हाथरस गैंगरेप मामले ने देश को झकझोर कर रख दिया है और कोर्ट ने ख़ुद आगे आकर इस मामले में दखल दिया है। क्या इससे पीड़िता और उसके परिवार वालों को न्याय की बड़ी उम्मीद बँधती है? पिछले अनुभव क्या कहते हैं? पिछले एक साल में ही ऐसे दो बड़े मामले सामने आए हैं और उन मामलों में आरोपियों को जेल की सज़ा हुई है। इसमें से एक मामला उन्नाव के कुलदीप सिंह सेंगर का है तो दूसरा शाहजहाँपुर के स्वामी चिन्मयानंद का। इसके अलावा दो साल पहले भी देश को हिलाकर रख देने वाले कठुआ गैंगरेप मामले में भी अदालत ने दखल दिया था और उस मामले में भी आरोपियों को सज़ा मिली थी। तो क्या कुछ ऐसा ही फ़ैसला हाथरस मामले में आ सकता है?
हाथरस गैंगरेप मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जिस तरह के संकेत दिए हैं वह उसी दिशा मे बढ़ता एक क़दम लगता है। अदालत ने आदेश में कहा कि देश और राज्य के नागरिकों और उसमें भी ख़ासकर मृतक पीड़िता के परिवारों जैसे ग़रीब और दलित सर्वोपरि हैं। इसने यह भी कहा कि कोर्ट की यह बाध्यकारी ज़िम्मेदारी है कि संविधान के तहत मिले उनके अधिकारों की हर क़ीमत पर रक्षा करे।
कोर्ट के आदेश में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य, यूपी के पुलिस महानिदेशक लखनऊ, यूपी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, क़ानून और व्यवस्था, लखनऊ, ज़िला मजिस्ट्रेट हाथरस और पुलिस अधीक्षक हाथरस को पार्टी बनाने के लिए कहा गया है। साथ ही उन्हें 12 अक्टूबर को कोर्ट में पेश होने को भी कहा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का यह दखल, उन्नाव मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल की तरह ही है। पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव मामले में हस्तक्षेप किया था और मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए उन्हें यूपी से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था। नाबालिग लड़की के बलात्कार का यह उन्नाव मामला 2017 में आया था। आरोप बीजेपी के तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर लगा था। सेंगर तो तब गिरफ्तार हुआ, जब वह पीड़िता के परिवार को भारी नुक़सान पहुँचा चुका था। उन्नाव पीड़िता के पिता को बुरी तरह पीट पीटकर मार डाला गया और जब वह अस्पताल में इलाज कराने गया तो डॉक्टर ने भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया, जिसका वीडियो सार्वजनिक हुआ था।
उन्नाव रेप पीड़िता की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी और इसका आरोप सेंगर पर लगा। मामले ने तूल पकड़ा तो पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया।
इस मामले में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने दिसंबर 2019 में फ़ैसला सुना दिया। अदालत ने कुलदीप सेंगर को दोषी माना और उसको उम्र कैद की सज़ा सुनाई। सेंगर पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। कोर्ट ने सीबीआई को पीड़िता और उसके परिवार को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया।
स्वामी चिन्मयानंद मामला
शाहजहाँपुर की एक क़ानून की छात्रा ने स्वामी चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ दुष्कर्म के आरोप लगाए थे। वह लापता हो गई थी और उसके परिवार वालों ने फ़ेसबुक पर उसके एक वीडियो के आधार पर शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले में कुछ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि आरोप लगाने वाली छात्रा तीन दिनों से ग़ायब है लिहाजा सुप्रीम कोर्ट दखल दे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया। कोर्ट के निर्देश पर एसआईटी गठित की गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट को मामले की निगरानी करने को कहा गया था।
एसआईटी ने इस मामले की जाँच की और चिन्मयानंद को यौन शोषण के आरोप में जेल भेज दिया गया। 20 सितंबर से जेल में बंद चिन्मयानंद को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 3 फ़रवरी को जमानत दे दी। हालाँकि चिन्मयानंद ने भी पाँच करोड़ रुपये की रंगदारी माँगने के आरोप पीड़िता और उसके साथियों पर लगाए थे। उनको भी जेल भेजा गया।
कठुआ मामला
बकरवाल मुसलिम समुदाय की एक 8 साल की बच्ची के साथ जनवरी 2018 में बलात्कार हुआ। इसके ख़िलाफ़ देश भर में आक्रोश था। पुलिस के मुताबिक़ बच्ची को कई दिनों तक ड्रग्स देकर बेहोश रखा गया। आख़िरकार उसकी हत्या कर शव को फेंक दिया गया। जब आरोपी पकड़े गए तो आरोपियों के पक्ष में ही रैली निकाली गई। विवाद हुआ। पीड़िता की ओर से आरोप लगाया गया कि जाँच को प्रभावित किया जा रहा है। कठुआ रेप और हत्या मामले में जब पुलिस चार्जशीट दायर करने जा रही थी तो रास्ते में कुछ स्थानीय पत्रकारों ने उनका रास्ता रोक लिया था। इन सब मामलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया और आदेश दिया कि मामले का ट्रायल जम्मू से बाहर पठानकोट में किया जाएगा और इस ट्रायल में हर दिन कैमरे के सामने कार्यवाही होगी।
इस गैंग रेप, प्रताड़ना और हत्या मामले में छह दोषियों में से तीन को अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा दी। पूर्व सरकारी अधिकारी साँझी राम को इस मामले का मास्टरमाइंड माना जा रहा था और पठानकोट की फास्ट ट्रैक अदालत ने साँझी राम को भी उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई। सबूतों के अभाव में साँझी राम के बेटे को अदालत ने रिहा कर दिया। साँझी राम के अलावा परवेश कुमार, दो स्पेशल पुलिस ऑफ़सर दीपक कुमार और सुरेंदर वर्मा, हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज और सब-इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को इस मामले में दोषी ठहराया गया। पुलिसकर्मियों को सबूतों को मिटाने में दोषी पाया गया।
बहरहाल, अब देखना है कि हाथरस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद क्या नतीजा निकलता है।
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