बैंकों ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में दो लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का क़र्ज़ माफ़ कर दिया है। इनमें से 75 प्रतिशत से अधिक क़र्ज़माफी सरकारी बैंकों ने किया है।
कोरोना महामारी से आर्थिक बदहाली के दौरान भारतीय रिज़र्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों से छह महीने के लोन मोरेटोरियम यानी उस अवधि तक वसूली रोक देने को कहा था।
इस दौरान बैंकों ने 2,02,781 करोड़ रुपए के क़र्ज़ माफ़ कर दिए। दरअसल बैंकों ने बीते 10 साल में 11,68,095 करोड़ रुपए का एनपीए यानी नन परफॉर्मिंग असेट को माफ़ कर दिया। जब किसी क़र्ज़ पर लगातार तीन किश्तों का भुगतान नहीं होता है तो उसे एनपीए कहा जाता है।
यह महत्वपूर्ण बात है कि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, सरकारी बैंकों ने 10.72 लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ माफ कर दिया है।
क़र्ज़माफ़ी क्यों?
इस क़र्जमाफ़ी का बड़ा हिस्सा यानी 75 प्रतिशत सरकारी बैंकों का है। स्टेट बैंक समेत पाँच बैंकों ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही 89,686 करोड़ रुपए का क़र्ज़ माफ़ कर दिया है।
इन बैंकों ने जितना क़र्ज़ माफ़ किया है, उससे ज़्यादा तो सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के बजट के लिए बाज़ार से क़र्ज़ लिया है। केंद्र सरकार ने इस साल बाज़ार से 12.05 लाख करोड़ रुपए का ऋण लिया है।
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