जहाँ कोरोना वायरस के संदेह में पीटने, अपनी ही माँ द्वारा घर में नहीं घुसने देने जैसे मामले आ रहे हों वहाँ यदि संक्रमित व्यक्ति की पहचान के लिए एक ठप्पा लगा दिया जाए तो क्या हालात होंगे? फ़र्ज़ करें कि हर संक्रमित व्यक्ति की कलाई में रिस्टबैंड यानी कलाई का पट्टा लगा दिया जाए तो? एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने कोरोना मरीज़ों को ट्रैक करने के लिए रिस्टबैंड जैसे उपकरणों के लिए टेंडर निकाला है। हालाँकि यह साफ़ नहीं है कि रिस्टबैंड केवल कोरोना पॉजिटिव लोगों के लिए होगा या अन्य के लिए भी। यदि यह कोरोना पॉजिटिव लोगों के लिए होगा, जैसी कि संभावना भी है, तो सवाल है कि ऐसे पॉजिटिव लोग तो आइसोलेशन में रहेंगे फिर इन्हें ट्रैक करने की ज़रूरत कहाँ? यदि ऐसा रिस्टबैंड पहनकर व्यक्ति बाहर जाएगा तो लोग उसके साथ क्या करेंगे?
कोरोना वायरस मरीज़ों को रिस्टबैंड से ट्रैक करने की यह ख़बर तब आई है जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाले ब्रॉडकास्ट इज़ीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड यानी बीईसीआईएल ने टेंडर जारी किए। इसमें कंपनियों से कोरोना मरीज़ों को ट्रैक करने वाले उपकरण, तेज़ बुखार मापने वाला ऑनलाइन उपकरण और शरीर का तापमान मापने वाले थर्मल इमेजिंग सिस्टम के लिए आवदेन माँगे गए हैं। इसमें सबसे ज़्यादा विवादास्पद कोरोना मरीज़ को ट्रैक करने वाला उपकरण है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, विशेषज्ञों ने कहा है कि यह उपकरण रिस्टबैंड के रूप में होगा। इसको निजता का उल्लंघन यानी गोपनीय जानकारी के सार्वजनिक होने का विवाद तो उठ ही रहा है, इसके साथ ही इसके समाज में भी घातक परिणाम होने की आशंका है।
भले ही यह दावा किया जाए कि रिस्टबैंड या इसके जैसे उपकरणों को कोरोना मरीज़ों को ट्रैक करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन इसका ग़लत असर भी पड़ेगा। यह इस अर्थ में कि यदि किसी को बीमारी हो तो क्या उसके गले में लिखकर यह टाँग दिया जाना चाहिए कि यह व्यक्ति फलाँ बीमारी से पीड़ित है या उसका इलाज करना चाहिए? इस तरह से तो दुनिया के हर आदमी में कोई न कोई बीमारी निकल आएगी तो क्या सभी के गले में यह लटका दिया जाना चाहिए कि फलाँ व्यक्ति में हीमोग्लोबिन कम है या फलाँ को फ़्लू है, कैंसर है, मनोरोगी है, एड्स पीड़ित है आदि?
क्या इलाज का यह तरीक़ा किसी भी मायने में सही होगा? और ऐसा करेंगे तो उसके दूसरे घातक परिणाम होंगे उसका क्या होगा? कोरोना वायरस के ही मामले में इसका घातक असर दिख भी रहा है।
दरअसल, कोरोना वायरस को लोग एक छूआछूत की बीमारी की तरह देख रहे हैं और इस बीमारी के साथ एक सामाजिक कलंक सा जुड़ गया है। पूरे देश भर से ऐसी ख़बरें आईं कि दूर शहरों से जब सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर लोग घर पहुँचे तो उन्हें गाँवों में घुसने नहीं दिया गया। कई जगहों पर सिर्फ़ संदेह के कारण ही हिंसा हुई। दिल्ली के बवाना में एक मुसलिम युवक को कोरोना वायरस फैलाने की साज़िश रचने की अफवाह के कारण जमकर पीटा गया। युवक का नाम दिलशाद अली उर्फ महबूब है और वह बवाना के हरेवली गाँव का रहने वाला है।
वाराणसी के गोला दिनानाथ मोहल्ले के 25 वर्षीय अशोक मुंबई से 1600 किलोमीटर चलकर किसी तरह 12 अप्रैल को शहर में पहुँचा था। लेकिन जब घर पहुँचा तो उसकी माँ और भाई ने दरवाज़ा नहीं खोला। उसके रहने के लिए पुलिस ने व्यवस्था की। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश में भी आया था। क़रीब पचास किलोमीटर का सफर पैदल तय कर पति के साथ इंदौर से अपने मायके उज्जैन पहुँची निलोफर नाम की महिला को उसकी माँ ने यह कहते हुए घर में नहीं घुसने दिया था कि, ‘तुम्हें घर में एंट्री दी तो हम भी मुसीबत में आ जायेंगे।’ उसे भी पुलिस ने क्वरेंटाइन सेंटर में रखवाया।
अब इसके दूसरे ख़तरे पर आते हैं। साइबर सुरक्षा और क़ानूनी जानकार सचेत करते हैं कि कोरोना मरीज़ों को ट्रैक करने वाले उपकरण में जो ज़रूरतें बताई गई हैं वे संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी के लिए गंभीर ख़तरा हो सकते हैं। इससे लोगों का सर्विलांस यानी जासूसी की जा सकती है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार चाहती है कि इस उपकरण में 33 चीजें अनिवार्य रूप से हों। उनमें से पहला कहता है कि कॉल डेटा रिकॉर्ड, इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड, टॉवर और मोबाइल फ़ोन फोरेंसिक डेटा का उपयोग करके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरों का पता लगाने, रोकने और जाँच करने का इसे एक खुफिया जाँच का प्लेटफ़ॉर्म और सामरिक उपकरण होना चाहिए।
सॉफ़्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने एक बयान में कहा है कि यह उपकरण स्वास्थ्य से ज़्यादा बड़े पैमाने पर सर्विलांस के रास्ते खोलेगा। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, पुणे में रहने वाले साइबर क़ानून के विशेषज्ञ कहते हैं, 'यह कैदियों और पैरोल पर रिहा होने वाले लोगों के लिए टखने के ब्रेसलेट की तरह है जो कई देशों के पास है... यह उपकरण उससे एक क़दम आगे ले जाता है और डेटा का विश्लेषण करता है, व्यक्तिगत जीवन में आक्रामक तरीक़े से हमला करता है।'
अब ऐसे में भला रिस्टबैंड जैसे ट्रैकिंग उपकरण की क्या ज़रूरत है?
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