बेरोज़गारी के आँकड़े के बाद अब आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए एक और बुरी ख़बर है। तेल-साबुन और खाने-पीने जैसे उपभोक्ता सामान की माँग घट गयी है। एफ़एमसीजी सेक्टर की वृद्धि दर 11-12 प्रतिशत रह जाने की संभावना है।
जेट एयरवेज़ ऐसे गंभीर संकट में क्यों है? भारत की कोई भी एयरवेज़ कंपनी मुनाफ़े में क्यों नहीं है? ऐसा क्यों है जब सरकार विमानन क्षेत्र को नयी ऊँचाइयाँ देने के दावे किए जा रही है?
भारतीय जनता पार्टी भले ही यह दावा करे कि मोदी सरकार के दौरान विकास हुआ है, सच तो यह है कि अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है। अर्थव्यवस्था के कई मानकों से यह साबित होता है
आख़िर नरेंद्र मोदी सरकार क्यों चाहती है कि इलेक्टोरल बॉन्ड किसने दिए, यह किसी को पता नहीं चले। इस तरह के दूसरे सवाल भी हैं, जो सरकार की नैतिकता पर सवाल उठाते हैं।
13 सालों में पहली बार स्कूटर की बिक्री घटी है। बेरोज़गारी और बिगड़े आर्थिक हालात के कारण विपक्ष की आलोचना झेल रही मोदी सरकार को एक बार फिर हमले झेलने पड़ सकते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नोटबंदी के बाद क़रीब 88 लाख करदाताओं ने टैक्स रिटर्न नहीं भरा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इतने करदाताओं ने रिर्टन क्यों नहीं भरा? क्या इन लोगों की आमदनी कम हो गयी या नौकरी चली गयी?
दुनिया भर के बड़े अर्थशास्त्री क्या राहुल गाँधी की न्यूनतम आय योजना यानी 'न्याय' के पक्ष में हैं? राहुल ने कहा है कि योजना को लेकर रघुराम राजन सहित दुनिया के सभी बड़े अर्थशास्त्रियों से संपर्क साधा। क्या सबने सहमति दी है?
गाँवों में किसानी और रोज़गार की हालत कितनी ख़राब है, यह मनरेगा के आँकड़े साफ़ बयान कर रहे हैं। पिछले साल के मुक़ाबले इस साल मनरेगा में काम माँगने में रिकॉर्ड दस फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
ऐसे समय जब नरेंद्र मोदी सरकार विकास के दावे बढ़ चढ़ कर रही है, विकास की रफ़्तार थमने के संकेत मिल रहे हैं। उपभेक्ता वस्तुओं की बिक्री कम होना एक और संकेत भर है।
जैसे-जैसे एनएसएसओ के आँकड़े छन-छन कर आ रहे हैं उसमें बेरोज़गारी की मार ग्रामीण महिलाओं पर सबसे ज़्यादा पड़ती दिख रही है। पिछले छह साल में क़रीब 2.8 करोड़ ग्रामीण महिलाओं ने नौकरी ढूँढना ही छोड़ दिया है।