भारतीय ऑटो उद्योग दो दशकों के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान इसका कामकाज बीते 20 साल में सबसे बुरा रहा है। इस मंदी की वजह से ही कई ऑटो कंपनियों ने अपने कामकाज में कटौती की है, कुछ ने शिफ़्ट कम कर दिए तो कुछ ने हर शिफ़्ट होने वाले काम में कटौती की, कुछ कंपनियों ने दो दिन पूरा काम बंद रखा।
समझा जाता है कि पैसेंजर कार बाज़ार में बिक्री 25 प्रतिशत गिरी है, वाणिज्यिक गाड़ियों की बिक्री 20 प्रतिशत तो दोपहियों की बिक्री में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इससे पूरे ऑटो बाज़ार पर बुरा असर साफ़ दिखेगा और उनकी बिक्री में गिरावट दो अंकों में हो सकती है।
मारुति, सुज़ुकी, हीरो मोटोकॉर्प और टाटा मोटर्स अपने-अपने सेग्मेंट में सबसे बड़ी कंपनियाँ हैं। इनकी बिक्री में कमी से साफ़ है कि पूरा उद्योग ही प्रभावित है और सब जगह बिक्री गिरी है।
कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुज़ुकी ने 7 और 9 सितंबर को मानेसर और गुड़गाँव संयंत्रों में उत्पादन ठप रखा। कर्मचारी काम पर आए, उन्हें उस दिन के पैसे भी मिले, पर उत्पादन से जुड़ा कोई काम नहीं हुआ। क्यों भला? कंपनी का प्रबंधन नहीं चाहता है कि उत्पादन बढ़ाया जाए। इसकी वजह यह है कि कंपनी के पास पहले से ही बहुत सारी अनबिकी गाड़ियाँ पड़ी हुई हैं, जिन्हे कोई खरीदने वाला नहीं है।
मारुति की बिक्री अगस्त में घट कर 1,06,413 हो गईं, जो उसके पिछले महीने की बिक्री से एक तिहाई कम थी। कंपनी ने इसी अनुपात में उत्पादन में भी कटौती कर दी। कंपनी ने अब तय किया है कि वह अपना मासिक उत्पादन एक तिहाई कम कर देगी।
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