भारत में अगले कुछ सालों में खाद्य संकट गहराने वाला है। ऐसा एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है। यह संकट जलवायु परिवर्तन के असर से होगा। तो यह असर क्या भूखे रहने के संकट के तौर पर आएगा?
एलआइसी का आइपीओ क्या है? सरकार इसे क्यों जारी कर रही है और इसमें कौन निवेश कर सकता है यानी कौन खरीद सकता है? पैसा लगाने में फायदा है या नुक़सान? जानिए हर सवाल का जवाब।
एलआईसी का आईपीओ आने् शेयर खरीदने वालों के लिए फायदे का सौदा है या नुक़सान का? क्या लिस्टिंग के वक्त भाव बढ़ने की या तगड़ा फायदा होने की गुंजाइश नहीं है?
रिजर्व बैंक ने चौंकाया है। इसने रेपो रेट 40 बेसिस प्वाइंट्स बढ़ा दिया है। अब यह बढ़कर 4.40% हो गया है। तो इस बढ़ोतरी के मायने क्या हैं? इससे किसे क्या फायदा और क्या नुक़सान होगा?
रोजगार पैदा करने के तमाम दावों के बावजूद बेरोजगारी दर कम होती क्यों नहीं दिख रही है? एक के बाद एक आँकड़े बेरोजगारी बढ़ने के संकेत दे रहे हैं। जानिए सीएमआईई ने अब ताज़ा आँकड़ों में क्या कहा है।
गेहूँ खरीद की इस पर जैसे लूट है? निजी व्यापारी भी सरकारी खरीद से ज़्यादा पैसे किसानों को चुका रहे हैं? सरकारी खरीद के लिए भी गेहूँ कम क्यों पड़ने लगा है? जानिए वजह।
'महंगाई डायन खाए जात है...' का जो नारा 2014 से पहले कांग्रेस के पीछे पड़ा था वह अब बीजेपी के पीछे पड़ा है। भले विपक्षी दल उस तरह से मुद्दे न उठाएँ, लेकिन क्या आम लोगों के कराहने का डर सरकार को बिल्कुल नहीं होगा?
बढ़ती महंगाई के बीच अब खाने के तेल पर महंगाई की मार पड़ने वाली है। पहले से ही आसमान छू रही क़ीमतों के बीच अब पाम ऑयल पर इंडोनेशिया ने ऐसा क्या फ़ैसला ले लिया कि भारत सहित दुनिया भर में चिंताएँ बढ़ गईं?
गौतम अडानी दुनिया भर के धनकुबेरों में जगह बनाने के लिए लगातार चर्चा में रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि मुकेश अंबानी के बाद उन्होंने अब किसे पीछे छोड़ा?
देश में बेरोजगारी की हालत कैसी है? यदि आप सिर्फ़ बेरोज़गारी दर के आधार पर आकलन कर रहे हैं तो आपको अपनी राय बदलनी पड़ सकती है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि निराश होकर अधिकतर लोगों ने नौकरी ढूंढनी ही छोड़ दी?
चुनाव के दौरान मुफ्तखोरी के दावे करके तमाम राजनीतिक दल देश को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। इससे देश की तरक्की के रास्ते बंद नहीं होंगे, बल्कि बंद होंगे। आम आदमी पार्टी के संयोजक ने इसे सफलता का शॉर्टकट फॉर्म्युला मान लिया है, लेकिन वो गलतफहमी में हैं।
एक के बाद एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें 2022-23 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान क्यों घटा रही हैं? कोरोना काल से उबरने की जो उम्मीद बंधी थी वह क्यों धूमिल होने लगी है?