दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स ने कहा है कि पिछली तिमाही में दुनिया में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत दर्ज की गई। पिछले साल इसी दौरान जीडीपी वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत थी।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध
आर्थिक मंदी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध है। हालाँकि सोमवार को अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर नए आयात कर नहीं लगाए और चीन अमेरिका से अधिक कृषि उत्पाद खरीदने पर राजी हो गया है। इसे थोड़ी राहत मिलना कह सकते हैं, पर यह समस्या का अंत नहीं है। चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध अभी और तेज़ हो सकता है। ज्यों-ज्यों अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नज़दीक आते जाएंगे, डोनल्ड ट्रंप अमेरिका फ़र्स्ट का नारा तेज करते जाएंगे, जिससे दोनों देशों के बीच तल्ख़ी बढ़ेगी।यूरोपीय संघ से ब्रिटेन का बाहर निकलना!
इसी तरह यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने को लेकर यूरोपीय अर्थव्यवस्था संकट में है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कह दिया है कि कोई समझौता हो या न हो , ब्रिटेन हर हाल में तय समय पर यूरोपीय संघ से बाहर निकल आएगा। अब तक किसी समझौते की रूपरेखा तक तय नहीं हुई, ब्रिटन यही तय नहीं कर पा रहा है कि समझौता किया जाए तो किन मुद्दों पर और कौन बातें जोड़ी जाए। ऐसे में किसी किसी समझौते की बात करना फिजूल है क्योंकि ब्रिटेन को 30 अक्टूबर तक संघ छोड़ देना है।
बग़ैर किसी समझौते के संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने पर ब्रिटेन ही नहीं पूरी यूरोपीय संघ बाज़ार बुरी तरह प्रभावित होगा। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
उत्पादन कम
पूरी दुनिया में उत्पादन में कटौती देखी गई है, जिसका मतलब साफ़ है कि खपत में भी कमी हो रही है। निर्यात आधारित अर्व्यवस्था, मसलन, जापान बुरी हालत में है तो ऑटो सेक्टर में मंदी के कारण जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्था बदहाल है। अमेरिका में अनिवासी निवेश में कमी आई है।
भौगोलिक-राजनीतिक स्थिति
पूरी दुनिया की भौगोलिक-राजनीतिक स्थिति भी मंदी को बढाने वाले ही हैं। अमेरिका-ईरान संकट की वजह से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया गया है, ईरानी तेल कई नहीं खरीद सकता, भारत भी नहीं। इसी तरह सऊदी-अरब ईरान संकट का असर भी पड़ना तय है। इसे इससे समझा जा सकता है कि सऊदी अरब के दो तेल संयंत्रों पर ड्रोन हमले हुए तो कच्चा तेल बाजा़र में कीमतें 20 प्रतिशत तक उछल गईं। इसके बाद बीते हफ्ते लाल सागर में ईरान के एक तेल टैंकर पर मिसाइल हमला हुआ और ढेर सारा तेल बह गया।
घटता मुनाफ़ा
पूरी दुनिया के कारोबार में मुनाफ़ा में कमी आ रही है। लगभग हर देश में ऐसा हो रहा है। जिस कंपनी का मुनाफ़ा घटेगा वह पूंजीगत खर्च में कटौती करेगी, निवेश कम होगा। मुनाफ़ा और कम होने से ये कंपनियाँ कर्मचारियों को निकाल सकती है, जिससे उपभोक्ता खपत और कम हो सकता है। यह एक तरह का च्रक होता है और यह चक्र बनता जा रहा है।
केंद्रीय बैंकों का बुरा हाल
पूरी दुनिया के तमाम केंद्रीय बैंकों का बुरा हाल है। अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व ने 2009 की मंदी के बाद से अब तक 500 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। उसके बावजूद बैंकों से कर्ज लेना कम हो गया है। दूसरी ओर, ब्याज दर में कटौती लगातार हो रही है।
यूरोपीय केंद्रीय बैंक और बैंक ऑफ़ जापान में ब्याज दर शून्य से नीचे हैं। बहुत ही अजब स्थिति है कि ब्याज दर भी कम हो रहा है और बैंक से लेने वाले कर्ज में भी गिरावट हो रही है।
टल सकती है मंदी?
विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि मंदी आना तय है। इसकी पूरी संभावना है कि स्थिति सुधर जाए और मंदी टल जाए।क्या करे भारत?
जहाँ तक भारत की बात है, इसकी सबसे बड़ी खूबी इसका बहुत ही बड़ा बाज़ार है। पर जिस तरह यह बाज़ार सिकुड़ रहा है, उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री कम हो रही है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी मंदी का असर दिखने लगा है, उससे चिंतित होना स्वाभाविक है। ख़ास कर कोर सेक्टर में शून्य से कम वृद्धि एक तरह से ख़तरे की घंटी है।सरकार ने जो फ़ैसले लिए हैं, उसके नतीजे उल्टे हो सकते हैं। मसलन, सालाना 1.45 लाख करोड़ रुपए की कर रियायत पर लोगों का कहना है कि यह ज़रूरी नहीं कि कॉरपोरेट जगत यह पैसा वापस अर्थव्यवस्था में डाले। इससे बेहतर रहा होता यदि यह पैसा आम जनता को दिया जाता।
वैसा करने से वह पैसा वापस अर्थव्यवस्था में आता और उससे माँग निकलती। फिर अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकती है।
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि भारत में सरकार या राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में अर्थव्यवस्था नहीं है। उन्हें लगता है कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, वे राष्ट्रवाद से जुड़े नैरेटिव के बल पर ही चुनाव जीत लेंगे और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों को जनता तरजीह नहीं देती है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ा संकट यह है कि सरकार न तो कुछ कर रही है और न ही लगता है कि कुछ करना चाहिए। ऐसे में आईएमएफ़ प्रमुख जॉर्जीवा की चेतावनी ज्यादा अहम लगती है।
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