किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने और ग़रीबों को हर महीने कुछ पैसे देने के फ़ैसले के लिए राहुल गाँधी की आलोचना करने और उनका मजाक उड़ाने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने कार्यकाल में बड़े औद्योगिक घरानों के 5.50 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का क़र्ज़ माफ़ कर दिया। औद्योगिक घरानों के प्रति यह दरियादिली उस सरकार ने दिखाई है, जो पेट्रोल-डीज़ल, रसोई गैस और किरासन तेल जैसी ज़रूरी और आम लोगों के इस्तेमाल की चीजों पर सब्सिडी में ज़बरदस्त कटौती यह कह कर की कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
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कारपोरेट घरानों का क़र्ज़ माफ़ करने का यह पहला वाक़या नहीं है। इसके पहले की सरकारों ने भी यह काम किया है। लेकिन ग़रीबों की हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार ने सबसे ज़्यादा क़र्ज़ माफ़ उद्योगपतियों का ही किया है। अंग्रेज़ी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के पूछे एक सवाल के जवाब में रिज़र्व बैंक ने कहा कि पिछले दस साल में कुल 7 लाख करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ कर दिए गए।
सरकार ने अप्रैल 2014 के बाद से अब तक 5,55,603 करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ कर दिए गए। यानी, बीते दस साल में हुई क़र्ज़माफ़ी का तक़रीबन 80 प्रतिशत क़र्ज़ हिस्सा मोदी सरकार ने किया। कॉरपोरेट जगत को यह फ़ायदा तब पहुँचाया गया, जब ग़रीबों को पहले से मिल रही सब्सिडी में ज़बरदस्त कटौती की गई।
कैसे होता है क़र्ज़ माफ़?
दरअसल होता यह है कि बैंकों को जब दिए हुए क़र्ज़ पर ब्याज़ मिलना बंद हो जाता है तो वे उसे ‘नन परफ़ॉर्मिग असेट’ क़रार देते हैं। लेकिन उसे खाते में दिखाना तो होता है। इससे उनका बैलंस शीट ख़राब हो जाता है। इससे बचने के लिए वे एक सीमा के बाद क़र्ज को ‘राइट ऑफ़’ कर देते हैं यानी माफ़ कर देते हैं। दरअसल वह क़र्ज तो बना ही रहता है, लेकिन वह बैलंस शीट में नहीं दिखाया जाता है। उसके बाद बैंक उस क़र्ज़ की उगाही को लेकर उदासीन हो जाते हैं। उस कर्ज के 20 प्रतिशत से अधिक की वसूली नहीं हो पाती है। लेकिन इसके पीछे राजनीतिक कारण भी होते हैं, ख़ास कर सरकारी बैंकों के मामलों में। कई बार सरकार बैंकों को संकेत देती है और दबाव भी बनाती है कि क़र्ज़ माफ़ कर दिए जाएँ।देश के सरकारी बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में 1,08,374 करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ़ कर दिया तो वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान उन्होंने 161,328 करोड़ रुपए का क़र्ज़ छोड़ दिया। इसके अगले साल यानी 2018-19 के पहले छह महीने में ही 82,799 करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ कर दिए गए।
ये पैसे किसके माफ़ किए गए हैं, किन उद्योगपतियों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा मिला है, यह साफ़ नहीं है। बैंकों के खातों में इसका पूरा ब्योरा होगा और थोड़ी सी पड़ताल से यह मालूम पड़ जाएगा कि किसने पैसे नहीं दिए। पर अब तक इस पर स्थिति साफ़ नहीं है।
माल्या-मेहुल-नीरव की कहानी
याद रहे कि बैंकों से पैसे लेकर रफ़ूचक्कर हो जाने का मामला विवादों में रहा है। पहले शराब उद्योग के बेताज़ बादशाह समझे जाने वाले और ‘किंग ऑफ़ गुड टाइम्स’ कहे जाने वाले विजय माल्या 10 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक लेकर विदेश भाग गए और लंदन में जा बसे। उसके बाद मेहुल चोक्सी और हीरा व्यापार से जुड़े नीरव मोदी भी अरबों रुपये का क़र्ज़ लेकर बग़ैर चुकाए ही विदेश भाग गए। मेहुल चोक्सी ने कैरीबियाई द्वीप एंटीगा एंड बारबडोस की नागरिकता ले ली है। नीरव मोदी को लंदन में रहने और काम करने का वीज़ा मिला है और वह वहीं हैं।यह महज़ संयोग नही है कि ये तीनों लोग नरेंद्र मोदी के ही शासनकाल में भागे हैं। इनमें से चोक्सी और नीरव तो मोदी के नज़दीक समझे जाते थे। नरेंद्र मोदी ने मेहुल चोक्सी की सार्वजनिक तारीफ़ कई बार की थी। नीरव मोदी वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की बैठक में भाग लेने डावोस गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे। इस प्रतिनिधिमंडल की अगुआई ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी कर रहे थे।
इस पूरी क़वायद का आर्थिक पक्ष तो है ही, इसके राजनीतिक मायने भी हैं। अडानी-अंबानी के साथ रिश्तों को लेकर सुर्खियों में रह चुके नरेंद्र मोदी चोक्सी-नीरव नोदी के प्रति नरमी दिखाने के लिए भी जाने जाते हैं। ताज़ा ख़बर उस समय आई है, जब देश में आम चुनाव शुरूु हो चुका है और पहले चरण का मतदान भी हो गया है। चुनाव प्रचार ज़ोरों पर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष पर जम कर चोट कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जिस समय राष्ट्रवाद चुनावी मुद्दा बन गया हो और दूसरे तमाम मुद्दे दरकिनार कर दिए गए हों, क्या उद्योगपतियों को लाखों करोड़ रुपये की क़र्ज़माफ़ी मुद्दा बनेगा? इसका जवाब तुरन्त ही मिल जाएगा।
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