भारत के घरेलू शेयर बाजार में ऐसा क्या हुआ कि विदेशी निवेशकों का एकदम से मोह भंग सा हो गया? 2024 में एफ़पीआई यानी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के माध्यम से सिर्फ 1600 करोड़ रुपये आए। पिछले साल यह 1.71 लाख करोड़ था। यानी 99 फीसदी की गिरावट आ गई। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को अचानक ऐसा क्या हो गया कि घरेलू शेयर बाजार में 2024 में वे पैसे लगाने के लिए तैयार नहीं थे?
इन वजहों को जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई के निवेश को लेकर क्या आँकड़ा आया है। नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड यानी एनएसडीएल के अनुसार, 27 दिसंबर 2024 तक एफपीआई ने भारतीय इक्विटी में शुद्ध रूप से 1656 करोड़ रुपये का निवेश किया। हालांकि विदेशी निवेशक शेयर बाजार में प्रमुख रूप से विक्रेता रहे, लेकिन वे प्राथमिक बाजार में खरीदार बने रहे।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इक्विटी में तो निवेश नहीं किए, लेकिन इसके विपरीत उन्होंने घरेलू ऋण बाजार में खूब निवेश बढ़ाया जिससे 2024 में शुद्ध खरीद 1.12 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जो 2023 में 68,663 करोड़ रुपये थी।
तो सवाल है कि आख़िर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को घरेलू शेयर बाज़ार से क्या दिक्कत है? इसके पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। शेयर बाज़ार के जानकारों का कहना है कि भारतीय शेयर बाज़ार में शेयरों के मूल्यांकन की चिंताएँ, वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में अपेक्षा से कम जीडीपी वृद्धि, कमजोर कॉर्पोरेट आय और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में वृद्धि शामिल हैं।
दूसरी बड़ी चिंता की वजह कमजोर तिमाही के नतीजे हैं। कंपनियों की अर्निंग ग्रोथ एक बड़ी समस्या बनकर आई है। अभी तक अधिकतर कंपनियों के सितंबर तिमाही के नतीजे अनुमान से कम रहे हैं।
जेएम फाइनेंशियल ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि उसके कवरेज वाली 157 कंपनियों के नतीजे अनुमान से कम रहे हैं। मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार जेफरीज ने कहा है कि उसने ख़राब नतीज़ों के बाद अपने कवरेज वाली 63 फीसदी कंपनियों के स्टॉक की रेटिंग घटा दी है।
शेयर बाज़ार की ऐसी स्थिति के बीच ही विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाज़ार से लगातार पैसे निकाला जाना जारी है। अक्टूबर और नवंबर महीने में तो क़रीब सवा लाख करोड़ रुपये की निकासी हो गई थी।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सिंगापुर में कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट के सीईओ नितिन जैन ने कहा, 'वैश्विक निवेशक के दृष्टिकोण से 2024 में बड़ी तस्वीर यह थी कि अमेरिकी बाजार अच्छा प्रदर्शन कर रहा था और अमेरिकी डॉलर मज़बूत बना हुआ था।'
उन्होंने कहा, 'डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव के बाद यह विचार था कि डॉलर एक मज़बूत मुद्रा बना रहेगा और अमेरिकी बाजार एक अच्छा निवेश गंतव्य होगा। यह वैश्विक प्रवाह को चलाने वाला सबसे बड़ा फ़ैक्टर था। जब सबसे बड़ा बाज़ार अनुकूल दिखाई देता है, तो हर दूसरे एसेट क्लास को कुछ बेहतर पेश करना पड़ता है। 2024 में अन्य (उभरते) बाजारों (भारत सहित) के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी।' जैन ने कहा कि 2024 में वैश्विक नैरेटिव अमेरिकी बाजार की मजबूती और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के इर्द-गिर्द घूमती रही।
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