जिस बात का डर था, आख़िर वही हुआ। पिछले कई महीनों से यह आशंका जताई जा रही थी कि दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में जाने वाली है। आईएमएफ़ यानी इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फ़ंड ने अब इस बात का एलान कर दिया है कि मंदी आ चुकी है और इस बार यह 2008 के आर्थिक संकट से अधिक भयावह होगी।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ के प्रमुख तेदरोस अधनाम गेबरेयेसस के साथ की गई प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में आईएमएफ़ की मैनेजिंग डायरेक्टर के. जार्जीवा ने यह ऐलान किया।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, कोरोना वायरस की वजह से अब तक दस लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और पचास हज़ार लोगों की जान जा चुकी है। जार्जीवा का कहना है कि इस अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिये आईएमएफ़ एक ट्रिलियन डॉलर झोंक रहा है।
लोगों को बचायें या अर्थव्यवस्था को?
अमेरिकी समेत दुनिया के कई देशों में यह बहस जोरों पर है कि वे कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों को बचायें या गिरती अर्थव्यवस्था को। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का तर्क है कि अगर अर्थव्यवस्था को नहीं सँभाला गया तो कोरोना से ज़्यादा लोग ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था के कारण मरेंगे। इस वजह से अमेरिका में लॉकडाउन करने में काफ़ी वक्त लगा और कोरोना का संकट वहाँ काफ़ी बढ़ गया। इस वक्त अमेरिका में कोरोना के सबसे ज़्यादा मरीज़ हैं और मरने वालों की संख्या लगभग साढ़े सात हज़ार हो गई है।
अपनी राय बतायें