शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा जब अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर निराश करने वाली ख़बर न आती हो। कुछ ही दिन पहले ख़बर आई थी कि सितंबर 2019 में मोदी सरकार पर उपभोक्ताओं का भरोसा पिछले 6 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह भी ख़बर आई थी कि आरबीआई ने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वृद्धि दर में कटौती कर इसे 6.9 प्रतिशत से कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया है।
अब आरबीआई के आंकड़ों से एक और निराशाजनक ख़बर सामने आई है कि अर्थव्यवस्था में चल रही सुस्ती के बीच चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान वाणिज्यिक क्षेत्र में आने वाले वित्तीय प्रवाह में लगभग 88 प्रतिशत की गिरावट आई है। इससे स्पष्ट है कि अर्थव्यस्था मंदी के दौर में प्रवेश कर चुकी है।
आरबीआई के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, बैंकों और ग़ैर-बैंकों से वाणिज्यिक क्षेत्र में धन का प्रवाह 2019-20 में (अप्रैल से मध्य सितंबर तक) 90,995 करोड़ रुपये रहा जबकि इसी अवधि में यह पिछले साल 7,36,087 करोड़ रुपये रहा था। वाणिज्यिक क्षेत्र में खेती, विनिर्माण और परिवहन को शामिल नहीं किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक़, वाणिज्यिक क्षेत्र से गैर-जमा वाली एनबीएफ़सी और जमा लेने वाली एनबीएफ़सी में 1,25,600 करोड़ रुपये का रिवर्स फ़्लो हुआ, जबकि पिछली अवधि में यह 41,200 करोड़ रुपये रहा था।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि कॉमर्शियल सेक्टर में बैंकों द्वारा होने वाला नॉन फ़ूड क्रेडिट फ़्लो भी घटकर 1,65,187 करोड़ से घटकर 93,688 करोड़ रुपये रह गया है। विदेशी स्रोतों के बीच बाहरी कॉमर्शियल उधार और फ़ॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफ़डीआई) में वृद्धि दर्ज की गयी है।
आरबीआई का कहना है कि कॉमर्शियल सेक्टर में वित्तीय प्रवाह के कम होने के पीछे मुख्य रूप से कमजोर मांग का होना है। चिंताजनक बात यह है कि रेटिंग फ़र्म क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020 में विकास दर कम रहने की उम्मीद है।
इसके अलावा सितंबर के जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों में गिरावट आई है और यह 19 महीने में सबसे ज़्यादा है। अगस्त महीने में 8 कोर सेक्टर की विकास दर में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि 5 कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ हुई है।
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