कंगाली में आटा गीला। महंगाई के बीच आम लोगों की यही हालत हो गई लगती है। खाने का तेल महंगा होने के बाद अब रसोई की सबसे अहम चीजों में से एक रसोई गैस के दाम बढ़ गए हैं। ग़ैर अनुदानित गैस की क़ीमत 25.50 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ाई गई है। डीजल-पेट्रोल के रिकॉर्ड दाम को तो लोग पहले से ही चुका रहे हैं। अभी क़रीब एक पखवाड़े पहले ही रिपोर्ट आई थी कि मई में थोक महंगाई दर रिकॉर्ड 12.94 फ़ीसदी पर पहुँच गई है। महंगाई की ऐसी हालत तब है जब कोरोना संकट के बीच लोगों की आमदनी घटने और नौकरियाँ ख़त्म होने की ख़बरें हैं।
अब रसोई गैस के दाम बढ़ने का सीधा असर आम आदमी के रसोई पर पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि हाल के दिनों में इसकी क़ीमतें काफ़ी ज़्यादा बढ़ाई गई हैं। एक जुलाई से 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर पर 25.50 रुपए की बढ़ोतरी के साथ ही दिल्ली और मुंबई में इसकी क़ीमतें 834.50 रुपये हो गई हैं। इसकी सबसे ज़्यादा क़ीमत चेन्नई में 850.50 रुपये है।
बता दें कि रसोई गैस के दाम पिछले छह महीने में 140 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़े हैं। व्यावसायिक सिलेंडर पर 76 रुपये की बढ़ोतरी की गई है।
रसोई की एक और अहम चीज खाने के तेल के भाव में भी कम आग नहीं लगी हुई है। पिछले कुछ महीनों में तो इन तेलों की महंगाई में बहुत तेज़ हुई है। सरसों के तेल ने तो डबल सेंचुरी मार दी है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ मूंगफली का तेल 20 फ़ीसदी, सरसों का तेल 44 फ़ीसदी से ज़्यादा, वनस्पति क़रीब 45 फ़ीसदी, सोया तेल क़रीब 53 फ़ीसदी, सूरजमुखी का तेल 56 फ़ीसदी और पाम ऑयल क़रीब 54.5 फ़ीसदी महंगा हुआ। ये आँकड़े 28 मई 2020 से 28 मई 2021 के बीच का हाल बताते हैं।
खाने की इन चीजों के महंगे होते जाने के बीच डीजल-पेट्रोल की क़ीमतें भी आसमान छू रही हैं। मुंबई सहित कई शहरों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के पार पहुँच गया है जबकि डीजल के दाम भी 100 रुपये प्रति लीटर के क़रीब पहुँच गए हैं।
कोरोना महामारी के बीच आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रही मोदी सरकार के सामने महँगाई बेकाबू होने का संकट है। जून में ही रिपोर्ट आई कि मई में थोक महंगाई दर रिकॉर्ड 12.94 फ़ीसदी पर पहुँच गई।
इसका साफ़ मतलब यह है कि थोक में सामान महंगा होने पर ख़ुदरा में लोगों पर इसका बोझ पड़ेगा और सामान खरीदना आम लोगों के लिए पहुँच से बाहर होता जाएगा। इसका खामियाजा आख़िरकार राजनीतिक तौर पर मोदी सरकार को भी भुगतना पड़ेगा।
थोक महंगाई बढ़ने का कारण मुख्य तौर पर कच्चे तेल और निर्मित सामानों के दाम में बढ़ोतरी है। थोक महंगाई के आँकड़े जारी करने के दौरान वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था, ‘मासिक डब्ल्यूपीआई पर आधारित मुद्रास्फीति की वार्षिक दर मई 2021 में पिछले साल मई के मुक़ाबले बढ़कर 12.94 प्रतिशत हो गई। यह दर मई 2020 में ऋणात्मक 3.37 प्रतिशत थी।' मई महीने में ईंधन और बिजली की मुद्रास्फीति सबसे ज़्यादा बढ़ी और यह बढ़कर 37.61 प्रतिशत हो गई।
महंगाई के ये हालात तब हैं जब कोरोना संकट के बीच आम लोग भी ख़राब आर्थिक हालात से जूझ रहे हैं। हाल ही सीएमआईई की रिपोर्ट आई थी कि कोरोना के कारण क़रीब एक करोड़ लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं और 97 फ़ीसदी लोगों की कमाई घट गई है। ऐसे में जब घर का ख़र्च चलाना ही मुश्किल हो रहा हो और हर चीज की क़ीमतें महंगी होती जा रही हों तो इसे कंगाली में आटा गीला होना नहीं तो और क्या कहेंगे!
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