चँहुमुखी विकास के लम्बे-चौड़े दावे करने वाली नरेंद्र मोदी सरकार के लिए चुनाव के ठीक पहले बुरी ख़बर है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फ़िच ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2019-2020 के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा। यानी, इसका विकास दर पहले के अनुमान से कम होगा। यह अनुमान ऐसे समय लगाया गया है जब मोदी सरकार ने विकास दर बढ़ा हुआ दिखाने के लिए इसके आधार वर्ष यानी बेस ईयर को ही बदल दिया था। इसके अलावा मोदी सरकार पर कई तरह के ज़रूरी आँकड़ों से छेड़छाड़ करने के आरोप भी लगे हैं। ताज़ा उदाहरण बेरोज़गारी के डाटा को पहले छुपाने और उसके बाद उससे छेड़छाड़ का है। ऐसे में फ़िच का एलान सरकार के लिए शुभ तो नहीं ही है।
चालू वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही के सरकारी आँकड़ों की घोषणा से ठीक पहले दुनिया की जानी मानी आर्थिक रेटिंग संस्था फ़िच रेटिंग्स ने अपने 'ग्लोबल इकनॉमिक आउटलुक' में भारत के बारे में कहा है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में हमारी विकास दर 6.8% ही रहेगी।
पहले अनुमान था कि विकास दर 7.1% रह सकती है। विश्व बैंक ने इसके बारे में 7.5%का अनुमान लगाया था, लेकिन ख़ुद भारत सरकार के स्टेटेस्टिक्स और प्रोग्राम इम्पलीमेंटेशन मंत्रालय ने जबसे 2018-19 की दूसरी तिमाही के नतीजे को 6.6% बताया, दुनियाँ चौंक पड़ी और सब अपने काग़ज़ दुरुस्त करने लगे। पहली तिमाही में यह दर 7% थी।
भारत की विकास दर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश होने के कारण बड़ा आकार लेती जा रही है और कुछ ही सालों में यूरोप के उन देशों को पार कर जायेगी, जिनकी आबादी व अर्थव्यवस्था लगभग स्थिर है। हमारे राजनेता इसकी शेखी भी बघार लिया करते हैं कि हम छठवीं-सातवीं अर्थव्यवस्था हैं।
हालॉकि इधर हमारे जीडीपी के ऑकड़ों पर दुनिया में इस धंधे के विशेषज्ञों को संदेह होना शुरू हुआ है। चीन के बारे में तो पश्चिम की बाक़ायदा यह पुख़्ता धारणा है कि उनके आर्थिक ऑकड़े पैडेड यानी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए हुए होते हैं। एकाधिकारवादी देश होने के कारण वहाँ से सही आँकड़े निकालना किसी के लिये भी मुश्किल है। भारत में खुद सत्तारूढ़ दल के सांसद सुब्रह्मण्यण स्वामी कह चुके हैं कि हमारे विकास के ऑकड़े से भी छेड़छाड़ किए गए हैं। एनएसएसओ के बेरोज़गारी से संबंधित ऑकड़ों को मोदी सरकार ने छिपा ही लिया।
इस साल जीडीपी के 7% के आस पास रह जाने के अनुमानों के चलते सभी एजेंसियाँ वर्ष 2019-2020 के बारे में भी अपने पहले के आकलन में बदलाव कर रही हैं। विश्व बैंक ने 2020 की जीडीपी के लिए 7.5% की विकास दर का अनुमान लगाया था।
भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2019- 2020 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में विकास की दर 7.4% रहेगी। लेकिन अब कोई भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी इसे 7% से ज्यादा मानने को तैयार नहीं है। नोमुरा नामक जापानी ब्रोकरेज एजेंसी इसे 7 फ़ीसदी पर ही रोक रही है, जबकि फ़िच रेटिंग्स का अनुमान 6.8%का है।
2017-18 में हमारी विकास दर 7.2% थी। सरकार का अनुमान है कि इस साल के अंत में हम यहाँ तक जा पहुँचेंगे।
हमारी अर्थव्यवस्था में निर्माण, सर्विसेज़, रक्षा उत्पादन, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, मैन्युफ़ैक्चरिंग, बिजली वितरण, गैस, पानी वितरण आदि ही वे क्षेत्र हैं, जहाँ से 7 फ़ीसद या ज्यादा की विकास दर की उम्मीद है। कृषि में यह 2.7%, माइनिंग में 1.2% और ट्रांसपोर्ट व कम्युनिकेशन आदि में 6.8% तक दर्ज हो रही है। मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर से निराशाजनक प्रदर्शन की ख़बरों ने दुनिया को निराश किया है। इसकी वजह से निवेश दर बेहद कम हो रही है। निर्यात घटा हुआ है जबकि आयात बढ़ गया है। इससे अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है। फ़िलहाल चुनाव का वक़्त है और दूसरे शोर इस सूचना को दबा ले जायेंगे, पर फिर भी इस चेतावनी को दर्ज किया जाना ज़रूरी है कि विकास का पहिया भँवर में है!
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