दो दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने यह आशंका जताई थी कि सिर्फ अमेरिका को इस बीमारी की वजह से जो आर्थिक नुक़सान झेलना पड़ेगा, वह काफी ज़्यादा हो सकता है। और अब वे सारे अर्थशास्त्री भी लगता है कि हिम्मत हार गए हैं जिन्हें अभी तक लग रहा था कि शायद दुनिया कोरोना वायरस के झटके को झेल जाएगी और मंदी की आशंका आखिरकार टल जाएगी।
चीन को होगा ज़्यादा नुक़सान
ऐसे अर्थशास्त्रियों के विचार में आए इस बदलाव की वजह क्या है? वजह है कोरोना वायरस का विश्वव्यापी महामारी बन जाना। यह बीमारी जिस रफ्तार से यूरोप और अमेरिका तक फैल गई है, वह चिंता की एक बड़ी वजह है। और चीन में इस महामारी की वजह से जितना नुक़सान होने का अंदाजा लगाया जा रहा था, नुक़सान उसके मुक़ाबले कहीं ज्यादा है और यह चिंता की दूसरी बड़ी वजह है। चीन इस वक्त दुनिया के व्यापार में बहुत बड़ा खिलाड़ी है। उसकी रफ्तार थमेगी तो बाक़ी सब पर भी ब्रेक लगना लाजिमी है।
मॉर्गन स्टैनली की रिसर्च टीम का तो यह भी कहना है कि पूरी दुनिया मंदी की चपेट में है, यह मानकर ही आगे का हिसाब लगाया जाएगा। टीम का मानना है कि दुनिया भर की जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार इस साल गिरकर 0.9 फ़ीसदी ही रह जाएगी। जबकि गोल्डमैन सैक्स के हिसाब से यह रफ्तार 1.25% तक रह सकती है। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़ ग्रोथ की रफ़्तार एक से डेढ़ फ़ीसदी के बीच कहीं भी अटक सकती है।
हालांकि अब भी उम्मीद की किरण बाक़ी है। जानकारों को उम्मीद है कि साल की दूसरी छमाही में ग्रोथ फिर रफ्तार पकड़ सकती है, लेकिन मॉर्गन स्टैनली और गोल्डमैन सैक्स दोनों ही यह आशंका भी जता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में और तकलीफदेह दौर आने का ख़तरा अभी टला नहीं है।
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