लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुक़सान हुआ? इसका हिसाब लगाना बेहद मुश्किल है। सरकार ने अब तक कोई अनुमान भी नहीं लगाया है। लेकिन, मैनेजमेंट अध्ययन की संस्था इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस और इम्पीरियल कॉलेज ने मिल कर एक अध्ययन किया और उसके आधार पर अनुमान लगाया है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर में कहा गया है कि इस अनुमान के मुताबिक़, एक शहर में एक सप्ताह में औसतन 10 हज़ार करोड़ से 14,900 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ। इसकी वजह उस जगह की उत्पादकता में 58 प्रतिशत से लेकर 83.4 प्रतिशत तक की कमी आई।
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लॉकडाउन से नुक़सान
लॉकडाउन अभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन यदि यह मान लिया जाए कि 25 अप्रैल से शुरू हुआ लॉकडाउन 31 मई को ख़त्म हो गया तो लॉकडाउन 66 दिन रहा। इस आधार पर जो रकम बैठेगी, उसका अनुमान भी लगाना मुश्किल है, पर समझा जाता है कि वह कई ट्रिलियन डॉलर होगी।यह अनुमान लगाया गया है कि यदि जनसंख्या के 20 प्रतिशत लोगों की कोरोना जाँच कराई जाए तो हर हफ़्ते 200 करोड़ से 317 करोड़ रुपए का खर्च बैठेगा।
मैथेमैटिकल मॉडलिंग
संदीप मंडल ने यह रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने यह रिपोर्ट मैथेमैटिकल मॉडलिंग के आधार पर बनाई है। वे इसके पहले इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के लिए भी मैथेमैटिकल मॉडलिंग कर चुके हैं।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब महामारी की शुरुआत हुई, भारत के पास उसकी जाँच करने की सुविधा नहीं थी। बाद में धीरे-धीरे वह काम शुरू किया गया। रिपोर्ट में साफ़ माना गया है कि आरटी-पीसीआर जाँच मुख्य रूप से कोरोना संक्रमण का पता लगाने और उसे दबाने की रणनीति है। यह उसके उपचार का इंतजाम नहीं है।
हॉवर्ड विश्वविद्यालय ने एक रोड मैप तैयार किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत को हर हफ़्ते 50 लाख जाँच की ज़रूरत जून में होगी। इसे संक्रमण के शिखर पर रहने के समय यानी जुलाई से अगस्त तक हफ़्ते में दो करोड़ जाँच करनी होगी।
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