शुक्रवार को जारी आँकड़ों के मुताबिक़, जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि की दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई है और यह 6 साल में सबसे न्यूनतम विकास दर है। इससे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के वे दावे भी धड़ाम हो गए हैं, जिनमें उन्होंने कहा था कि अर्थव्यवस्था धीमी ज़रूर हो गई है लेकिन न तो मंदी आई है और न ही इसकी कोई आशंका है। इसके पहले इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत थी।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीडीपी के गिरने को लेकर चिंता जताई है। पूर्व प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था पर दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा, ‘हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक है। लेकिन मैं इस पर बात करूंगा कि हमारे समाज की स्थिति और भी चिंताजनक है। हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति हमारे समाज की तसवीर है और विश्वास और आत्मविश्वास का हमारा सामाजिक ताना-बाना अब टूट गया है।’ देश में वित्त मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल चुके मनमोहन सिंह ने कहा कि आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की जीडीपी धीमी है और जुलाई-सितंबर की तिमाही में यह 4.5 तक पहुंच गयी है।
मनमोहन सिंह ने कहा, ‘हमें समाज में भय के माहौल को बदलकर भरोसे वाला माहौल बनाने की ज़रूरत है। तभी हम 8 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर से विकास करना शुरू कर सकते हैं। केवल आर्थिक नीतियों को बदलने से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद नहीं मिलेगी।’
देश में काफ़ी समय से आर्थिक मोर्चे पर लगातार निराशाजनक ख़बरें आ रही हैं। विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट और कृषि क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन से जीडीपी लगातार गिर रही है। एक साल पहले 2018-19 की इसी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत थी।
मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था को तरक्की पर ले जाने का श्रेय दिया जाता है और उन्होंने ही तीन दशक पहले देश में आर्थिक सुधारों को शुरू किया था। पूर्व प्रधानमंत्री ने दावा किया कि यह यह पता लगाने के लिए कि देश बुरे दौर से गुजर रहा है, इसके लिए किसी विशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं है। सिंह ने कहा, ‘जीडीपी के आंकड़े 4.5 प्रतिशत से कम हैं। 8-9 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ने वाले देश के लिए यह पूरी तरह अस्वीकार्य हैं। पहली तिमाही में जीडीपी के 5 प्रतिशत से दूसरी तिमाही के 4.5 प्रतिशत तक गिर जाना बेहद चिंताजनक है।’ मनमोहन सिंह ने केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी से अपने ‘गहरे संदेहों’ को किनारे रखने और भारत को सामंजस्यपूर्ण और पारस्परिक रूप से भरोसेमंद बनाने के रास्ते पर वापस लाने का आग्रह किया।
सरकार मानने को तैयार नहीं!
जीडीपी के लगातार गिरने के बाद भी शायद सरकार यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक है। जीडीपी के ताज़ा आंकड़े सामने आने के बाद सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के.वी. सुब्रमण्यन ने कहा है कि हमें उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था की विकास दर रफ्तार पकड़ सकती है। उन्होंने कहा, ‘हम एक बार फिर कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी रहेगी। तीसरी तिमाही में जीडीपी के रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है।’
कुछ दिन पहले ही आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने साफ़ कहा था कि अर्थव्यवस्था खस्ता हालत में है और ऐसे में 2025 तक पाँच ट्रिलियन (ख़रब) डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का सरकार का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
आरबीआई ने घटा थी विकास दर
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने अप्रैल-सितंबर के दौरान अर्थव्यवस्था के 5.8-6.6 फ़ीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई थी लेकिन जब 4 अक्टूबर को इस वित्तीय वर्ष की अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर जारी की थी तो इसमें कटौती कर दी थी। आरबीआई ने इसे 6.9 प्रतिशत से कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया था।
इससे पहले कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने जीडीपी के गिरने पर बीजेपी पर निशाना साधा था। सुरजेवाला ने कहा था कि देश की जीडीपी गिरकर 4.5 फीसदी हो गई है और यह बीते 6 सालों में सबसे कम तिमाही की जीडीपी है। सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा था, 'लेकिन बीजेपी जश्न क्यों मना रही है? क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी जीडीपी (गोडसे डिवाइसिव पॉलिटिक्स) से ग्रोथ रेट दहाई के अंक में पहुंच जाएगा।' सुरजेवाला ने कहा था कि देश में बेरोज़गारी है, उद्योग-धंधे बंद हो रहे हैं लेकिन रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि फिल्में चल रही हैं और इसलिए कोई मंदी नहीं है।
हाल ही में नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस यानी एनएसओ के हवाले से एक रिपोर्ट आई है कि
गाँवों में माँग 40 साल के न्यूनतम स्तर पर है। गाँवों में जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच खपत में 8.8 प्रतिशत की कमी आई है। इसके अलावा स्टेट बैंक ने अपनी ताज़ा रपट में कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी
जीडीपी की वृद्धि दर घट कर 4.2 प्रतिशत पर आ सकती है।
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