कोरोना का कहर कम हो जाने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था उसकी चपेट से लंबे समय तक नहीं निकल पाएगी, यह बात तो पहले से कही जा रही है, पर अब इसे लेकर अधिक चिंता की बात कही जा रही है। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना से सबसे बुरी तरह से प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक होगी। इसने यह भी कहा है कि इसकी आर्थिक वृद्धि दर कोरोना शुरू होने के पहले की दर से 12 प्रतिशत कम होगी।
दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की अर्थव्यवस्थाओं के विभाग की प्रमुख प्रियंका किशोर ने अनुमान लगाया है कि अगले पाँच साल में भारत की विकास दर 4.5 प्रतिशत होगी। कोरोना के पहले यह अनुमान 6.5 प्रतिशत था।
कंपनियों पर असर
उनके अनुसार अर्थव्यवस्था पर इसका असर अभी से दिखने लगा है और कंपनियों के बैलेंस शीट पर इसका प्रभाव पड़ने लगा है, बैंकिंग सेक्टर का नन-परफॉर्मिग असेट (यानी जिस कर्ज पर ब्याज मिलना बंद हो गया है) बढ़ने लगा है, ग़ैर-बैकिंग कंपनियों की स्थिति भी खराब होने लगी है। अर्थव्यवस्था के खराब होने के संकेत तो मिलने लगे हैं, लेकिन स्थिति ज्यादा बुरी हो सकती है। यह बात दीगर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भी भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का दावा करते हैं। उन्होंने इस बदहाली के बीच भी कहा है कि 2025 तक भारत यह लक्ष्य हासिल कर लेगा। फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था 2.8 ट्रिलियन की इकोनॉमी है।
दूसरी ओर, इसी बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि मार्च 2021 तक भारत की आर्थिक गति शून्य से 10.3 प्रतिशत नीचे चली जाएगी। इसके पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी लगभग ऐसी ही बात कही थी। उसने भारतीय अर्थव्यवस्था के 10.8 प्रतिशत सिकुड़ने का अनुमान लगाया है।
इसका अनुमान है कि मार्च 2021 में ख़त्म होने वाले इस वित्त वर्ष में जीडीपी 10.3 फ़ीसदी सिकुड़ जाएगी। इसने पहले जून में 4.5 फ़ीसदी तक सिकुड़ने का अनुमान लगाया था।
दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अनुमानों में इस तरह की गिरावट कभी नहीं रही जहाँ 5.8 पर्सेंटेज प्वाइंट कम करना पड़ा हो। जबकि चीन के बारे में स्थिति अलग है। आईएमएफ़ का अनुमान है कि उसकी जीडीपी विकास दर सकारात्मक रहेगी। इसने चीन के लिए जून में जहाँ जीडीपी विकास दर 1 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया था वहीं अब इसने बढ़ाकर इसे 1.9 फ़ीसदी कर दिया है।
लॉकडाउन
इस अप्रत्याशित गिरावट का कारण कोरोना लॉकडाउन रहा है। भारत में लॉकडाउन दुनिया में सबसे ज़्यादा लंबे समय तक रहा और सख़्ती से इसे लागू किया गया। इस दौरान पूरी आर्थिक गतिविधियाँ ठप पड़ गईं। उद्योग-धंधे बंद पड़ गए। करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए। और इसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखा। तभी तो जून की तिमाही में जीडीपी विकास दर नेगेटिव में 23.9 फ़ीसदी चली गई। अब जून क्वार्टर के बाद भी कोरोना को नियंत्रित नहीं किया जा सका है और आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हैं। हालाँकि अनलॉक होने के कारण अब आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आ रही है और अर्थव्यवस्था में थोड़ी सी जान आती दिख रही है।
केअर रेटिेंग्स
सितंबर के दूसरे हफ़्ते में केअर रेटिंग्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर शून्य से 8.2 प्रतिशत तक नीचे जा सकती है। इसने पहले जीडीपी के शून्य से 6.4 प्रतिशत तक नीचे जाने का अनुमान लगाया था। केअर रेटिंग्स के पहले अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 14.8 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 14.8 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी। यह इसी कंपनी के पहले के अनुमान से कम है। पहले इस निवेश बैंक ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 प्रतिश सिकुड़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 10.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यह उसके पहले के अनुमान से बदतर स्थिति है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारत की जीडीपी शून्य से 5 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।
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