढ़ेगी। यह भारत के लिए दुहरी मार होगी।
भारत सरकार तेल बेचने वाली कंपनियों पर दबाव बना सकती है कि पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत न बढ़ाए, भले ही उसे घाटा उठाना पड़े। ये सरकारी कंपनियाँ हैं और सरकार की बात मान ही लेंगी, क्योंकि उनका प्रमुख सरकारी कर्मचारी होता है और सरकार की इच्छा से उसकी नौकरी लगती या छूटती है।
लेकिन एक सीमा के बाद क़ीमतें बढ़ानी पड़ेंगी। इसकी एक वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें पिछले कुछ समय से लगतार बढ़ रही हैं, दिसंबर से ही भारत को पहले की तुलना काफ़ी ज़्यादा भुगतान करना पड़ रहा है। कंपनियाँ घाटा उठा रही हैं। अब जल्द ही वे अपने हाथ खड़े कर देंगी और क़ीमत बढ़ाने की तैयारियाँ करेंगी। हो सकता है कि यह सब करते हुए चुनाव निकल जाए, पर उसके बाद पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमतें बढ़ने से कोई नहीं रोकेगा, सरकार भी नहीं।
इसका असर सिर्फ़ तेल की क़ीमत पर ही नहीं पड़ेगा, रुपया और टूटेगा।
पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनलिसिस सेल के मुताबिक़, 31 मार्च को ख़त्म हुए साल में भारत को तेल आयात पर लगभग 125 अरब डॉलर यानी लगभग 881,282 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े हैं। विदेशी मुद्रा में भुगतान करने की वजह से रुपये पर दबाव पड़ता है। इससे रुपया अपने मौजूदा स्तर से और नीचे जाएगा, यह तय है।
रुपया कितना टूटेगा, यह कहना अभी मुश्किल है, क्योंकि इसके दूसरे कई कारण भी होते हैं। पर यह तो साफ़ है कि रुपये की क़ीमत गिरेगी। रुपये के कमज़ोर होने से पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 1 डॉलर बढ़ने से भारत को कुल तेल आयात पर 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करना होते हैं। इस हिसाब से यदि तेल की क़ीमत 10 प्रतिशत यानी 7 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी तो भारत के तेल आयात बिल में लगभग 70,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त जुड़ जाएँगे। इससे रुपये की क़ीमत गिरेगी, साथ ही भुगतान संतुलन और बिगड़ेगा। अर्थव्यवस्था पर इसके दूसरे दूरगामी असर होंगे।
यह तो बाद की बात है, फ़िलहाल लोग अपनी जेब ढीली करने को तैयार रहें। पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत बढ़ेगी, यह तय है। बस चुनाव ख़त्म होने का इंतजार कीजिए।
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