भारतीय अर्थव्यवस्था तो कोरोना संकट के पहले से ही बदहाल है, महामारी ने इसकी कमर तोड़ कर रख दी, अब हाल यह है कि इस साल भी इसके सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। इतना ही नहीं, इसकी बदहाली का जो अनुमान पहले लगाया गया था, स्थिति उससे बदतर होने जा रही है। यानी पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की जितनी बुरी स्थिति का अनुमान लगाया गया था, उससे भी बुरी स्थिति की ओर यह बढ़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 14.8 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 14.8 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी। यह इसी कंपनी के पहले के अनुमान से कम है। पहले इस निवेश बैंक ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 प्रतिश सिकुड़ेगी।
इसके एक दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 10.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यह उसके पहले के अनुमान से बदतर स्थिति है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारत की जीडीपी शून्य से 5 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।
अब फ़िच रेटिंग्स का कहना है कि भारत की जीडीपी शून्य से 10.5 प्रतिशत नीचे जाएगी। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की निम्नतम स्थिति होगी। अब तक जीडीपी गिरने का रिकॉर्ड 5.2 प्रतिशत सिकुड़ने का है जो 1980 में हुआ था।
'खपत नहीं बढेगी'
कंपनी ने ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक 2020 में कहा है कि पहले यह अनुमान लगाया गया था कि सितंबर की तिमाही में स्थिति सुधरने लगेगी, पर अब ऐसा नहीं लगता। रिपोर्ट में इसकी वजह बताते हुए कहा गया है कि आयात, दोपहिया वाहनों की बिक्री और कैपिटल गुड्स उत्पादन से संकेत मिलता है कि इस दौरान भी खपत नहीं बढ़ेगी।बता दें कि पहली तिमाही में जीडीपी 23.9 प्रतिशत सिकुड़ी जो अब तक का रिकार्ड है। इस दौरान लाखों लोगों की नौकरियां गईं और घरेलू खपत एकदम धड़ाम से नीचे गिरा। रेटिंग एजेन्सी ने यह भी कहा कि इस दौरान भारत का कारोबार पूरे जी-20 देशों में सबसे बुरा रहा।
अनुमान से बदतर
स्थिति अनुमान से बदतर होने के बारे में फ़िच ने कहा है, 'कोरोना के नए मामले बढ़ते जाने से कई राज्य सरकारें मजबूर होकर फिर लॉकडाउन लगा रही हैं, पूरे देश में जगह जगह बढ़ते कोरोना मामलों और लॉकडाउन की वजह से व्यवसायी हतोत्साहित होते हैं और व्याुार पर ज़्यादा बुरा असर पड़ता है।'स्टेट बैंक
इसके पहले देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने कहा था कि इस साल जीडीपी 10.9 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है। पिछले साल इसी दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी।भारतीय स्टेट बैंक के समूह प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने यह अनुमान लगाया है। इकोनॉमिक टाइम्स की ख़बर के अनुसार, घोष ने एक नोट में कहा,
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'पहली तिमाही में जीडीपी के 23.9 प्रतिशत गिरने के बाद सवाल उठता है कि बाकी की बची हुई तिमाहियों में विकास दर क्या रहेगी। अब यह साफ हो गया है कि दूसरी तिमाही में भी गिरावट दो अंकों में होगी।'
सौम्य कांति घोष, समूह प्रमुख आर्थिक सलाहकार, भारतीय स्टेट बैंक
रिज़र्व बैंक
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी सालाना रिपोर्ट में कहा था कि घरेलू खपत बुरी तरह गिरी है, उसे एक ज़ोरदार झटका लगा है। बैंक ने कहा था कि अर्थव्यवस्था में सुधार के जो लक्षण मई-जून में दिखे थे, वे जुलाई-अगस्त आते-आते कमज़ोर पड़ गए। इसकी वजह लॉकडाउन को सख़्ती से लागू करना है। ऐसा लगता है कि अर्थव्यस्था का सिकुड़ना इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में भी जारी रहेगा।मैंकिजे
बीते महीने दुनिया की मशहूर प्रबध सलाहकार कंपनी मैंकिजे ने कहा था कि चालू साल में भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 3 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। यह इस पर निर्भर करता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सरकारी कोशिशें कितनी कारगर होती हैं और उनका क्या नतीजा निकलता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत की अर्थव्यवस्था की कमर पूरी तरह से टूट जायेगी और उसके उबरने मे बरसों लग जायेंगे।मैंकिजे ग्लोबल इनीशिएटिव ने 'इंडियाज़ टर्निंग पॉयंट' नाम की रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में बैंकों का 'बैड लोन' यानी जिस क़र्ज़ पर ब्याज न मिल रहे हों या जो पैसे डूब गए हों ऐसे क़र्ज़ में 7 से 14 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
इसकी वजह यह होगी कि छोटे व्यवसाय, कॉरपोरेट घराने और निजी क़र्ज लेने वालों की भी आर्थिक स्थिति खराब रहेगी और जब तक यह स्थिति नहीं सुधरती है, तब तक बैंकों को पैसे वापस नहीं मिलेंगे। हालांकि रिज़र्व बैंक ने कई तरह के उपायों का एलान किया है, उसका ख़ास असर नहीं होगा।
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