भारतीय अर्थव्यवस्था के बदतर होने की आशंकाओं के बीच आईएमएफ़ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की अनुमानित विकास दर में कटौती की है।
दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर नज़र रखने वाली इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 9.5 प्रतिशत होगी।
पहले इसने 12.5 प्रतिशत का अनुमान लगाया था। यानी भारत की विकास दर में तीन प्रतिशत प्वाइंट की गिरावट होने का अनुमान है।
सबसे तेज़ गिरावट
इसका मतलब साफ है-भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पहले के अनुमान से तीन प्रतिशत कम होगी।
यह अनुमानित विकास दर में सबसे तेज़ गिरावट है।
इस तेज़ गिरावट की वजह कोरोना है, जिसने अर्थव्यवस्था को ज़ोरदार झटका दिया है।
आईएमएफ़ का अनुमान है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर यानी सकल घरेलू उत्पाद बढ़ने की दर में कोरोना की वजह से 10.9 प्रतिशत की कमी आई है।
इसमें उम्मीद की किरण यह है कि अगले वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 में जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत के बदले 8.5 प्रतिशत होने की संभावना है। यानी अनुमान से 1.5 प्रतिशत प्वाइंट अधिक विकास दर संभव है।
आरबीआई का क्या कहना है?
आईएमएफ़ ही नहीं, ख़ुद भारतीय संस्थाएं कम विकास दर की आशंका जता रही हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 4 जून को कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस दौरान 9.5 प्रतिशत हो सकती है, जबकि पहले उसने 10.5 प्रतिशत विकास दर का अनुमान लगाया था।
आईएमएफ़ ने दूसरे देशों की अनुमानित विकास दर में भी कटौती की है। चीन की जीडीपी वृद्धि दर में 0.3 प्रतिशत तो सऊदी अरब की विकास दर में 0.5 प्रतिशत प्वाइंट की कटौती की गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने वित्तीय वर्ष 2020-2021 के दौरान शून्य से 7.3 प्रतिशत कम यानी निगेटिव विकास दर दर्ज की थी। यह अब तक की न्यूनतम विकास दर है।
एस एंड पी ने भी की थी कटौती
इसके पहले अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी स्टैंडर्ड एंड पूअर (एस एंड पी) ने भारत की अनुमानित विकास दर में कटौती कर दी थी।
एस एंड पी ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज कर लेगी, पर अब उसका मानना है कि इसमें 9.5 प्रतिशत का ही विकास होगा। यानी, पहले के अनुमान से 1.5 प्रतिशत कम विकास होने की संभावना है।
कारण क्या है?
स्टैंडर्ड एंड पूअर ने कहा था कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में टीकाकरण देर से शुरू हुआ। इसका यह भी कहना था कि एक स्तर तक टीकाकरण होने के बाद ही महामारी थमेगी।
इस रेटिंग एजेन्सी का मानना था कि टीकाकरण में देर होने की वजह से कोरोना महामारी के थमने में समय लग रहा है और इस वजह से अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं लौट रही है।
एस एंड पी ने अनुमान लगाया था कि विकासशील देशों में 100 लोगों में से प्रति दिन औसतन 0.2 लोगों का टीकाकरण हो रहा है। यदि यही रफ़्तार बरक़रार रही तो 70 प्रतिशत देशों में टीकाकरण करने में और 23 महीने का समय लग सकता है। ऐसा हुआ तो उनकी अर्थव्यवस्था को भी ठीक होने में पहले से अधिक समय लगेगा।
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