अब जबकि 31 मई को लॉकडाउन 4.0 ख़त्म होने की तारीख नज़दीक आती जा रही है, प्रधानमंत्री कार्यालय 1 जून से आगे की कार्य योजना पर काम कर रहा है।
लॉकडाउन का लेखा-जोखा
प्रधानमंत्री कार्यालय फ़िलहाल दो महीने से ज़्यादा लंबे समय तक चले लॉकडाउन का हिसात-किताब लगाने में व्यस्त है। अर्थव्यवस्था से लेकर कोरोना महामारी तक, सभी मुद्दों पर तमाम चीजों की गहरी पड़ताल की जा रही है। यह जानने की कोशिश की जा रही है कि इल लॉकडाउन का क्या नफ़ा-नुक़सान हुआ, अब तक इससे क्या हासिल हुआ।
प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की पिछली बैठक में कई तरह के सुझाव आए, कई तरह की माँगे आईं। केंद्र सरकार ने लचीला रुख अपनाया और तमाम राज्यों से कहा कि वे अपनी-अपनी स्थितियों और आकलन के आधार पर लॉकडाउन के प्रावधानों में छूट दें।
फ़ैसला तो लेना होगा
लेकिन केंद्र सरकार को अंत में यह फ़ैसला एक दिन लेना ही होगा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर क्या करेगी, लॉकडाउन हटाएगी या और बढ़ाएगी। यदि केंद्र सरकार लॉकडाउन हटाएगी तो वह एक बार में ही हटा देगी या चरणबद्ध तरीके से हटाएगी, यह अगला सवाल है।
सरकार को लॉकडाउन की होने वाली आलोचनाओं का जवाब भी ढूंढ कर रखना होगा, अपनी कामयाबी के दावे भी खोज कर रखने होंगे। सारी कोशिश इसके इर्द-गिर्द हो रही है।
राजनीतिक फ़ैसला!
गृह मंत्रालय के एक बड़े अफ़सर ने एनडीटीवी से कहा, 'अंत में यह राजनीतिक फ़ैसला ही होगा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम को ही चालू रखा जाए या राज्यों पर छोड़ दिया जाए कि वे 1 जून के बाद क्या करते हैं।'
स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू करने से इस विषय से जुड़े तमाम फ़ैसले केंद्र सरकार लेने लगी।
पीएमओ की इस पूरी कवायद के केंद्र में यह डर है कि कोरोना महामारी से लड़ने के मुद्दे पर विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब देना होगा। कई मुख्यमंत्री नाराज़ हैं और सरकार की रणनीति पर सवाल उठाते रहे हैं।
अब तक का हाल
आँकड़े बताते हैं कि भारत में अब तक कोरोना से संक्रमित होने वालों की तादाद 1,58,333 हो गयी है और 4531 लोगों की मौत हुई है। इसमें से 86,110 एक्टिव केस हैं। बीते 24 घंटों में 6,566 नए मामले सामने आए और 194 लोगों की मौत हुई है।ऐसे समय में लॉकडाउन हटाने से कई सवाल खड़े हो जाएंगे। इसकी एक वजह यह भी है कि प्रवासी मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलने के बाद कोरोना संक्रमित लोगों की तादाद में यकायक तेज़ी आई है।
लेकिन दूसरा सवाल है कि कोरोना के पहले से ही सुस्त चल रही अर्थव्यवस्था लॉकडाउन की वजह से पूरी तरह तबाह हो चुकी है। ऐसे में इसे खोलने का दबाव भी सरकार पर है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है। उसे इसी सवाल का जवाब ढूंढना है। और यह काम बहुत आसान नहीं होगा।
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