बीएसएनएल में आर्थिक तंगी इतनी बढ़ गयी है कि 1.76 लाख कर्मचारियों को फ़रवरी का वेतन तक नहीं मिला है। कंपनी के 18 साल के इतिहास में पहली बार है कि यह समय पर वेतन देने में असमर्थ है। वेतन नहीं मिलने से कर्मचारियों को घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक महिला वेतन नहीं मिलने की बात कह रोती दिख रही हैं। इनके बारे में कहा जा रहा है कि यह महिला बीएसएनएल की कर्मचारी हैं जो वेतन नहीं मिलने से घर नहीं चला पा रही हैं। ख़ुद को 'नवोदय टाइम्स' अख़बार का रिपोर्टर बताने वाले सूरज सिंह नाम के ट्विटर हैंडल से भी इसे ट्वीट किया गया है।
प्रधानमंत्री @NarendraModi जी, ये @BSNLCorporate की कर्मचारी है, इनकी पीड़ा सुनिए. वेतन नहीं मिलने से BSNL के कर्मचारी भारी मुसीबत में आ गए हैं. निजी मोबाइल कंपनियों का प्रचार जरूर करें, लेकिन सरकारी कंपनियों को खत्म न करें.
— Suraj Singh (@SurajSolanki) March 13, 2019
कृपया, @RSPrasad भी ध्यान दें#BSNL#बीएसएनएल pic.twitter.com/VxyssKlp1e
कर्मचारी संघ ने दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि सरकार कंपनी को वेतन देने के लिए फ़ंड जारी करे। इसके साथ ही उन्होंने कंपनी की हालत सुधारने के लिए भी आग्रह किया है। अपनी माँगों को लेकर कंपनी के कर्मचारी धरना-प्रदर्शन भी करते रहे हैं।
वेतन में क्यों हो रही है देरी?
बीएसएनएल के इन स्थायी कर्मचारियों से कहीं ज़्यादा दिक्कत संविदा पर काम करने वाले कर्मियों को है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि कुछ सर्कलों में तो उन्हें तीन-तीन महीने का वेतन नहीं मिला है।
अख़बार की रिपोर्ट में सूत्र के हवाले से लिखा गया है कि आर्थिक तंगी से निपटने के लिए बीएसएनएल बोर्ड ने बैंक लोन लेने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है, लेकिन दूरसंचार विभाग ने अभी तक इसे आगे नहीं बढ़ाया है।
कर्मियों को वीआरएस देने की तैयारी क्यों?
बीएसएनएल क़रीब 35 हज़ार कर्मचारियों-अफ़सरों को ज़बरन वीआरएस देने को मजबूर है। उसने टीए-डीए, मेडिकल अर्न्ड लीव, पीएफ, ग्रेच्युटी, बोनस आदि सब फ़्रीज़ कर दिए हैं। बीती तिमाही में उसने दो हज़ार करोड़ का घाटा दर्ज़ किया है, उसका 15% रेवेन्यू कम हो गया है। इन कर्मचारियों को वीआरएस पर भेजने के लिये बीएसएनएल को क़रीब तेरह हज़ार करोड़ रुपयों की ज़रूरत होगी। दरअसल, रिलांयस जियो के अलावा देश का पूरा टेलीकॉम सेक्टर तबाही के रास्ते पर है। दर्ज़न भर से ज़्यादा प्राइवेट कंपनियों की जगह अब कुल तीन कंपनियाँ बची हैं। सबसे आगे जियो, फिर वोडाफ़ोन, आइडिया और भारती टेलीकॉम (एयरटेल)। इस सेक्टर पर क़रीब आठ लाख करोड़ रुपये की बैंकों की देनदारी है।
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