बैंकिंग सेक्टर में हलचल है। आरबीआई ने कर्ज बाँटने के लिए अब ऐसे नियम लगा दिए हैं जिससे कर्ज देने की रफ्तार धीमी पड़ेगी। बैंक ऑफ़ बड़ौदा से लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई तक चिंतित हैं। एसबीआई ने कहा है कि कर्ज में कमी आने की आशंका है। बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने कहा है कि बफर कैपिटल पर असर पड़ेगा। एनबीएफसी यानी नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों की तरफ़ से भी कर्ज कम होने की शिकायत की गई है। सरकार की योजना तो अधिक से अधिक कर्ज बाँटकर अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने की है। तो सवाल है कि आख़िर आरबीआई ने यह फ़ैसला क्यों लिया कि बाज़ार में लोगों को कम कर्ज मिले? क्या उस कर्ज के डूबने की आशंका है और फिर बैंकिंग सेक्टर पर संभावित संकट का डर?
इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया यानी आरबीआई ने क्या फ़ैसला लिया है और इसका क्या असर हो रहा है।
आरबीआई ने पिछले सप्ताह बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी के लिये व्यक्तिगत और क्रेडिट कार्ड से कर्ज के मामलों में नियमों को कड़ा कर दिया है। ये कर्ज असुरक्षित माने जाते हैं। नये नियम के तहत व्यक्तिगत लोन के बदले अलग राशि सुरक्षित रखने के अनुपात को 25 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है। इसका मतलब है कि व्यक्तिगत कर्ज के मामले में बैंकों को अलग से ज्यादा राशि का प्रावधान करना होगा। एनबीएफसी के लिए यह अनुपात मौजूदा 100 फीसद से बढ़ा कर 125 फीसद कर दिया गया है। यानी 100 रुपये के कर्ज देने के लिए 125 रुपये एनबीएफसी को अपने खाते में रखना होगा।
इस नियम से बैंकों और एनबीएफसी को कर्ज बाँटने के लिए अधिक फंड का इंतज़ाम करना होगा। इसका मतलब है कि उनकी लागत बढ़ जाएगी। इससे यह होगा कि कर्ज बाँटने पर असर पड़ेगा और कर्ज की दर भी बढ़ सकती है।
फिच की रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षित उपभोक्ता ऋण का बढ़ना अधिक जोखिम का भी संकेत देता है।
कर्ज बढ़ने की वजह क्या?
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आख़िर कर्ज इतना क्यों बढ़ रहा है? क्या लोगों की आमदनी कम हुई है? कम से कम हाल की रिपोर्टें तो ऐसे ही संकेत देती रही हैं। कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद से अधिकतर भारतीयों के सामने आर्थिक तंगी की रिपोर्टें आती रहीं। पिछले साल जीवन बीमा को लेकर एक ऐसी ही रिपोर्ट से इस सवाल का जवाब मिलता है कि क्या सच में लोगों के सामने आर्थिक संकट रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में पॉलिसीधारकों द्वारा 2.30 करोड़ से अधिक जीवन बीमा पॉलिसियों को मैच्योरिटी से बहुत पहले सरेंडर कर दिया गया था। यह 2020-21 में समय से पहले सरेंडर की गई पॉलिसियों 69.78 लाख के तीन गुना से अधिक थी। भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 2020 में ही जनवरी महीने में मिला था और मार्च 2020 में बेहद सख़्त लॉकडाउन लगाया गया था।
यह वही लॉकडाउन था जिसने देश की आर्थिक स्थिति को काफ़ी ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया। बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियाँ जाने की रिपोर्टें आती रहीं। लोगों की आमदनी कम होने की ख़बरें आईं। रिपोर्टें आईं कि मध्य वर्ग को राशन की लाइन में लगने को मजबूर होना पड़ा। महामारी और लॉकडाउन ने गरीबों को और ग़रीबी में धकेल दिया। नौकरियों के हालात तो ऐसे हो गए कि कामकाजी क़रीब आधी आबादी ने नौकरी ढूंढना ही छोड़ दिया। पिछले साल के सीएमआईई के आँकड़े अनुसार, कामकाजी उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से आधे से अधिक लोगों ने काम ढूंढना ही छोड़ दिया था।
कहाँ कितना कर्ज बँटा?
वित्त एवं आर्थिक मामलों के सचिव रहे सुभाष चंद्र गर्ग ने बैंकिंग सेक्टर के कर्ज पर एक लेख लिखा है। वह कहते हैं कि किसी अर्थव्यवस्था में वास्तविक विकास बड़े उद्योगों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बैंक ऋण पर आधारित होता है। उन्होंने लिखा है कि इस खंड में यूपीए सरकार के दौरान बड़ा उछाल आया था, जबकि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2.96 प्रतिशत की धीमी वृद्धि (2013-2014 में 20.44 ट्रिलियन रुपये से 2018-2019 में 23.65 रुपये ट्रिलियन) देखी गयी। दूसरे कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में ऋण में प्रति वर्ष 0.46 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई। इसके बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ और 22 सितंबर, 2023 को बकाया ऋण 25.8 ट्रिलियन रुपये तक पहुंचा। फिर भी दूसरे कार्यकाल के साढ़े चार साल में ऋण वृद्धि 2 प्रतिशत से कम ही रही है।
पर्सनल लोन में बेतहाशा वृद्धि
व्यक्तिगत ऋण, विशेषकर असुरक्षित ऋण में तेजी से वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2018-2019 के अंत में बकाया व्यक्तिगत ऋण 23.03 ट्रिलियन रुपये था, जो वित्त वर्ष 2022-2023 तक बढ़कर 40.85 ट्रिलियन रुपये हो गया। प्रति वर्ष 15.4 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई। 22 सितंबर, 2023 तक ये ऋण बढ़कर 48.27 ट्रिलियन रुपये हो गए हैं।
'द टेन ट्रिलियन ड्रीम' और 'वी आल्सो मेक पॉलिसी' के लेखक सुभाष चंद्र गर्ग लिखते हैं कि असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण, जिस पर आरबीआई ने अब शिकंजा कसना शुरू कर दिया है, 2018-2019 में 7.4 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 2022-2023 के अंत तक 14.63 ट्रिलियन रुपये और 22 सितंबर तक 16.01 ट्रिलियन रुपये हो गया। वह लिखते हैं कि 47 वर्षों में सबसे कम दर पर घरेलू शुद्ध वित्तीय बचत वृद्धि के बीच असुरक्षित कर्ज का इस तरह बढ़ना, सामान्य बात नहीं है और आरबीआई की चिंता समझ में आती है।
व्यक्तिगत कर्ज के अलावा माइक्रो फाइनेंस और एमएसएमई में भी कर्ज इसी तरह से बेतहाशा बढ़ा है।
लेकिन चिंता की बात है कि एमएसएमई के क्रेडिट पोर्टफोलियो में डिफॉल्ट बढ़ गए हैं। सरकार ने ईसीएलजीएस के तहत शुरुआती नुकसान के भुगतान के लिए भी पर्याप्त प्रावधान किए हैं। आरबीआई ने अब तक एमएसएमई को कड़े नियमों से दूर रखा है।
सुभाष चंद्र गर्ग लिखते हैं कि बैंकों, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सरकार को खुश करने के लिए व्यक्तिगत और एमएसएमई ऋण का जमकर विस्तार किया है। इन दोनों क्षेत्रों का ऋण अब कुल बकाया बैंक ऋण का 25 प्रतिशत से अधिक है। यह बड़े उद्योग और बुनियादी ढांचे के बकाया ऋण से लगभग 40 प्रतिशत अधिक है। वह लिखते हैं कि पिछला बैंकिंग संकट बड़े उद्योग और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ऋण को लेकर आया था और अब अगला संकट एमएसएमई और व्यक्तिगत कर्ज से आने की आशंका है।
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