इस वित्तीय साल के अंत तक वायु सेना को हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को 20 हज़ार करोड़ देने होंगे, जिसमें सात हज़ार करोड़ पिछले साल का है। यह कहना है एचएएल के चेयरमैन आर. माधवन का।
जहाँ वायु सेना ने एचएएल की देनदारी रोक रखी है वहीं इसने विदेशी कंपनियों को समय पर पैसे चुका दिए हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़, दसॉ एअरोस्पेस कंपनी को 36 रफ़ाल विमानों की एवज में 20 हज़ार करोड़ दिए जा चुके हैं। रफ़ाल का सौदा सितंबर 2016 में हुआ था। इसी तरह एपाचे और चिनुक हेलिकॉप्टर के लिए 2015 में बोइंग के साथ किए गए करार की एवज में दो हज़ार करोड़ रुपये प्रति वर्ष का भी भुगतान किया जा चुका है।
दसॉ रफ़ाल की पहली खेप इस साल भेजेगा। बोइंग भी इसी साल हेलिकॉप्टर लेना शुरू करेगा। दूसरी तरफ़ माधवन का कहना है कि एचएएल हवाई जहाज, हेलिकॉप्टर और दूसरी सेवाएँ पहले ही एयरफ़ोर्स को दे चुका है। इसकी कुल देनदारी 15 हज़ार सात सौ करोड़ रुपये है, जिसकी देनदारी बढ़कर 20 हज़ार करोड़ रुपये हो जाएगी।
सरकारी देनदारी नहीं आने के कारण एचएएल की हालत ठीक नहीं है। उसकी नकदी जमा बीते साल तक नकारात्मक हो गई थी। कंपनी के 29 हज़ार कर्मचारियों को दिसंबर महीने की तनख़्वाह अभी तक नहीं मिली है।
कर्मचारियों को प्रति माह 358 करोड़ का वेतन दिया जाता है। एचएएल में काम चलता रहे, इसके लिए प्रति माह 13-14 सौ करोड़ तक की ज़रूरत होती है। इसको पूरा करने के लिए पहली बार जनवरी के महीने में 781 करोड़ रुपये बैंक से उधार लेने पड़े। परंपरागत रूप से एचएएल के पास पर्याप्त नकदी रहती थी। कंपनी ने नकदी के 11 हज़ार 24 करोड़ रुपये धीरे-धीरे सरकार को दे दिए। 2015-16 में रक्षा मंत्रालय ने इक्विटी बाइबैक स्कीम निकाली जिसके तहत एचएएल को 6 हज़ार 393 करोड़ रुपये देने पड़े। इसके अलावा पिछले पाँच सालों में एचएएल ने सरकार को कुल 4 हज़ार 631 करोड़ रुपये लाभांश और टैक्स के रूप में दिए।
- माधवन का कहना है कि वह रक्षा सचिव से गुज़ारिश करेंगे कि वह वायु सेना को आदेश दें कि देनदारी का कुछ हिस्सा फ़ौरन कंपनी को दे दे। सेना और नौ सेना हमेशा समय पर भुगतान करते हैं। भुगतान नहीं मिलने की वजह से एचएएल को ख़र्चों में कटौती करनी पड़ रही है।
कंपनी के वित्तीय निदेशक की चिट्ठी के मुताबिक़ ‘कंपनी की नकदी का मामला बेहद गंभीर है। हमारे सालाना बजट 19 हज़ार 334 करोड़ रुपये का सिर्फ़ 6 हज़ार 415 करोड़ रुपये ही आवंटित किया गया। इस कारण एचएएल को बाहर से कर्ज़ लेना पड़ रहा है। पिछले हफ़्ते रक्षा मंत्रालय से हुई बातचीत से यह भी पता चला है कि वायु सेना और दूसरे रक्षा ग्राहकों से होने वाला बजट भी हमें 31 मार्च 2019 तक नहीं मिलेगा। इसकी वजह से 6 हज़ार करोड़ का नकदी घाटा होगा।’
इस मसले पर जब रक्षा मंत्रालय से संपर्क किया गया तो उनका कोई जवाब नहीं मिला।
पैसे की तंगी की वजह से और भी भारी नुक़सान हो सकता है। माधवन के मुताबिक़, ‘हम इंडियन एयरफ़ोर्स के जहाजों-विमानों की सर्विसिंग करते हैं, लेकिन अगले साल सर्विसिंग पर भी बुरा असर पड़ सकता है। यदि हमारे पास कच्चे माल और दूसरे कल-पुर्जे के लिए पैसे नहीं होंगे तो कैसे सर्विसिंग करेंगे।’
पैसे की तंगी का असर तेजस पर?
इसके अलावा एचएएल जिन प्रोजेक्टस पर काम कर रहा है, जैसे कि प्रति माह 8-16 तेजस विमान बनाए जाने हैं, पैसे की तंगी की वजह से इसपर भी असर पड़ सकता है। इसके लिए वायु सेना को एक हज़ार 381 करोड़ रुपये देने हैं। लेकिन अब इसके लिए पैसा नहीं बचेगा।
एचएएल को एचटीटी-40 बेसिक ट्रेनर भी बनाने हैं, जिसपर पाँच सौ करोड़ की लागत आएगी। यह काम भी रुक सकता है। इसके अलावा लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को विकसित करने के लिए 200 करोड़ रुपये, लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर को भी विकसित करना है, इसके लिए भी पैसे चाहिए।
शुक्रवार को निर्मला सीतारमण ने संसद को बताया कि एचएएल के पास एक लाख करोड़ के सौदे लगभग तैयार हैं जिसका एचएएल ने खंडन किया है। वायु सेना का एचएएल को भुगतान न करना यह बताता है कि संकट सिर्फ़ सौदों की कमी का नहीं है, बल्कि जो सौदे पूरी तरीके से किए जा चुके हैं उनकी भी अदायगी नहीं हो रही है।
(बिजनेस स्टैंडर्ड से साभार)
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