वित्तीय सेवा कम्पनी क्रेडिट स्वीस की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार जून 2017 से जून 2018 के बीच देश में अमीरों की संख्या बढ़ी है। इस दौरान 7,300 नए करोड़पति बने हैं। इन करोड़पतियों के पास कुल 444 लाख करोड़ रुपए (6 ट्रिलियन डॉलर) की संपत्ति है। हैरान करने वाली बात यह है कि रुपये में भारी गिरावट के बावजूद भारतीय उद्योगपतियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।
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अब बात करते हैं मुद्दे की। देश में करोड़पतियों की तादाद तो बढ़ रही है लेकिन उस अनुपात में ग़रीबी क्यों नहीं ख़त्म हो रही है जबकि केंद्र व राज्य सरकारें यह दावा करती हैं कि उनकी ओर से गरीबों के कल्याण के लिए सैकड़ों कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। राजनेता भी जनता के कल्याण के लिये चल रही योजनाओं के बारे में टीवी और अख़बारों में करोड़ों रुपये के विज्ञापन देते हैं। लेकिन इसका फायदा ग़रीब आदमी को क्यों नहीं मिलता।
इसका प्रमुख कारण है आय में बढ़ती असमानता। इसी वज़ह से भारत में ग़रीबी, भुखमरी और कुपोषण की समस्याएं बढ़ रही हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार आज देश में 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जो भयावह ग़रीबी का सामना कर रहे हैं। मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआइ) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 68 करोड़ लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं और ग़रीबी का दंश झेल रहे हैं। भारत सरकार के भी आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल 22 प्रतिशत आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।
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अब आंकड़ों से निकलकर सीधी-सीधी बात करते हैं। और वह सीधी बात यह है कि आख़िर किस आधार पर मुकेश अंबानी भारत के दुनिया में तीसरा सबसे अमीर देश बनने की बात कह रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि हाल ही में मैग़जीन फोर्ब्स इंडिया ने देश के सौ अमीरों की वर्ष 2018 की सूची जारी की है। इसमें मुकेश अंबानी 47.3 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ सबसे अमीर भारतीय बने हैं और वह लगातार 11वें साल नंबर एक पर हैं। अब ऐसे में उन्हें तो यह लगेगा ही कि देश तरक़्की के रास्ते पर सरपट दौड़ रहा है।
लेकिन शायद इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि तेज़ी से अमीर होते हमारे देश में ग़रीबों की माली हालत क्यों नहीं सुधर रही है। आख़िर क्यों ग़रीब और ग़रीब होते जा रहे हैं और उनकी हालत नहीं सुधर रही है। आंकड़ों के अनुसार, 1991 में वैश्वीकरण का दौर शुरू होने के बाद से ही भारत में असमान आर्थिक विकास बढ़ा है।
यह बात तय है कि असमान आर्थिक विकास से जितना फ़ायदा अमीरों को हुआ है उससे कहीं ज़्यादा नुकसान ग़रीबों को हुआ है। लेकिन अफ़सोस यह है कि इस ओर देखने वाला और सोचने वाला कोई नहीं है। अंत में यही बात कि सरकारें इस ओर न सिर्फ़ ध्यान दें बल्कि ठोस काम भी हो, क्योंकि देश की तरक़्की भाषण देने से नहीं ग़रीबों को ताकत देने से ही हो सकती है।
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