सरकार बार-बार भले ही यह कहती रहे कि देश की अर्थव्यवस्था को कोई संकट नहीं है, पर सच यह है कि इसके निवेश में ज़बरदस्त कमी होने के संकेत मिल रहे हैं। इसके साथ ही कोर सेक्टर समेत पूरे उद्योग में ही मंदी के संकेत भी मिल रहे हैं। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सितंबर में आयात में लगभग 14 प्रतिशत की कमी आई है। भारत के लिए यह अधिक चिंता की बात इसलिए है कि आयात कम होने का मतलब है निवेश में कमी और दूसरे कई उद्योगों में मंदी।
भारत का आयात सितंबर में 13.9 प्रतिशत गिर कर 36.9 अरब डॉलर पर पहुँच गया। इस दौरान स्टील उद्योग में इस्तेमाल होने वाले रसायन, कोयला, गाड़ियों के कल पुर्जे, सोना और धातु का कम आयात किया गया है। इस दौरान निर्यात भी 6.6 प्रतिशत गिर कर 26 अरब डॉलर पर पहुँच गया।
भारत जिन चीजों का अधिक आयात करता है, उनमें से कई तो सीधे कोर सेक्टर से जुड़े हुए हैं। कोयला आयात में कमी का मतलब है ताप बिजलीघरों में उत्पादन की कमी यानी बिजली उत्पादन में कमी। इसका मतलब है कि पूरे उद्योग जगत में मंदी है। इसी तरह स्टील उद्योग में मंदी इस बात से ज़ाहिर है कि इससे जुड़े रसायनों का आयात कम हुआ है। ऑटो उद्योग में चल रही मंदी तो सबको पता है।
भारत के निर्यात गिरने में मुख्य बात यह है कि तेल उत्पादों के निर्यात में 18.6 प्रतिशत की कमी आई है। उसी तरह आभूषण और बहुमूल्य पत्थरों के निर्यात में 5.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इंजीनियरिंग उद्योग से जुड़े निर्यात में भी कमी देखी गई है।
अप्रैल-सितंबर छमाही में आयात में 7 प्रतिशत की कमी हुई है और यह 243.3 अरब डॉलर हो गया। दूसरी ओर निर्यात 159.6 अरब डॉलर हुआ। इस छमाही में भारत के व्यापार असंतुलन यानी आयात-निर्यात 87.3 अरब डॉलर रहा। पिछले साल इसी दौरान 98.2 अरब डॉलर का व्यापार असंतुलन था, यानी व्यापार असंतुलन में इस दौरान कमी आई है।
यह अधिक चिंता की बात इसलिए भी है कि जिस समय आयात कम होने की बात आई है, ठीक उसी समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद की अनुमानित वृद्धि दर में कटौती कर दी है। आयात गिरेगा, निवेश कम होगा तो जीडीपी वृद्धि दर में कटौती करनी ही होगी, यह बात साफ़ है। लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। वित्त मंत्री ने दो दिन पहले ही कहा था कि अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठीक है।
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