सरकार के रोजगार देने के वादों का क्या हुआ? लोगों को नौकरियाँ मिल रही हैं या नहीं? सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आँकड़ों के अनुसार दिसंबर में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई। यह पिछले महीने 8 प्रतिशत थी। दिसंबर महीने का यह आँकड़ा 16 महीनों में सबसे अधिक है।
सीएमआईई के आँकड़ों के हवाले से रायटर्स ने ख़बर दी है कि शहरी बेरोजगारी दर दिसंबर में बढ़कर 10.09 प्रतिशत हो गई, जो पिछले महीने में 8.96 प्रतिशत थी, जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.55 प्रतिशत से घटकर 7.44 प्रतिशत हो गई।
इन आँकड़ों को जारी करने वाले सीएमआईई की स्थापना एक स्वतंत्र थिंक टैंक के रूप में 1976 में की गई थी। देश की आर्थिक स्थिति पर सीएमआईई के आँकड़े बेहद अहम माने जाते हैं। इसके आँकड़ों के आधार पर केंद्र व राज्य सरकार की नीतियाँ भी तय की जाती हैं। संस्था सरकारी स्रोतों से जानकारी लेने के अलावा अपने स्तर से हर माह नियमित सर्वे कराती है और वैज्ञानिक तरीक़े से उनका परीक्षण कर अपना रिपोर्ट जारी करती है।
बहरहाल, बेरोजगारी को लेकर जो आँकड़ा सीएमआईई ने अभी दिया है, इससे कुछ वक़्त पहले ही आरएसएस भी इसको लेकर चिंतित दिख रहा था।
आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के एक वेबिनार में संघ के दूसरे सबसे बड़े ताक़तवर अधिकारी आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने देश में ग़रीबी, बेरोजगारी, असमानता जैसी समस्याओं को स्वीकार किया। होसबले ने पिछले साल अक्टूबर महीने में तब के आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा था, श्रम बल सर्वेक्षण कहता है कि हमारे पास 7.6% की बेरोजगारी दर है। उन्होंने कहा था, 'देश में गरीबी हमारे सामने दानव की तरह खड़ी है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस राक्षस का वध करें। 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं, यह एक ऐसा आँकड़ा है जो हमें बहुत दुखी करता है। 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से कम है।'
उन्होंने आगे कहा, 'एक आँकड़ा कहता है कि भारत दुनिया की शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। लेकिन क्या यह अच्छी स्थिति है? भारत की शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी के पास देश की आय का पांचवाँ (20%) हिस्सा है। साथ ही देश की 50% आबादी के पास देश की आय का केवल 13% है।'
पिछले साल अप्रैल में बेरोजगारी को लेकर जो आँकड़े आए थे वे बेहद चौंकाने वाले थे। सीएमआईई के अनुसार, कामकाजी उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से आधे से अधिक लोगों ने काम ढूंढना ही छोड़ दिया था।
रिपोर्ट के अनुसार 2017 और 2022 के बीच समग्र श्रम भागीदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं के बीच तो यह आँकड़ा और भी अधिक साफ़ दिखता है। लगभग 2.1 करोड़ कार्यबल से ग़ायब हो गईं, जबकि केवल 9 प्रतिशत योग्य आबादी को रोजगार मिला या नौकरी की तलाश में हैं।
रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास ने कहा कि बेरोजगारी दर में वृद्धि उतनी बुरी नहीं है जितनी यह लग सकती है क्योंकि यह श्रम भागीदारी दर में दिसंबर में बढ़कर 40.48 प्रतिशत हो गई।
2024 में राष्ट्रीय चुनावों से पहले महंगाई को रोकना और नौकरी के बाजार में प्रवेश करने वाले लाखों युवाओं के लिए रोजगार देना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। विपक्षी दलों ने भी इसे बड़ा मुद्दा बनाया है।
राज्यवार देखा जाए तो दिसंबर में हरियाणा में बेरोजगारी दर बढ़कर 37.4 प्रतिशत हो गई, इसके बाद राजस्थान में 28.5 प्रतिशत और दिल्ली में 20.8 प्रतिशत है।
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