क्या सत्ताधारी बीजेपी और उससे जुड़ी संस्थाओं की कोई स्पष्ट अर्थनीति नहीं है? क्या वे इस पर बुरी तरह कंफ़्यूज़्ड हैं और किसी को कुछ पता नहीं कि देश या सरकार की क्या नीति होनी चाहिए? क्या राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की अपनी अलग और संकीर्ण व्याख्या करने वाला आएसएस अर्थनीति से जुड़े फ़ैसले भी उसी चश्मे से देख कर करता है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि बड़े पैमाने पर निजीकरण की मुहिम चलाने वाली और मुनाफ़ा कमा रही कंपनियों को भी बेचने में लगी सरकार चलाने वाली बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस से जुड़े पत्र बड़ी कंपनियों का ज़ोरदार विरोध करने लगे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के कथित मुखपत्र 'पाँचजन्य' ने एक बार फिर वाणिज्यिक मुद्दे पर लेख प्रकाशित किया है, जिसमें उसने एक कंपनी को निशाने पर लिया है।
निशाने पर एमेज़ॉन?
'पाँचजन्य' के पिछले अंक में सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इन्फ़ोसिस को निशाने पर लिया गया था तो इस बार ऑनलाइन ट्रेडिंग की कंपनी एमेज़ॉन निशाने पर है।
'पाँचजन्य' के 3 अक्टूबर के अंक की कवर स्टोरी एमेज़ॉन पर है और मुख पृष्ठ पर कंपनी के संस्थापक जेफ़ बेजो की तसवीर है।
'ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0' के शीर्षक से छपे इस लेख में कहा गया है, "दरअसल एमेज़ॉन भारतीय बाज़ार पर एकाधिकार चाहता है। इसके लिए इसने लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और निजी आज़ादी को घेरने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है।"
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एमेज़ॉन पर ई-मार्केट पर क़ब्ज़ा करने के लिए फर्जी यानी शेल कंपनियाँ बनाने का आरोप है, अपने हक़ में फ़ैसले लेने के लिए व्यापारियों को घूस देने का आरोप है और प्राइम वीडियो पर भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ कार्यक्रम प्रसारित करने का आरोप भी है।
'पाँचजन्य' के एक लेख का अंश
फ़र्जी कंपनी का आरोप
'पाँचजन्य' इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि एमेज़ॉन ने क्लाउडटेल और एपीरिया जैसी कंपनियाँ शुरू कीं, जिनमें इसका परोक्ष निवेश है। ये दोनों कंपनियाँ एमेज़ॉन के कारोबार का लगभग 35 प्रतिशत व्यापार करती हैं।
ऐसा लगता है कि हिन्दूत्ववादी विचारधारा को लेकर चलने वाले आरएसएस से जुड़े लोग एमेज़ॉन से दूसरे कारणों से भी नाराज़ है, उसके गुस्से की असली वजह कहीं और है।
'पाँचजन्य' लिखता है, इसके ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म प्राइम वीडियो पर ‘तांडव’ और ‘पाताल लोक’ जैसे हिन्दू-विरोधी सामग्री प्रसारित होने का संज्ञान सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने लिया तो इसे माफ़ी माँगनी पड़ी।
लेख में इसके आगे कहा गया है कि लोगों का कहना है कि इस ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म पर अमूमन ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, जिनमें हिन्दू देवी- देवताओं का मजाक उड़ाया जाता है।
'पाँचजन्य' का यह भी मानना है कि एमेज़ॉन ईसाई संस्थानों का समर्थन करता है और ऐसी दो संस्थाओं को यह पैसे देता है।
पहले भी हुआ था विवाद
इसके पहले 'पाँचजन्य' इन्फ़ोसिस को लेकर विवादों में घिरा था।
दो हफ़्ते पहले ही 'पाँचजन्य' में एक लेख छपा था, जिसमें पूछा गया था, "क्या राष्ट्र-विरोधी शक्ति इसके माध्यम से भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुँचाने की कोशिश कर रही है?"
'पाँचजन्य' के लेख में कहा गया था कि इन्फ़ोसिस द्वारा विकसित जीएसटी और आयकर रिटर्न वेबसाइटों में गड़बड़ियों के कारण, "देश की अर्थव्यवस्था में करदाताओं के विश्वास को चोट लगी है। क्या इन्फ़ोसिस के माध्यम से राष्ट्र विरोधी ताकतें भारत के आर्थिक हितों को ठेस पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं?"
बता दें कि इन्फ़ोसिस की वेबसाइट पर काफी समय से गड़बड़ियाँ चल रही हैं और शिकायत के बावजूद इसे ठीक नहीं किया गया है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने इन्फ़ोसिस के सीईओ को तलब किया था।
वित्त मंत्री ने वेबसाइट लॉन्च होने के ढाई महीने बाद भी जारी गड़बड़ियों के बारे में सरकार और करदाताओं की चिंता व्यक्त की थी।
रिपोर्ट पर अड़ा रहा 'पाँचजन्य'
बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कथित मुखपत्र 'पाँचजन्य' में सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इन्फ़ोसिस पर छपे एक लेख से खुद को अलग कर लिया है। उसने कहा है कि लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं, संघ के नहीं।
लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई।
बीबीसी के अनुसार, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि वे अपनी कवर स्टोरी पर कायम हैं।
उन्होंने कहा, "पाँच सितंबर के पाँचजन्य संस्करण पर काफ़ी हंगामा हो रहा है। यह कवर स्टोरी सबको पढ़नी चाहिए।"
उन्होंने ट्वीट किया, "पांचजन्य अपनी रिपोर्ट को लेकर अडिग है। अगर इन्फ़ोसिस को किसी भी तरह की आपत्ति है तो उसे कंपनी के हित में इन तथ्यों की और गहराई से पड़ताल करके मुद्दे का दूसरा पहलू पेश करने के लिए कहना चाहिए।"
हितेश शंकर ने लिखा, "कुछ लोग इस संदर्भ में निजी स्वार्थ के लिए आरएसएस का नाम ले रहे हैं। याद रखिए कि यह रिपोर्ट संघ से सम्बन्धित नहीं है। यह इन्फ़ोसिस के बारे में है। यह तथ्यों और कंपनी की अकुशलता से जुड़ी है।"
इसके भी पहले केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय उद्योग परिसंघ यानी (सीआईआई) के सालाना कार्यक्रम में उद्योग जगत पर बेहद तीखा हमला किया था और कहा था कि उनका कामकाज राष्ट्र हित के ख़िलाफ़ होता है। उन्होंने कहा था, 'वे सिर्फ अपने, अपनी कंपनी और अपने मुनाफ़े के बारे में सोचते हैं, उन्हें देश हित से कोई मतलब नहीं है।'
उनका सबसे तीखा हमला टाटा समूह पर था, जिसका नाम लेकर उन्होंने उस पर हमला किया।
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