दिसंबर में बेरोज़गारी की दर में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई, पर शहरी बेरोज़गारी की दर बढ़ कर 9.7 प्रतिशत हो गई। सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने यह जानकारी दी है।
सीएमआईई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेश व्यास ने फ़ॉरच्यून इंडिया से बात करते हुए कहा कि दिसंबर 2019 में बेरोज़गारी की दर 9 प्रतिशत थी, जनवरी में एक बार फिर बढ़ गई। उन्होंने कहा कि इसके पहले उच्चतम शहरी बेरोज़गारी 9.71 प्रतिशत थी, जो अगस्त 2019 में रिकार्ड किया गया था।
बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी
उन्होंने कहा कि औसत मासिक बेरोज़गारी दर 7.4 प्रतिशत थी। हाल के महीनों में मासिक बेरोज़गारी वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत के आस-पास ही रुकी रही है, पर शहरों में ज़्यादा तेज़ी से इजाफ़ा हुआ है।
सीएमआईई का कहना है कि शहरों में रोज़गार का स्तर गाँवों के रोज़गार स्तर से ऊपर है, यानी बेहतर नौकरियाँ शहरों में मिलती हैं, पर शहरों में बेरोज़गार की दर भी गाँवों की तुलना में अधिक है।
सीएमआईई प्रमुख व्यास ने कहा कि साल 2019 में बेरोज़गारी की दर दो बार 8 प्रतिशत तक पहुँच गई। उन्होंने कहा कि भारत में 3-3.50 प्रतिशत से अधिक बेरोज़गारी दर को बहुत ही ऊंची दर माना जाता है।
रिकॉर्ड बेरोज़गारी
लेकिन यह इससे बहुत ऊपर गया। बेरोज़गारी दर 2017-18 में 6 प्रतिशत, 2018-19 में 7 प्रतिशत, 2018-19 में 7 प्रतिशत के ऊपर रही और उसके बाद के साल यानी 2019-2020 में अब तक 7.5 प्रतिशत पर आ कर रुक गया। यह बहुत ही ऊँची बेरोज़गारी दर है। सीएमआईई प्रमुख ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है, जिस वजह से रोज़गार के मौके नहीं बन रहे हैं। जिस रफ़्तार से जनसंख्या बढ़ रही है और हर साल नौकरियों के बाजार में जिस गति से बेरोज़गार जुड़ रहे हैं, उस अनुपात में रोज़गार के मौकों का सृजन नहीं हो रहा है।
याद दिला दें कि अप्रैल 2019 में सरकारी एजेन्सी ने ही कहा था कि बेरोज़गारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर है। लेकिन उसके बाद भी सरकार ने रोज़गार सृजन की कोई ख़ास कोशिश नहीं की। नतीजतन, बेरोज़गारी दर पहले से भी बढ़ती जा रही है।
सबसे अहम बात यह है कि अर्थव्यवस्था केंद्र सरकार के अजेंडे पर नहीं है, जिस वजह से इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। नतीजतन, यह समस्या पहले से विकराल ही होती जा रही है।
अपनी राय बतायें