बिना सोचे समझे फ़ैसले करने, तुग़लकी फ़रमान जारी करने और यू-टर्न लेने के नरेंद्र मोदी सरकार की एक और बानगी सामने आई है। रिज़र्व बैंक 2,000 रुपये के नोट छापना बंद कर देगा, क्योंकि सरकार को लगता है कि इस नोट का इस्तेमाल काला धन जमा करने, कर चुराने और ग़ैरक़ानूनी तरीके से पैसे बाहर भेजने में होता है। हालांकि, यह नोट वैध करेंसी बना रहेगा, पर इसे धीरे-धीरे बाज़ार से वापस ले लिया जाएगा।
फ़िलहाल 2,000 रुपये का जितने नोट बाज़ार में हैं, उनका कुल मान 6.73 लाख करोड़ रुपये है। यह कुल मुद्रा का 37 फ़ीसद है।
इस नोट की शुरुआत नोटबंदी के समय नवंबर 2016 में हुई थी। उस समय सरकार ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट को यह कह कर बंद कर दिया था कि इन मुद्राओं में काला धन जमा है। लेकिन उसी सरकार ने 2,000 रुपये के नोट जारी करने के लिए रिज़र्व बैंक से कहा था। यह सवाल उठना लाज़िमी था कि यदि 1,000 रुपये से काला धन जमा करने में सहूलियत होती है तो 2,000 रुपये से भी होगी। पर सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था।
मोदी सरकार का यू-टर्न
सवाल यह उठता है कि सरकार ने किस आधार पर 2,000 रुपये के नोट छापने का फ़ैसला किया था और अब क्या हो गया कि वही सरकार उस नोट को बंद करने के लिए कह रही है। यदि इस नोट से काला धन रखने में सुविधा होती है तो यह सुविधा उस समय भी हुई होगी, जब यह नोट छापने का निर्णय किया गया होगा। ज़ाहिर है, सरकार ने जो यू-टर्न लिया है, उसका कोई ठोस कारण नहीं है, जिसे वह जायज़ ठहरा सके।
रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य उदय कोटक ने कहा था, 'यदि हमने साधारण बातों का ख़्याल रखा होता तो नोटबंदी का असर बेहतर रहा होता। यदि आप 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट वापस ले रहे हैं तो भला 2,000 रुपये के नोट ला क्यों रहे हैं?'
सरकार वित्तीय प्रबंध के मामले में बुरी तरह नाकाम रही है, यह बार-बार साफ़ हो जाता है। उसने 8 नवंबर 2016 को एक फ़ैसले से 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट बंद कर दिए थे। देश की अर्थव्यवस्था पर उसका व्यापक असर पड़ा और वह बुरी तरह चरमराई। रिज़र्व बैंक के गवर्नर को लेकर विवाद हुआ, पहले रघुराम राजन और उसके बाद उर्जित पटेल की विदाई से इसकी किरकिरी हुई। अब 2,000 रुपये के नोट से जुड़े फ़ैसले पर भी सवाल उठेंगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली क्या सफ़ाई देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
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