पिछले कुछ समय से राजनीतिक हलचल बहुत तेज थी और इतना शोरगुल था कि आर्थिक मंदी की पदचाप हल्की सुनाई दे रही थी, विपक्ष से भी कुछ आवाजें आ रहीं थीं। हालाँकि वित्त मंत्री द्वारा आर्थिक जगत के लिए कुछ बड़ा किए जाने का इशारा भी आ रहा था। फिर वित्त मंत्री अपने सभी वरिष्ठ सहयोगियों के साथ प्रेस के सामने आईं और बड़े ही सिलसिलेवार तरीक़े से समस्याओं, संबंधित पक्षों की राय और समाधान पर अपनी घोषणाएँ की, अस्तु।
वित्त मंत्री ने आर्थिक मंदी, नक़दी की कमी और माँग की कमी, तीनों समस्याओं को एक साथ हल करने के लिए सारे उपाय बताए जो कि वर्तमान परिस्थिति में संभवतः सबसे अच्छे उपाय हैं। साथ ही उन्होंने एक संदेश और दिया कि प्रधानमंत्री के देश में नहीं होने पर भी सरकार है और काम कर रही है।
वित्त मंत्री द्वारा घोषित उपायों के विस्तार में न जाकर पहले यह समझना ज़रूरी है कि क्या वास्तव में हमने समस्या को सही ढंग से पकड़ लिया है या नहीं क्योंकि निदान सही होगा तो समाधान भी सही हो सकता है।
आज विश्व की लगभग सभी अर्थवयवस्थाओं में मंदी की आहट है, चीन पर ट्रेड वॉर का अतिरिक्त कहर है, शुरू में मेरा यह मानना था कि ट्रेड वॉर से हमें कुछ फायदा ही होगा लेकिन अमेरिका ने हमारे साथ भी टैक्स वॉर छेड़ दिया, इसलिए फायदे की संभावना नहीं रही। तो वैश्विक मंदी से हमारी घरेलू माँग पर (निर्यात घटने के कारण) थोड़ा असर आना स्वाभाविक था लेकिन माँग में ऐसी हाहाकारी कमी कि महँगी कार से लेकर 5 रुपये के बिस्किट की भी माँग ख़त्म हो जाए! यह समझना मुश्किल था। और वह भी कब? जबकि प्रधानमंत्री द्वारा किसानों को दी जाने वाली प्रत्यक्ष सहायता चालू हो चुकी थी और उसकी २ किश्तें भी गाँव तक पहुँच चुकी हैं! (छोटी वस्तुओं की माँग के संदर्भ में)।
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चलिए, अभी आज पर लौटते हैं। बैंकों को 70 हज़ार करोड़ रुपये मिलेंगे जिसके चलते ऋण उपलब्धता तो बढ़ेगी ही व्यवसायियों का सरकार के पास फंसा पैसा तुरंत वापस होगा, लोगों की जेब में पैसा आएगा (30 हज़ार करोड़), माँग बढ़नी चाहिए, गाड़ियों की सरकारी ख़रीद, स्क्रेपेज पॉलिसी यानी सभी कुछ ऐसा है जो अर्थव्यवस्था को तुरंत संभाल सकता है।
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लेकिन मुझे अभी भी विश्वास नहीं है क्योंकि मैं 2016 में हुई नोटबंदी के बाद और फिर जीएसटी के लागू होने के बाद लोगों के आर्थिक व्यवहार में बड़ा परिवर्तन देख रहा हूँ। पहला परिवर्तन तो यह कि लोग नंबर 1 की व्यवस्था की तरफ़ जा रहे हैं/ जाना चाह रहे हैं और दूसरा यह कि नंबर 1 का पैसा उड़ाने के लिए नहीं होता और इसलिए पिछले दो वर्षों में एक बड़ी रकम खर्च तंत्र से बाहर मौक़े के इंतज़ार में खड़ी है। ऐसे लोग जिन्होंने यह सोचा था कि आगामी कुछ वर्षों में वे कुछ सच्ची-झूठी टैक्स कंप्लायंस से इस पैसे को नंबर एक में ले आएँगे उनका सपना जीएसटी और अन्य कड़ी टैक्स संरचनाओं में उलझ कर रह गया।
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इसलिए वित्त मंत्री के अभी के सराहनीय क़दमों के बाद भी अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में कम से कम दो से तीन वर्ष का समय लगेगा जिसमें लोग अपना सारा जायज़-नाजायज सामान लेकर नंबर एक की गाड़ी पर सवार होंगे और आमदनी और खर्च का सामान्य व्यवहार करेंगे।
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