जब महंगाई का आँकड़ा आ रहा था व ग़रीबों और मध्य वर्ग पर इसके असर को लेकर चिंताएँ जताई जा रही थीं, उसी दौरान अगले कुछ सालों में खाद्य संकट के गहराने की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट भी आ रही थी। आज से क़रीब 8 साल बाद ही खाने की चीजों के उत्पादन में 16 फ़ीसदी गिरावट आने और भूखे रहने का ख़तरा 23 फ़ीसदी तक बढ़ सकता है। यह सिर्फ़ जलवायु परिवर्तन के असर से होगा। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान यानी आईएफ़पीआरआई की एक रिपोर्ट में इस तरह के डरावने भविष्य की चेतावनी दी गई है।
जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणालियों पर आईएफ़पीआरआई की रिपोर्ट जारी हुई है। इसमें कहा गया है कि 2030 में भूख से पीड़ित भारतीयों की संख्या 7 करोड़ 39 लाख होने की आशंका है और यदि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया जाए तो यह संख्या बढ़कर 9 करोड़ से भी ज़्यादा हो जाएगी। इन्हीं परिस्थितियों में समग्र खाद्य उत्पादन सूचकांक 1.6 से घटकर 1.5 रह जाएगा।
इसका मतलब है कि यदि इस रिपोर्ट की मानें तो एक बड़ी संख्या में भारतीय अगले आठ साल में ही भूखा रहने के हालात में पहुँच जाएँगे। ऐसा इसलिए होगा कि जलवायु परिवर्तन से खाद्यान्न का उत्पादन प्रभावित होगा।
हालाँकि, इस रिपोर्ट में एक सकारात्मक बात है। जलवायु परिवर्तन भारतीयों की औसत कैलोरी खपत को प्रभावित नहीं करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक प्रति व्यक्ति प्रति दिन लगभग 2,600 किलो कैलोरी रहने का अनुमान है।
आईएफ़पीआरआई के ये अनुमान एक ऐसे मॉडल का हिस्सा हैं जिसका उपयोग समग्र खाद्य उत्पादन, खाद्य खपत (प्रति व्यक्ति प्रति दिन किलो कैलोरी), प्रमुख खाद्य वस्तु समूहों के शुद्ध व्यापार और भूखे रहने के जोखिम में आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए किया गया। मॉडल में कहा गया है कि यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कृषि बाज़ारों का अनुकरण करता है। इसे कंसोर्टियम ऑफ़ इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर्स के वैज्ञानिकों और अन्य प्रमुख वैश्विक आर्थिक मॉडलिंग प्रयासों के इनपुट से विकसित किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2100 तक पूरे भारत में औसत तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस और 4.4 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ने का अनुमान है। इसी तरह भारत में हीट वेव 2100 तक तीन गुना ज़्यादा होने के आसार हैं।
हालाँकि, दुनिया भर में अगले 50 साल में खाद्य उत्पादन बढ़ने के संकेत हैं लेकिन यह अलग-अलग देशों में अलग-अलग रूप में है। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन 2010 के स्तर से लगभग 60% बढ़ने की उम्मीद है। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में, विशेष रूप से अफ्रीका में, उत्पादन और मांग अधिक तेजी से बढ़ने का अनुमान है।
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