क्या भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग ख़तरे में है? क्या इसकी साख को बट्टा लगा है और विदेश में इसकी छवि को ज़ोरदार धक्का लगा है, जिससे उबरने में इसे समय लगेगा? क्या इस उद्योग से जुड़े हज़ारों लोगों पर असर पड़ेगा? ये सवाल लाज़िमी हैं। इसकी वजह है सूचना प्रौद्योगिकी सेवा के क्षेत्र में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी इनफ़ोसिस के शेयरधारकों को सिर्फ़ एक दिन में 53,000 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है।
यह सबकुछ ऐसे समय हो रहा है जब भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो चुकी है और यह बहुत तेजी से मंदी की ओर बढ़ रही है। आईटी भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा समर्थन देता है। यदि यह क्षेत्र भी धीमा हुआ तो पूरी अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा।
यह अधिक चिंता की बात इसलिए है कि यह ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका में आउटसोर्सिंग रोकने के लिए सरकार तरह-तरह के क़ानून बना रही है और राष्ट्रपति खुले आम 'अमेरिका फ़र्स्ट' के बहाने विदेशी कंपनियों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
इनफ़ोसिस प्रबंधन पर यह आरोप लगा है कि उसने मुनाफ़ा और कारोबार वास्तविकता से अधिक दिखाने के लिए जानबूझ कर अकाउंटिंग में घपला किया है। अध्यक्ष नंदन निलेकणि से इसकी
जाँच का आदेश दे दिया है।
शुक्रवार को इस ख़बर के फैलते ही बंबई स्टॉक एक्सचेंज में एक तरह से भूचाल आया और इनफ़ोसिस के शेयर की कीमत बुरी तरह टूटी। एक दिन में इसके शेयर की कीमत में 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसका नतीजा यह हुआ कि इस कंपनी के शेयर रखने वालों को ज़बरदस्त नुक़सान हुआ। इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन यानी कंपनी की बाज़ार में कुल अनुमानित कीमत 3.28 लाख करोड़ रुपये से घट कर 2.75 लाख करोड़ रुपये हो गई, यानी कंपनी की कुल कीमत में 53,000 करोड़ रुपये की कमी हो गई।
बंबई स्टॉक एक्सचेंज के आँकड़ों का अध्ययन करने पर यह तसवीर उभरती है कि खुदरा शेयरधारकों को 2,750 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ, उनके पास इनफ़ोसस के 5.2 प्रतिशत शेयर हैं।
जिन बीमा कंपनियों के पास इनफ़ोसिस के शेयर हैं, उन्हें 52,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ क्योंकि उनके पास कंपनी के 13 प्रतिशत शेयर हैं। सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी के पास इनफ़ोसिस के 6.1 प्रतिशत शेयर हैं, इस लिहाज़ से एलआईसी को 3,200 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ।
यह साफ़ करना जरूरी है कि ये नुक़सान नॉमिनल हैं, यानी यह ज़रूरी नहीं है कि एलआईसी या दूसरे शेयरधारकों को वाकई इतना नुक़सान हुआ है। जिन्होंने इस दौरान यानी शुक्रवार-सोमवार को इनफ़ोसिस के शेयर नहीं बेचे होंगे, उन्हें नुक़सान नहीं हुआ होगा। पर जिनके पास इसके शेयर हैं, उन्हें भी नुक़सान इस मायने में हुआ है कि उनके शेयरों की कुल कीमत कम हो गई है यानी यदि वे ये शेयर अब बेचें तो उन्हें नुक़सान होगा।
लेकिन चिंता की बात दूसरी वजहों से है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूरी दुनिया में भारत का डंका बजता है। हालाँकि यहाँ इस क्षेत्र में मौलिक शोध नहीं हुआ है, यहाँ माइक्रोचिप बनाने वाली इनटेल जैसी कोई कंपनी नहीं है, न ही यहाँ फ़ेसबुक या गूगल जैसी कोई कंपनी है। पर भारत आईटी सेवा के क्षेत्र में सबसे आगे है।
भारत में लाखों की तादाद में आईटी प्रोफ़ेशनल हैं, इंजीनियर हैं, जो आउटसोर्सिंग के काम में लगे हुए हैं। इनके बल पर सैकड़ों भारतीय कंपनियाँ अमेरिका-यूरोप से काम पाती हैं और हर साल खरबों रुपये का कारोबार करती हैं।
क्या सेवा क्षेत्र की इन कंपनियों को अब नुक़सान होगा? भारतीय आईटी कंपनियों का सबसे बड़ा बाज़ार अमेरिका है, जहाँ उग्र राष्ट्रवाद बीते कुछ सालों से चल रहा है। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिका फ़र्स्ट का नारा दिया, उस नारे पर चुनाव जीता और इस साल के अंत तक शुरू होने वाली चुनाव प्रक्रिया के पहले एक बार फिर उस नारे को बुलंद किया है।
ट्रंप प्रशासन ने बीते दो सालों में ऐसे कई काम किए हैं, जिनसे भारतीय आईटी उद्योग की परेशानियाँ बढ़ी हैं। उन्होंने अमेरिकी कंपनियों से कहा कि वे एक निश्चित न्यूनतम वेतन से नीचे विदेशी को नहीं रख सकतीं। ऐसा इसलिए किया गया कि अमेरिकी कंपनियाँ विदेशियों को नौकरी पर न रखें।
अमेरिकी प्रशासन ने यह भी कहा कि जो अमेरिकी कंपनियाँ विदेशों से काम करवाएँगी, उन्हें एक निश्चित दर पर अतिरिक्त कर चुकाना होगा। इसके अलावा प्रशासन ने वीज़ा नियम कड़े कर दिए ताकि एक निश्चित संख्या से ज़्यादा लोगों को अमेरिका में नौकरी न मिले।
इन सब फ़ैसलों से भारतीय आईटी उद्योग संकट में आ गया। उसने यूरोप, लातिन अमेरिका की ओर रुख किया। इस बीच अमेरिका की आर्थिक स्थिति सुधरी तो वहाँ अधिक काम मिला और इससे भारतीय आईटी कंपनियों ने राहत की सांस ली।
इन विकट परिस्थितियों में यदि किसी भारतीय कंपनी पर घपला कर मुनाफ़ा से छेड़छाड़ करने का आरोप लगे तो भारतीय कंपनियों की बदनामी तय है। ब्रांड भारत का क्षय तय है। ऐसे में उन्हें पहले से कम काम मिलेगा।
इन वजहों से ही इनफ़ोसिस अध्यक्ष निलकेणि ने आनन-फानन में आंतरिक जाँच का आदेश दे दिया, इसके लिए एक विदेशी कंपनी को नियुक्त भी कर दिया। हो सकता है कि इनफ़ोसिस इस संकट से बाहर निकल आए। यह भी हो सकता है कि एक-दो दिन में शेयर बाज़ार में इनफ़ोसिस शेयरों की कीमत भी सुधर जाए, पर यदि ब्रांड इमेज ख़राब हुई है तो उसके सुधरने में समय लगेगा। और यह नुक़सान अकेले इनफ़ोसिस को नहीं होगा।
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