क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज़ादी की वर्षगाँठ पर इस बार श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराएँगे? क्या वह लाल क़िले की प्राचीर से देश को संबोधित करने के बजाय लाल चौक से ही अपना भाषण देंगे? क्या जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की इतने बड़े पैमाने पर तैनाती के पीछे यही वजह है?
इन सवालों का जवाब केंद्र या राज्य सरकार नहीं दे रही है, न ही सुरक्षा बलों की ओर से कोई ऐसा कह रहा है।
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि बीते हफ़्ते भर सुरक्षा बलों के 35 हज़ार जवानों को जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया है। इसके साथ ही भारत के इस अशांत राज्य में तैनात जवानों की तादाद 1.45 लाख हो गई। घाटी को लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रोक दिया गया है, श्रद्धालुओं से कह दिया गया है कि वे तुरन्त अपने अपने-अपने घर लौट जाएँ।
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सुरक्षा बलों की इतनी बड़ी तादाद में यकायक तैनाती से यह सवाल भी उठता है कि श्रीनगर के बख़्शी स्टेडियम में तो हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाया ही जाता है, इस बार ख़ास क्या है?
नरेंद्र मोदी की कार्यशैली और उनकी राजनीति के मद्देनज़र इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह 15 अगस्त को इस बार श्रीनगर में झंडा फहराएँ और वह भी बख़्शी स्टेडियम में नहीं, लाल चौक पर।
क्या है लाल चौक का मामला?
देश के किसी भी हिस्से की तरह लाल चौक पर भी झंडा फहराया जा सकता है। पर यह घाटी में फैली अलगाववाद की भावना की वजह से एक बेहद संवेदनशील मुद्दा हर बार बन जाता है। स्थानीय लोग यह नहीं चाहते कि वहाँ भारत का झंडा फहराया जाए। अलगाववादी गुट कई बार इस मौके पर घाटी में बंद की अपील कर देते हैं। इसलिए सुरक्षा बलों की कोशिश होती है कि क़ानून व्यवस्था के भंग होने और स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन से बचने के लिए लाल चौक पर किसी को झंडा नहीं फहराने दिया जाए।पर ऐसा नहीं है कि लाल चौक पर कभी झंडा नहीं फहराया गया है। भारतीय जनता पार्टी के लिए कश्मीर और ख़ास कर लाल चौक पर तिरंगा फहराना एक बड़ा मुद्दा रहा है और इसकी कई बार कोशिशें की गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 में गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल चौक पर झंडा फहराने का एलान किया। उसके जवाब में अलगाववादी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट ने ‘लाल चौक चलो’ कार्यक्रम का एलान कर दिया। इससे बचने के लिए केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (सीआरपीएफ) ने ख़ुद सुबह 8 बजे झंडा फहरा दिया। इसके बाद सीआरपीएफ़ के प्रवक्ता ने इस पर कहा कि यह कोई ख़ास बात नहीं है।
बीजेपी ने लाल चौक पर फहराया तिरंगा
पर लाल चौक पर झंडा फहराना ख़ास है, कम से कम बीजेपी के लिए। इसे इस रूप में समझा जाता है कि पार्टी जब तक विपक्ष में रही, इसने हर बार स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस यह एलान किया कि लाल चौक पर ही झंडोत्तोलन करेगी। इसके कार्यकर्ताओं को हर बार लाल चौक पहुँचने से पहले हिरासत में ले लिया जाता था और बाद में छोड़ दिया जाता था।लेकिन बीजेपी को लाल चौक पर झंडा फहराने में कामयाबी भी मिल चुकी है। बीजेपी ने गणतंत्र दिवस 2008 को लाल चौक पर झंडोत्तोलन का निर्णय किया। बीजेपी के जम्मू-कश्मीर के प्रभारी आर. पी. सिंह ने उस दिन झंडा फहराया था। उस समय वहाँ बीजेपी राज्य ईकाई के प्रमुख सोफ़ी युसुफ़ और पार्टी के 200 कार्यकर्ता भी मौजूद थे।
लेकिन यह पहला मौका नहीं था जब भगवा दल ने लाल चौक पर तिरंगा फहराया। इसके पहले 1992 के गणतंत्र दिवस पर मुरली मनोहर जोशी भी सुरक्षा इंतजाम के बीच लाल चौक पहुँचे थे और झंडा फहराया था।
एक तीर से कई शिकार
यदि प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल चौक पर झंडा फहरा दिया तो वे एक तीर से कई शिकार करने में कामयाब हो जाएँगे। बीजेपी की नीतियों और राजनीति में उग्र राष्ट्रवाद बिल्कुल फिट बैठता है। इस भगवा पार्टी ने पिछला चुनाव उग्र राष्ट्रवाद के बल पर ही जीता था। यह उग्र राष्ट्रवाद राजनीतिक हिन्दुत्व को भी वैध बनाता है। वे दोनों एक दूसरे को सहारा देते हैं।बीजेपी यह प्रचार कर सकेगी कि जो काम आज़ादी के बाद अब तक नहीं हुआ, मोदी ने कर दिखाया। मोदी इसके लिए भी कांग्रेस पर तंज कर सकेंगे और जम्मू-कश्मीर पर जनमत संग्रह की माँग के बहाने नेहरू पर हमला भी कर सकेंगे। नेहरू पर हमला करना और हर बुराई के लिए उन्हें दोषी ठहराना मोदी का शगल बन चुका है।
चुनावी फ़ायदा
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती को राज्य के विधानसभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। बहुत मुमकिन है कि दिसंबर तक राज्य में चुनाव करवा लिए जाएँ। यह उग्र राष्ट्रवाद और लाल चौक पर तिरंगा फहराना बीजेपी के बहुत काम आएगा और वह इसका भरपूर सियासी फ़ायदा उठा सकेगी।मोदी लाल चौक पर झंडा फहरा कर लोगों का ध्यान दूसरी ओर बँटा सकेंगे। अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर में है। इसकी बदहाली से जुड़ी ख़बर लगभग रोज़ आ रही है। अर्थव्यवस्था को तवज्जो नहीं देने वाले मोदी की चिंता इस बात से समझी जा सकती है कि उन्होंने इस मुद्दे पर बैठक बृहस्पतिवार को की, जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत कई दूसरे लोग मौजूद थे। लाल चौक पर झंडा फहराने से आर्थिक संकट से लोगों का ध्यान बँट जाएगा।
इसके साथ ही मोदी यह संकेत भी दे पाएँगे कि कश्मीर पर उनका पूरा नियंत्रण है। वह देश ही नहीं, दुनिया के सामने यह दावा कर सकेंगे कि घाटी की स्थिति वैसी बुरी भी नहीं है, जैसा प्रचारित किया जा रहा है।
इसके साथ ही मोदी यह संकेत भी दे पाएँगे कि कश्मीर पर उनका पूरा नियंत्रण है। वह देश ही नहीं, दुनिया के सामने यह दावा कर सकेंगे कि घाटी की स्थिति वैसी बुरी भी नहीं है, जैसा प्रचारित किया जा रहा है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोदी की यह शैली भी है कि वह प्रचार में यकीन करते हैं और उसके चकाचौंध में असली मुद्दा गायब हो जाता है। इसे नोटबंदी से समझा जा सकता है। नोटबंदी को सरकार ने बड़ी कामयाबी के रूप में पेश किया जबकि उससे अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान हुआ था। मोदी स्वतंत्रता दिवस के झंडोत्तोलन का भी ज़बरदस्त प्रचार कर उसका भरपूर सियासी फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगे।
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