निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री ऐसे समय बनाया गया है जब देश की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल है, इसे पटरी पर लाना उनकी प्रमुख ज़िम्मेदारी होगी। इसमें वह कितनी कामयाब होंगी?
2019 के लोकसभा चुनाव में आर्थिक बदहाली कोई मुद्दा नहीं था, लोगों ने बहुमतवाद और राष्ट्रवाद पर वोट किया। पर क्या मोदी अर्थव्यवस्था की उपेक्षा कर सकते हैं?
एग्ज़िट पोल के नतीजों से शेयर बाज़ार जिस तेज़ी से आगे बढ़ा है, वह अस्थायी हो सकता है। शेयरों की क़ीमतें एक बार फिर गिर सकती हैं, क्योंकि आर्थिक स्थिति को लेकर चिंता बनी हुई है।
चुनाव मैदान से लेकर टीवी चैनलों पर यह बहस चल रही है कि प्रधानमंत्री नीच हैं या नीची जाति के हैं, पर क़ायदे से यह बहस होनी चाहिए थी कि क्या देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है या आने वाला है।
मोदी की वापसी होगी या दूसरी सरकार बनेगी, इन बातों में मगन आम लोगों के लिए यह ख़तरे की घंटी है कि आपकी जेब के लिए ख़तरे वाले दिन आने वाले हैं। अर्थव्यवस्था के लिए संकट निकट है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट बढ़ता ही जा रहा है। शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस ने कहा है कि औद्योगिक उत्पादन दर गिर कर 0.1 प्रतिशत पर पहुँच चुका है।
दो साल में कारों की बिक्री में कमी के कारण कार बेचने के धंधे में लगे लोगों को 2,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है 3000 से ज़्यादा लोग बेरोज़गार हो गए हैं। यह अर्थव्यवस्था की मंदी की ओर इशारा करता है।
भारत के कॉरपोरेट जगत ने मुंबई में मतदान के बाद यह संकेत दे दिया है कि यदि वपक्षी गठबंधन की सरकार बनती है तो उन्हें कोई दिक्क़त नहीं होगी। यह बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव के बीच ही मोदी सरकार के लिए बेरोज़गारी के मामले में एक और बुरी ख़बर आयी है। सीएमआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल के पहले तीन हफ़्ते में बेरोज़गारी दर औसत रूप में 8.1 फ़ीसदी पहुँच गयी है।