आवास वित्तीय सेवा की बड़ी निजी कंपनी डीएचएफ़एल ने 31,500 करोड़ रुपये की हेराफरी की है। इसने कई बेनामी कंपनियाँ बनाईं, उन्हें करोड़ोें के कर्ज़ दिए, उन कंपनियों ने विदेशों में जायदाद ख़रीदीं और डीएचएफएल के निदेशकों की कंपनियों में पैसे लौट आए। इसी कंपनी ने बीजेपी को करोड़ों रुपये का चंदा भी दिया। कोबरपोस्ट ने मंगलवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इसका खुलासा किया है।
कोबरापोस्ट के खुलासे के मुताबिक़, इस घोटाले को अंजाम देने के लिए डीएचएफ़एल के मालिकों ने दर्जनों बेनामी कंपनियाँ बनाई। इनमें से कई कंपनियाँ तो एक ही पते से काम कर रही हैं और उन्हें निदेशकों का एक समूह ही चला भी रहा है। घोटाले को छुपाने के लिए इन कंपनियों का ऑडिट भी चुनिंदा ऑडिटरों से करवाया गया। इन कंपनियों को बग़ैर सिक्योरिटी के ही हजारों करोड़ रुपए का क़र्ज़ दिया गया। इस धन से देश-विदेश में निजी संपत्ति खरीदी गई। इन कंपनियों ने दूसरी तरह की कई गड़बड़ियाँ भी कीं। झुग्गी-झोपड़ियों के विकास के नाम पर इन बेनामी कंपनियों को हजारों करोड़ रुपए बतौर क़र्ज दिए गए। लेकिन उसके लिए जरूरी पड़ताल नहीं की गई। इसके अलावा बंधक या डेट इक्विटी के प्रावधानों को भी दरकिनार कर दिया गया।
कोबरापोस्ट का कहना है कि अधिकांश बेनामी कंपनियों ने अपने कर्जदाता डीएचएफ़एल का नाम और उससे मिले कर्ज की जानकारी को अपने वित्तीय ब्यौरा में नहीं दिखाया। यह क़ानून का सरासर उल्लंघन है। डीएचएफ़एल ने कर्नाटक और गुजरात चुनाव के दौरान 2,480 करोड़ रुपये राज्य की कई कंपनियों को कर्ज के रूप में दिए।
कोबरापोस्ट का कहना है कि इसके अलावा डीएचएफ़एल के मालिकों ने इनसाइडर ट्रेडिंग के ज़रिए करोडों रुपए की हेराफेरी भी की है। कपिल वाधवन की ब्रिटिश कंपनी ने ज़ोपा समूह में निवेश किया। इस ज़ोपा समूह की आनुषंगिक कंपनी ने ब्रिटेन में बैंकिंग लाइसेंस की अर्ज़ी दे रखी है।
कोबरापोस्ट ने यह खुलासा भी किया है कि डीएचएफ़एल के प्रमोटरों की कंपनियों ने वित्तीय वर्ष 2014-15 और वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान 19.50 करोड़ रुपये का चंदा बीजेपी को दिया।
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