आरबीआई की रिपोर्ट कहती है कि आरबीआई की ओर से उपभोक्ता विश्वास सर्वे के तहत देश के बड़े शहरों के लगभग 5,000 उपभोक्ताओं की राय ली गई थी। इस सर्वेक्षण में पांच आर्थिक मुद्दों पर उपभोक्ताओं की सोच या धारणा को मापा जाता है। ये हैं - आर्थिक हालत, रोज़गार, मूल्य स्तर, आमदनी और ख़र्च।
उपभोक्ता विश्वास सर्वे में मुख्य रूप से दो सूचकांक होते हैं। वर्तमान स्थिति सूचकांक और भविष्य की अपेक्षाओं का सूचकांक। वर्तमान स्थिति के सूचकांक को पिछले एक साल में उपभोक्ता द्वारा अनुभव किये गए आर्थिक हालात से मापा जाता है जबकि भविष्य की अपेक्षाओं का सूचकांक आने वाले एक साल में आर्थिक हालात पर उपभोक्ताओं की राय से तैयार होता है।
आरबीआई का सर्वे बताता है कि मौजूदा हालत और भविष्य, दोनों को ही लेकर उपभोक्ताओं में असंतोष है और उन्हें सरकार से कोई ज़्यादा उम्मीद नहीं है। क्योंकि उपभोक्ता विश्वास का सूचकांक जब 100 से ऊपर होता है तब उपभोक्ता आशावादी होते हैं और 100 से नीचे होने पर निराशावादी।
रिपोर्ट के मुताबिक़, सितंबर 2013 में यह सूचकांक 88 अंक तक गिर गया था लेकिन सितंबर 2014 में उपभोक्ता विश्वास का सूचकांक 103.1 तक पहुंच गया था और दिसंबर, 2016 तक यह आशावादी बना रहा और 102 अंकों के आसपास रहा। लेकिन, केंद्र सरकार के नवंबर 2016 में नोटबंदी के फ़ैसले के बाद यह नीचे आने लगा लगभग ढाई साल तक (30 महीने तक) यह निराशावादी स्थिति (100 अंकों से नीचे) में ही बना रहा और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस स्थिति से बाहर आया।
रिपोर्ट के मुताबिक़, मार्च 2019 में यह 104.6 पर पहुंचा और दिसंबर 2016 के बाद यह पहला मौक़ा था जब इसने 100 अंकों के स्तर को पार किया लेकिन यह कुछ ही समय तक रहा और लोकसभा चुनावों के दौरान ही यह फिर से गिरना शुरू हो गया। रिपोर्ट कहती है कि मई 2019 में यह 97.3 जबकि जुलाई में 95.7 अंकों तक पहुंच गया और सितंबर में तो यह नोटबंदी के बाद से अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, भविष्यकालीन अपेक्षाओं का सूचकांक जुलाई 2019 में 124.8 था जो सितंबर में हुए सर्वेक्षण में 118 तक पहुंच गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के मई, जुलाई और सितंबर के सर्वे के दौरान उपभोक्ताओं का विश्वास लगातार कम होता गया और यह आर्थिक हालात और रोज़गार के गिरते स्तर के कारण हुआ।
रिपोर्ट स्पष्ट कहती है कि नोटबंदी के फ़ैसले के लगभग ढाई साल बाद तक उपभोक्ता विश्वास सूचकांक निराशावादी स्थिति में रहा। इसका मतलब है कि नोटबंदी से लोगों को परेशानी हुई। जबकि सरकार ऐसा मानने से इनकार करती रही।
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