पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें एक बार फिर बहुत जल्दी बढ़ने वाली हैं। मुमकिन है कि यह बढ़ोतरी एक-दो दिन में ही हो जाए। यदि सरकारी तेल कंपनियों पर कीमतें नहीं बढ़ाने का दबाव हुआ तो भी हफ़्ते भर में तो कीमतें बढ़ा ही दी जाएँगी। इसकी वजह भारत नहीं, सऊदी अरब में हुई घटना है। सऊदी अरब स्थित दो तेल संयंत्रों पर हुए ड्रोन हमलों की वजह से रोज़ाना 57 लाख बैरल तेल की आपूर्ति कम हो गई, जिस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 12 डॉलर प्रति बैरल बढ़ कर 66 डॉलर पर पहुँच गई।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में सोमवार को ही ज़बरदस्त उछाल आया है। सोमवार की सुबह न्यूयॉर्क मर्केटाइल एक्सचेंज खुलते ही पहले कारोबार में ही ब्रेंट तेल की कीमत में यकायक 12 डॉलर प्रति बैरल की बढ़त दर्ज की गई। थोड़ी देर में स्थिति नरम सामान्य हुई तो भी 11.09 डॉलर प्रति बैरल बढ़ कर 66.90 डॉलर प्रति बैरल पर कच्चे तेल की कीमत थी।
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क्यों बढ़ेंगी पेट्रोल-़डीज़ल की कीमतें?
एक अध्ययन के मुताबिक़, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमत 1 डॉलर बढ़ने से भारत को सालाना 10,700 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ख़र्च करना होता है। इस हिसाब से यदि यह क़ीमत साल भर टिकी रह गई तो भारत को लगभग 1,28,400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा।अब सवाल यह है कि भारत में तेल बेचने वाली सरकारी कंपनियाँ 1,28,400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च उठाएँगी? इसकी संभावना नहीं है।
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी इसलिए तय है कि इनकी कीमतों को अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों से काफ़ी पहले ही जोड़ दिया गया है, यानी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं तो यहाँ भी उसी हिसाब से पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ा दी जाएँगी।
फ़िलहाल पेट्रोल की कीमतें दिल्ली में प्रति लीटर 71.89 रुपये, मुंबई में 77.57 प्रति रुपये तो चेन्नई में 74.70 रुपये और कोलकाता में 74.62 रुपये है। इसी तरह डीज़ल की कीमत दिल्ली में 65.28 रुपए प्रति लीटर, मुंबई में 68.46 रुपए, मुंबई में 68.46 रुपये तो कोलकाता में 67.69 रुपये है।
अब इसमें बढ़ोतरी तय है। हालाँकि पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमतों को पूरी तरह बाज़ार के भरोसे छोड़ दिया गया है, लेकिन ये सरकारी कंपनियाँ ही हैं। उन पर सरकारी दबाव कुछ समय के लिए काम कर सकता है। पर वह दबाव अधिक दिन नहीं चल सकता, लिहाज़ा कीमतों में बढ़ोतरी को हफ़्ते भर भी रोकना नामुमिकन होगा। भारत में पेट्रोल डीज़ल की बिक्री बीपीसीएल, एचपीसीएल, इंडियन ऑयल और कैस्ट्रॉल के भरोसे है। लेकिन इनका कारोबार पूरी तरह पेशेवर हो चुका है और ये कीमतें बढ़ाएंगी, यह तय है।
कोटक इंस्टीच्यूशनल इक्विटीज़ के एक आला अफ़सर ने लाइवमिंट से कहा है कि प्रति लीटर 5-6 रुपये की बढ़तोरी से इनकार नहीं किया जा सकता है। कंपनी ने कहा :
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से भारत की तेल साफ़ करने वाली कंपनियाँ दबाव में आ जाएँगी। रिफाइनिंग कारोबार में मुनाफ़ा पहले से ही कम है, माँग कम हो रही है। ऐसे में ये कंपनियाँ बढ़ी हुई कीमतों को ख़ुद बर्दाश्त नहीं कर पाएँगी और आगे बढ़ाएँगी।
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढोतरी का महत्व इसलिए भी है कि इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ेगा। डीज़ल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से परिवहन खर्च बढ़ेगा और तमाम चीजों की कीमतें बढ़ेंगी, इससे महँगाई भी बढ़ेंगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़े ही फ़ख्र से शुक्रवार को कहा था कि सरकार महँगाई दर रोकने में कामयाब रही। पर अब यह बढ सकती है। दूसरे, जब आम जनता की जेब कटेगी तो वे गुस्सा होंगे। इसका राजनीतिक मायने है और इसका सत्तारूढ़ दल की लोकप्रियता पर भी असर पड़ेगा। ज़ाहिर है, यह सरकार के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बुरी तरह नाकाम नरेंद्र मोदी सरकार लोगों के असंतोष से कैसे निपटेगी, यह देखना भी दिलचस्प होगा।
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